सादर अभिवादन
(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से )
आज बिना किसी भूमिका के चलते हैं,
आज की रचनाओं की ओर......
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जीत को पचाने को, हार भी जरूरी है
प्यार को मनाने को, रार भी जरूरी है
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घूमते हैं मनचले अलिन्द बाग में बहुत
फूल को बचाने को, ख़ार भी जरूरी है
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अल्लाह पर ऐतबार रहा
अल्लाह ही मददगार हुआ
आदमी की जात से तो
ये दिल बस बेजार हुआ
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घर यूं ही तो नहीं बन जाता। हरेक मन के किसी कोने में अपना घर और उसकी तस्वीर रखता है। इसकी पहली झलक जीवन के कई वसंत बाद नज़र आती है। मन का घर, विचारों का घर, अहसासों का घर, सपनों का घर, अपनों का घर---। कितनी मिठास है ना ---
रोचक और ज्ञानवर्धक पठनीय सामग्री से भरी- पूरी चर्चा... आपके श्रम को तहेदिल से सलाम 🙏
जवाब देंहटाएंअनुगृहीत हूंं, यह आपका औदार्य है, आपके प्रति हार्दिक आभार प्रिय कामिनी सिन्हा जी.🙏
सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
मेरे लेख को स्थान देने हेतु आपका आभारी हूं कामिनी जी । आपका चयन प्रशंसनीय है ।
जवाब देंहटाएंThanks for my part inclusion
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । सभी लिंक्स बहुत सुन्दर,चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार कामिनी जी...। सभी रचनाएं गहरी हैं...।
जवाब देंहटाएंसुंदर शानदार अंक सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
बहुत ही खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंआप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया, मंच पर आप सभी की उपस्थिति से हम चर्चाकारों की भी हौसला अफजाई होती है, आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा मंच की पोस्ट और इसमें मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद कामिनी जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक संजोए हैं
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
आपका आभार