सादर अभिवादन।
बुधवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
जलवायु परिवर्तन की रिपोर्ट के मुताबिक़ वातावरण का ताप ढेड़ डिग्री (1.5) 2040 तक बढ़ने वाला था जो अब दस वर्ष पूर्व ही 2030 तक बढ़ने की संभावना है।
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित सद्यरचित रचनाएँ-
अपने मन का दामन थामें रहने में
बहुत दूर के स्वप्न देखने में
ख्यालों में डूबे रहने में
जज्बातों में बह जाने में
कोई गुनाह तो नहीं है।
*****
अब आ जाये अग़र गुस्सा मुझ पर
जो चाहे मुझको तुम कह लेना
दिल हल्का अपना कर लेना
आवाज़ जो तुमको देती रहूँ
कुछ मत कहना गुस्सा रहना
मैं रात धरा के शानों पर
रोते हुए बिता दूँगी
जब आऊँ अगली सुबह तुम तक
तुम चाय का प्याला उठा लेना
कुछ मत कहना चुप ही रहना
बस लिखते जाना, पढ़ने देना.
खारे जल स्यूँ नहाया गाल
कुणा कौडी छिपाई है
यादा सोवे सीली रजनी
सौत आज पुरवाई है
झींगुर उड़े झाँझर झँकावे
दादुर टेर बुलावे जी ।।
*****
टूटेगी हर दीवार ,परिधि ,जब लेगी अंगड़ाई तन्मयता,
पर्वत ,खायीं निर्मित कर ,कैसे पथ समतल दोगे।
काला अतीत आज भी धुंधला मानस में बौनापन है
आडंबर का दर्शन लेकर, तुम कैसे कल उज्वल दोगे।
*****
"फिर क्या.. चण्डी रूप लेकर मैं विरोध पर उतर आई। बहुत से पढ़े-लिखे लोग मेरे पक्ष में आ गए।किसी ने चुपचाप पुलिस को खबर कर दी,वो भी आ गई। फिर एक ही बात पर सहमति बनी कि मुझे बच्चों को लेकर उनका घर,गाँव छोड़ दूर जाना होगा।पास में कुछ पैसे और थोड़े-बहुत गहने लेकर निकल गई।
"यहाँ तक कैसे पहूँची काकी सा..?"
"एक समाजसेविका के समूह ने बहुत साथ दिया।वो मुझे यहाँ ले आईं और अपने आश्रम में रहने की जगह देदी।बस वहीं साफ-सफाई के काम करके बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। बेटियाँ विदा हो गईं और बेटे को तू जान ही गया है..!"
*****
कैसे जीते हैं भला, हमसे सीखो ये अदा...खुशदीपहर इनसान को अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीने का अधिकार है. उसे देखना होगा कि सबसे अधिक खुशी उसे किसमें मिलती है. मैं फिर अपने फेवरेट धर्मेंद्र की मिसाल देना चाहूंगा. शोहरत, दौलत, संतान सुख ऐसी कोई बात नहीं जो वो न देख चुके हों. लेकिन अब वो वही कर रहे हैं जो उनके मन को सबसे अच्छा लगता है. *****आसमां में कहीं पर ...
टीसते नहीं
पुराने हुए जख्म
हुआ लगाव
लगने लगे प्यारे
अब ये दर्द सारे।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
जी ! नमन संग आभार आपका .. इस मंच के अपनी आज की बहुरंगी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देकर मंच के नियमित पाठकगण तक पहुँचाने के लिए .. आज की भूमिका की बात गम्भीर है, ये 2040 से 2030 हुए तक का समय और भी घट सकता है, पर ये सदियों से चला आ रहा क़ुदरती परिवर्त्तन का ही हिस्सा भर है .. शायद ...
ReplyDeleteआप का इस बार का शर्तों भरा, विस्तृत आमन्त्रण भी कुछ अलग-सा (अच्छा भी) लगा, ख़ासकर आख़िरी अनुच्छेद :-
"नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव"
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ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति! और शीर्षक के जरिए लोगों को प्रकृति के प्रति करने का बहुत ही अच्छा प्रयास! पर अब इस तापमान को बढ़ने से नहीं रोका जा सकता!ये बड़ कर ही रहेगा! रिपोर्ट का कहना है! जो की अत्यंत चिंतनीय है!
ReplyDeleteवैसे सभी अंक अच्छे है पर आसमां में कहीं पर बहुत ही उम्दा रचना है!
शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |
अदभुत ...समय की आवश्यकता
ReplyDeleteसुंदर सामयिक तथा विविध रंगों से सजा अंक, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं अभिनंदन रवीन्द्र जी।
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ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन
ReplyDeleteसदा की तरह सुंदर संकलन
ReplyDeleteसराहनीय संकलन।
ReplyDeleteआभारी हूँ सर मंच पर स्थान देने हेतु।
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति।
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