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रविवार, जुलाई 25, 2021

'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक- 4136)

सादर अभिवादन। 

रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

आदरणीय कामिनी दी कहीं व्यस्त हैं आज फिर मुझे ही पढ़िए -

  आषाढ़ मास की पूर्णिमा को भारत में गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। अगाध श्रद्धा का यह पर्व अपने गुरु जी के प्रति समर्पण और विश्वास को दर्शाता है। विद्या, ज्ञान, तत्त्व-ज्ञान और जीने की कला सीखने के लिए गुरु का महत्त्व आज भी बरक़रार है। शैक्षणिक गुरु से आध्यात्मिक गुरु तक सभी गुरुजन के समक्ष उनके शिष्य /शिष्याएँ नत-मस्तक होते हैं। कबीर साहब तो गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर मानते हैं क्योंकि ईश्वर को जानने का मार्ग गुरु ही बताते हैं।  

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--गुरुक्रम हो तुम .......
पहले उद्वेग हुए
अब आसक्ति के आवेग हो तुम
मेरी अभिसक्ति के प्रत्यावेग हो तुम

पहले आकर्ष हुए
अब भक्ति के अनुकर्ष हो तुम
मेरी आकृति के उत्कर्ष हो तुम

कई दिनों से

 लगातार..

 बरस रहे हैं

 काले बादल

तुम्हारी तरफ से

आने वाली 

पछुआ के साथ

अंजुरी भर धूप की

--

रूबरू शख़्सियत - -

अंजाम ए अदब है बेमानी,
जब हाकिम ही बज़्म
ए नशीं हो जाए,
कहाँ जा
इल्तिजा लिखवाएं, जब
मुंसिफ़ ही नुक्ता चीं
हो जाए।
रीते हुए
औंधे रखे
घड़े की तरह
शुष्क
रिक्त 
दिन 
बजते हैं
शोक डूबे
अनहद नाद की तरह
दोनों ही संभालती हैं घर और बाहर की दुनिया
दोनों ही जूझती हैं भीतर बाहर की लड़ाइयों से
दोनों के ही जीवन में है काम का भंडार
और उस पर से मिलने वाले ताने अपार

दोनों को निपटाने होते हैं समय रहते सारे काम
बुलट ट्रेन की स्पीड फिट होती है उनके हाथों में
दोनों के पास नहीं होता अपने लिए वक़्त
--
खाली मंडप -
पिता के नयनो में
पहला आँसू।

 तुम नशे में, तुम नशीले ..

तुम कोलाहल .. धीमे धीमे 

तुम मुरझाए, खिले खिले से 
तुम निर्भीक .. डरे डरे से 
--

फैमिली कोर्ट के छोटे से कमरे में अधेड़ वय के पति पत्नी बैठे हुए थे ! पति अत्यंत क्षुब्ध और अप्रसन्न दिखाई दे रहा था पत्नी बेहद असंतुष्ट और दुखी ! मजिस्ट्रेट शालिनी उपाध्याय बारीकी से उनके हाव भाव निरख परख रही थीं ! उन्होंने दोनों से इस उम्र में तलाक के लिए आवेदन करने का कारण पूछा –शालिनी – “विवाह के पैंतीस साल बाद आप एक दूसरे से तलाक क्यों लेना चाहते हैं ?”पति – “ये हद दर्जे की झगडालू, बदमिजाज़ और ज़िद्दी हो गयी हैं ! कोई भी लॉजिकल बात इन्हें समझ में नहीं आती ! घर का वातावरण बहुत ही खराब हो गया है ! मेरी कोई बात नहीं सुनतीं जीना दूभर हो गया है !”
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य संकलन अनीता जी ! सुन्दर और विविधताओं से परिपूर्ण लिंक्स के मध्य मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  3. इतने अच्छे लिंक्स प्रस्तुत करने के लिए अनीता जी आपको साधुवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन लींकों के संकलन हेतु साधुवाद। माफी चहता हूं आप सभी से कि नित्य हाजर नहीं हो पता हूं। जब भी आता हूं आप विद्वत साहित्य मनीषियों से एक नईं दृश्टि मिल जाती है। विगत गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी के गुरुत्व कृतित्व को नमन करता हूं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी लघुकथा को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  6. यह मंच भी गुरु सम ही है इसलिए हार्दिक नमन पूर्ण कृतज्ञता व्यक्त करते हुए । अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आप सभी स्नेहजनों की प्रतिक्रिया संबल है हमारा।
    दिल से आभार मंच पर पधारने और उत्साहवर्धन हेतु।
    स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. सर्वप्रथम देरी से उपस्थित होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। अनिता जी बेहद सुंदर लोनक्स ढूंढ ढूंढ कर निकाला है आपने ।हर रंग की रचना का सुंदर समायोजन ।मेरो रचना को भी यहां स्थान देने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

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