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शनिवार, जुलाई 24, 2021

'खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!'(चर्चा अंक- 4135)

शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी ''सुकृति " जी। 

सादर अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

 ज़िंदगी में ख़्वाहिशों का अनंत सिलसिला होता है। ख़्वाहिशों के आरोह-अवरोह का क्रम निरंतर गतिमान बना रहता है। ख़ुशनुमा ख़्वाहिशें ज़िंदगी में उम्मीद जगाए रखतीं हैं और स्वप्नों का मकड़जाल ख़्वाहिशों को खाद-पानी देता रहता है। ख़्वाहिशों से भरी ज़िंदगी हमें ख़ुशनुमा माहौल में जीने के मंज़र पैदा करती रहती है। ख़्वाहिशों को परवान चढ़ाना भले ही दुष्कर कार्य हो किंतु इस दिशा में प्रयास होते रहने से जीवन रसमय बना रहता है।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'

मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब ख़्वाहिश पर कहते हैं-

"मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे,
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले।"

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
  --

खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!

पवन झखोरे से लिपटी हुई 
एक सुरमई  चाह हूँ मैं 
लहराते आँचल में सिमटी हुई 
ममता हूँ मैं 
रात के काजल में 
आँखों का वो एक पाक सपन 
तेरी खुशबू से नहाई हुई 
चंपा हूँ मैं 
गुरु ब्रह्म हैं गुरु रूद्र हैं
गुरु ईश अवतार हैं
गुरु की महिमा सबसे व्यापक
गुरु ज्ञान साकार हैं.
गुरु बोध हैं गुरु ध्यान हैं
गुरु सकल संस्कार हैं
ठहाकों के नीचे हैं दफ़न अनगिनत
आहों के खंडहर, ज़रा सी खुदाई
न खोल जाए कहीं, राज़
ए पलस्तर। सीलन -
भरी रातों का
हिसाब
मांगती है ये ज़िन्दगी
तन तक, सीमित, रहती नहीं चाहत,
रूह कहीं, पाती नहीं राहत,
बुझती, ये प्यास नहीं,
प्यासा कण-कण, भटकता वन-वन,
सिमटता, यह रेगिस्तान नहीं,
फैलाव., भटकाता है!
अम्बर के आनन में बैठा
 उजास रवि अंतस करता।
तमस मिटाने आती रजनी
चंदा शीतल मन भरता।
घोर निशा जीवन में आए
तम से आतुर मत होना।
आशाएं......
--
फ़लक से देखेगा यूँ ही ज़मीन को कब तक
ख़ुदा है तू तो करिश्मे भी कुछ ख़ुदा के दिखा

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं

मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
--
परिवेश मेरे गाँव का,
जाना है मैं ने इस वर्ष,
जाना है गाँव की भव्यता को,
और झेला है दरिद्रता को भी,

इस बार बन बैठा था बोझ,
अपनी ही कर्म भूमि पर,
जिसे बनाया था मैंने,
अपने ही बाहुबल से,
न ढल सका उसीके परिवेश में,
औ बन गया प्रवासी मैं अपने ही देश में,
--
‘मैं बड़ा होकर शिवाजी के सपने को साकार करूंगा.
स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है.
अंग्रेज़ों ने हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी, हमारी आपसी फूट का लाभ उठा कर हमको गुलाम बना लिया है. हम भारतीय एक हो कर उनकी इस चाल को नाकाम कर देंगे और भारत में स्वराज्य स्थापित कर देंगे.‘अपने विद्यार्थी जीवन के साथी दस्तूर, आगरकर और चन्द्रावरकर के साथ बाल गंगाधर तिलक ने देश-सेवा और शिक्षा प्रसार का स्वप्न देखा था.युवक तिलक भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अतीत का अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि भारतीय जागृति के लिए पश्चिम के मार्ग-दर्शन पर आश्रित होना या योरोपीय पुनर्जागरण का अंधानुकरण करना बिलकुल भी आवश्यक नहीं है. उनका विचार था -
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कभी कभी ये दिन उदास सा लगता है। रातें भी तबाह होने लगती हैं। जब साया किसी का साथ छोड़ देता है तो इबादतें भी गुनाह लगने लगती हैं। शायद हमारी उम्मीदें ही कुछ ज्यादा रहती हैं। हम किसी से भी बेवज़ह यूँ ही उम्मीद पाल लेते हैं।
 यदि आपके बच्चे के नाक में कुछ फंस जाएं तो सबसे पहले शांत रहने की कोशिश करें। क्योंकि आपको घबराया हुआ देख कर बच्चा भी डर जाएगा। 
 बच्चे की नाक में रूई या उंगली डालने से बचे। क्योंकि ऐसा करने से जो भी चीज नाक में फंसी है, वो नाक में और अंदर की तरफ जा सकती है। 
 बच्चे की नाक में तेल-घी आदि कुछ न डालें। इससे वस्तु बाहर आने की बजाय सांस की नली में अटक सकती है। जिससे हालात और बिगड़ सकते है। 
कपास की डंडी या चिमटे से या अन्य कोई भी उपकरण से नाक में गई वस्तु निकालने की कोशिश न करें। क्योंकि ऐसा करने से भी वस्तु नाक में और अंदर जा सकती है। 
वर्षों पुराना माली सुनते सुनते थक गया और सोचने लगा कि मैं तो इतना बीमार था पर मेमसाहब ने एक बार भी हाल नहीं पूँछा कि तुम इतने दिन बाद क्यों आए हो ? ऊपर से इतना उलाहना । न बाबा न,मुझे अब काम ही नहीं करना, मेरे तो बच्चे भी कह रहे कि बाबू बूढ़े  हो गए हो चुपचाप घर में रहो और भगवान का भजन करो, अरे मैं क्यूँ ये कोठियों के चक्कर काटूँ ? 
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भूमिका के साथ विविधरंगी संकलन अनीता जी !

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  2. अनीता जी, वैविध्यपूर्ण रचनाओं से सज्जित अंक का सुंदर संयोजन किया है अपने, आपके श्रमसाध्य कार्य को तहेदिल से नमन करती हूं,मेरी लघुकथा को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वैश्या पर आधारित हमारा नया अलेख एक बार जरूर देखें🙏

      हटाएं
  6. अति उत्तम संकलन अनीता जी!! मेरी रचना को सम्मान देने के लिए आपका हृदय से आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. हमेशा की तरह मन्त्र मुग्ध करते असाधारण रचनाओं का संग्रहशाला है 'चर्चा मंच' मुझे शामिल करने हेतु ह्रदय से आभार, आदरणीया अनीता जी - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन चर्चा संकलन, गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर चर्चा प्रस्तुति, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

    जवाब देंहटाएं

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