सादर अभिवादन। शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है
शीर्षक व काव्यांश श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह ‘शीलवती आग’ से -
सूर्य ने स्याही उगल कर
कर दिया आकाश फिर काला
चलो माँजो गगन को
रक्तवर्णी पीढ़ियों पर
फिर वही दायित्व आया है।
हो सके तो फिर नया सूरज उगाओ
किस कदर हर साँस पर
अंधियार छाया है।
देश में इतना अँधेरा आज से पहिले
कभी था ही नहीं
पीढ़ियाँ ऐसी कभी भटकी नहीं थीं।
द्वार, तोरण और वन्दनवार के
उलझाव में
आत्मा आराध्य की ऐसी कभी
अटकी नहीं थी।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
कर दिया आकाश फिर काला
चलो माँजो गगन को
रक्तवर्णी पीढ़ियों पर
फिर वही दायित्व आया है।
हो सके तो फिर नया सूरज उगाओ
किस कदर हर साँस पर
अंधियार छाया है।
देश में इतना अँधेरा आज से पहिले
कभी था ही नहीं
पीढ़ियाँ ऐसी कभी भटकी नहीं थीं।
द्वार, तोरण और वन्दनवार के
उलझाव में
आत्मा आराध्य की ऐसी कभी
अटकी नहीं थी।
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"उग्रवाद-आतंक का, अड्डा पाकिस्तान"
अफगानों के साथ में, ओछी थी खिलवाड़।
रूस-अमेरीका रहे, अपना पल्ला झाड़।।
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शासक अपने वतन में, बन बैठे गद्दार।
तालीबानों ने किया, सत्ता पर अधिकार।।
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सूर्य ने स्याही उगल कर
कर दिया आकाश फिर काला
चलो माँजो गगन को
रक्तवर्णी पीढ़ियों पर
फिर वही दायित्व आया है।
कर दिया आकाश फिर काला
चलो माँजो गगन को
रक्तवर्णी पीढ़ियों पर
फिर वही दायित्व आया है।
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एक अद्भुत अनुभूति लिए तुम होते हो
क़रीब, हिमशैल की तरह उन पलों
में निःशब्द बहता चला जाता
है मेरा अस्तित्व, गहन
नील समुद्र की तरह
क्रमशः देह प्राण
से हो कर
तुम,
क़रीब, हिमशैल की तरह उन पलों
में निःशब्द बहता चला जाता
है मेरा अस्तित्व, गहन
नील समुद्र की तरह
क्रमशः देह प्राण
से हो कर
तुम,
हां
सच
सपने ऐसे ही तो हैं
सुर्ख
और
रसीले...।
हां
सच यह भी है
जिंदगी
में
नव अच्युत जन्म लिये जग में, गुरु संत करे अभिनंदन हो।
तुलसी कर से अवतीर्ण हुई, जन मानस भजता छंदन हो।
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वही हुस्न, वही जवानी, वही नज़ाकत, वही ख़ुमार,
चाँद कितना भी छिपे बादलों में, हो ही जाता है प्यार।
गोरी गोरी कलैया ,हरी हरी चूड़ियां
हथेलिया पर रचैबे मेहंदी का बुटवा
धानी चुनरिया पहिन जाईं नैहरवा....
मनवाँ करेला जाईं नैहरवाँ......
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मै रोज तकूं उस पार
हे प्रियतम कहां गए
छोड़ हमारा हाथ
अरे तुम सात समुंदर पार
नैन में चलते हैं चलचित्र
छोड़ याराना प्यारे मित्र
न जाने कहां गए......
एकाकी जीवन अब मेरा
सूखी जैसी रेत
भरा अथाह नीर नैनों में
बंजर जैसे खेत
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एक बारगी राजनीति के ध्रुव तारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी की बाड़मेर के कनना गांव पधारे थे!
वहां वे राजपुरोहितो की किसी सभा के सम्मिलित हुए....वहाँ अमळ की मनुहार चल रही थी तब अटल जी ने कहा कि आप शौर्य के लिए जाने जाते है...कृपया कर इस नशे का त्याग करे
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विपुल से विदा ले कर अर्चना घर पहुँची। दोपहर हो गई थी। उसके मम्मी-पापा लीविंग रूम में बैठे थे। उसकी मम्मी एक पत्रिका पढ़ रही थी और पापा किसी केस को देखने में व्यस्त थे। वह सीधी पापा के पास गई और अपने हाथ में पकड़ा स्टाम्प पेपर उनके सामने रख दिया। “क्या है यह? कहाँ गई थी तू?”, कहते हुए योगेश्वर प्रसाद ने स्टाम्प पेपर को उठा कर ध्यान से देखा और पुनः बोले- "यह क्या है अर्चू? तू कोर्ट मैरिज कर रही है?... देख लो शारदा, अपनी बेटी की करतूत!"शारदा ने चौंक कर अपने पति की ओर देखा और फिर अर्चना की तरफ आश्चर्य से देखने लगीं।
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राजीव गाँधी ने अपनी भूलों से कुछ सबक सीखे, कुछ नहीं सीखे लेकिन उनके हृदय में राष्ट्र को प्रगति-पथ पर ले जाने की जो उदात्त एवं निश्छल भावना थी, वही उनकी पथ-प्रदर्शक बनी । दंगों के दौरान अपने कर्तव्य-निर्वहन में विफल रहे पी॰वी॰ नरसिंह राव के स्थान पर शंकरराव चव्हाण को गृह मंत्री बनाकर उन्होंने नरसिंह राव को मानव-संसाधन विभाग में भेज दिया जबकि अति-महत्वाकांक्षी प्रणब मुखर्जी को सीधे मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाकर स्वच्छ छवि वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को वित्त मंत्री बनाया । अब राजीव गाँधी जनता और नौकरशाही दोनों के समक्ष एक स्वप्नद्रष्टा के रूप में आए एवं यह सिद्ध करने में लग गए कि युवा नेता के व्यक्तित्व ही नहीं, विचारों एवं कार्यशैली में भी यौवन का उत्साह और सुगंध थी ।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
अच्छा संकलन किया है आपने अनीता जी। मेरे आलेख को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति अनीता जी । सभी सूत्रों की रचनाओं के अंश रोचक व प्रभावित करने वाले । दिन भर में पढ़ने के लिए बेहतरीन सूत्र उपलब्ध करवाने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं अनीता जी आपका। मेरी रचना को स्थान देने के लिए...। साधुवाद, अन्यथा न लें...मैं बताना जरुरी समझता हूं कि यह रचना इस मंच पर आ चुकी है एक दिन पहले ही...। मैं केवल इतना चाहता हूं कि आज मेरी रचना की जगह कोई और रचना को स्थान दिया जा सकता था...इसीलिए मैं लिख रहा हूं...साधुवाद...। मैं यह भी मानता हूं कि यह कार्य संभवतः त्रुटिवश हो गया हो...।
जवाब देंहटाएंचर्चाकार जाँच परख़ के बाद ही रचनाओं को मंच पर प्रस्तुत करता है।
हटाएंसादर
अन्यथा न लें...मुझे जानकारी नहीं थी...।
हटाएंअन्यथा जैसा कोई विषय ही नहीं है।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट का लिंक लगाने के लिए आभार।
अनीता सैनी जी आपकी लगन और प्रयास स्तुत्य है।
बहुत सुंदर तथा पठनीय सूत्रों से सज्जित आज का अंक, आपके श्रमसाध्य कार्य को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सुसज्जित रचनाओं से सजा आज का अंक।
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को स्थान देनें के लिये आभारी हूँ अनिता सैनी जी।
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई! मेरी लघुकथा 'संस्कार' को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के किये आ. अनीता जी का बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अप्रतिम सौंदर्य बिखेरती हुई चर्चा मंच को समृद्ध करती हैं, मुझे स्थान देने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुंदर नयनाभिराम संकलन ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई,सभी लिंक बेहतरीन।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हमारी पोस्ट को स्थान देने के लिए भी बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी
जवाब देंहटाएं