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सोमवार, जुलाई 26, 2021

'अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन!' (चर्चा अंक 4137)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय कैलाश बाजपेयी जी की रचना से। 

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

      1996 में अटलांटा में आरंभ होने जा रहे ऑलंपिक खेलों से पूर्व सुपर कंप्यूटर ने भविष्यवाणी की थी कि भारत को एक भी पदक नहीं मिलेगा। भारतवासी बेमन से इन खेलों को देखते रहे। इस बीच जब टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस ने भारत के लिए काँस्य पदक जीता और तिरंगा लहराया तब भारतियों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उस वक़्त मुझे कम्प्यूटर की भविष्यवाणी पर बहुत ग़ुस्सा आया था। उसके बाद के ऑलम्पिक खेलों में भारत ने कुछ बेहतर ही हासिल किया है। इस बार जापान में चल रहे टोक्यो ऑलम्पिक खेलों में पहले ही दिन भारत को मीराबाई चानु ने भारोत्तोलन प्रतियोगिता में रजत पदक दिलाकर गौरवांवित कर दिया है। 

आइए पढ़ते हैं आज की कुछ चयनित रचनाएँ-  


*****

नया अंदाज

किया ऐसा सिंगार

चमका दिया 

चेहरा चांदनी सा 

आया निखार 

 नूरानी चहरे पे 

सजी  बालिका

नया  सा  अंदाज है | 

*****

दीद भी लिखा होगा...

हो भले ही हजार पर्दों में,कल दीद भी लिखा होगा।

कौन कहता है वरक हर्फों सियाही बदलेंगे नहीं,

आज लिखा है मुश्किल तो कल मुफ़ीद भी लिखा होगा।

*****

चाहती हूं सिर्फ़ एक दिन | कविता | डॉ शरद सिंह

सिर्फ़ एक दिन 

जीना चाहती हूं

निर्विरोध, निश्चेष्ट,

 निर्विवाद, नि:शंक 

अपने साथ,

अपने अस्तित्व को 

बूझने के लिए 

 और चाहती हूं -

वह दिन हो 

मेरा अंतिम दिन,

शून्य में विलीन हो जाने के लिए 

प्रस्थान बिंदु।

*****

उनका जंगल...हमारा जंगल

हमारा

जंगल तुम रख लो

जिसमें

केवल सूखा है

चीख हैं

और कुछ

अस्थियां

सूखी हुई

उन वन्य जीवों की 

जिनसे हम छीन चुके हैं

उनका जंगल...

*****

गुलों में ताज़गी आए कहाँ से

कहीं   बरसा    नहीं    दो    बूँद   पानी,

कहीं   बरसी   है  आफ़त  आसमाँ  से।

हो  जिससे  और  को  तकलीफ़  कोई,
कहा  जाए      ऐसा  कुछ   ज़ुबाँ  से।

*****

 अनकही से उपजा अनकहा सा कुछ

फिर एक दिन उसने मौन को दस्तक दी. मेरा वाचाल अकेला रह गया. मेरे कंधों पर भरम की तितलियाँ फड़फड़ाने लगीं. वाचाल मरने को था. मौन ने वाचाल को गले लगा लिया. मैं अपना स्व भूलती रही. मुझे पता था उसका वाचाल टकराया है किसी सुनामी से. सुन्न पड़ गया कंधों पर तितलियों का फड़फड़ाना.

*****

जीवन की पटकथा

का मतलब, नदी की तरह चालो

अपनी राह खुद बनाओ 

 मंजिलें खुद खुद सामने आएंगी 

नदी बहकर सागर में मिलती है 

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन चर्चा मंच और उतना ही शीर्षक!
    हाँ ये बात सच है कि हमारे यहाँ ओलंपिक खेलों को उतना महत्व नहीं मिलता जितना उसे मिलना चाहिए!
    जो कहते हैं कि भारत के लोग मन से ओलंपिक नहीं देखते उन्हें यह जान लेना चाहिए कि खिलाड़ीयो जीत लोगों के मन से मैच देखने पर नहीं निर्भर करती है वो उनके मेहनत और हौसले पर निर्भर करती है इस बार तो कोरोना के कारण मैच देखने जाने की इजाज़त नहीं है फिर भी रजत जीत गयें हम! और कल के टेबल टेनिस में मानिका बत्रा ने तो कोच की भी गैरमौजूदगी में जीत लिया जबकि जिनके साथ उनका मैच था वो खिलाड़ी अपने कोच (माँ) की मौजूदगी में भी हार गयी!
    आज का शीर्षक बहुत ही अच्छा है👍👍👍👍

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  2. सुप्रभात
    उम्दा अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रवींद्र जी बहुत बहुत आभार आपका। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए। सभी लिंक गहन भाव लिए हुए हैं और सभी रचनाकारों को भी बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. रवीन्द्र, आज का सुंदर सारगर्भित अंक,शानदार प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार,शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  5. मनमोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुति सर।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏

    जवाब देंहटाएं

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