मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत "माँ की ममता के सिवा, कुछ भी नहीं असली है"
रात-दिन आज भी आभास मुझे होता है,
मेरी माँ मेरे सदा आस-पास रहती है।
मुसीबतों से कभी हारना नहीं बेटा,
माँ सदा मुझसे यही कहती है।।
अब तक आपने पढ़ा शॅरोन और राजवीर जूही के साथ घूमने का प्रोग्राम बना रहे हैं। राजवीर शिमला जाना चाहता है और शॅरोन राजस्थान घूमने के लिए फोर्स करती है। "क्यों राजस्थान क्यों..? राजवीर ने पूछा... मेरे मन के भाव --तुम्हें गीतों में ढालूंगा, सावन को आने दो jmathur_swayamprabha --हरी चूड़ियों से भरी कलाई। रंगे हिना हथेली टहटहायी _srisahity हरी चूड़ियों से भरी कलाई, रंगे हिना हथेली टहटहायी। सजी संवरी बैठी राधा, आओ कान्ह ऋतु सावन आयी।। बागों में पड़ गये झूले, कूहके पिकी पागल बौरायी। घनघोर घटा श्रावनी छटा, बेकल मनवा तेरी याद सतायी।।palolife श्रीसाहित्य --अफगान सेना ने इतनी आसानी से हार क्यों मानी? पिछले महीने 8 जुलाई को एक अमेरिकी रिपोर्टर ने राष्ट्रपति जो बाइडेन से पूछा, क्या तालिबान का आना तय है? इसपर उन्होंने जवाब दिया, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। अफगानिस्तान के पास तीन लाख बहुत अच्छी तरह प्रशिक्षित और हथियारों से लैस सैनिक हैं। उनकी यह बात करीब एक महीने बाद न केवल पूरी तरह गलत साबित हुई, बल्कि इस तरह समर्पण दुनिया के सैनिक इतिहास की विस्मयकारी घटनाओं में से एक के रूप में दर्ज की जाएगी। जिज्ञासा --बहन मैं टूटकर बिखरते समय जब भी घबड़ाता हूं हंसती ,खिलखिलाती गुलाबी बुंदके वाली फ्राक पहने दो चोटी में लाल रिबिन बांधें आ जाती है मेरे सामने और जब रहता हूँ चुप उसके गुनगुनाने की आवाज कानों में पड़ते ही टूट जाती है चुप्पी उम्मीद तो हरी है .........--भारत को जोड़ने में निर्णायक शिक्षा, भारत जोड़ो आंदोलन में नई शिक्षा नीति की भूमिका अहम कबीरा खडा़ बाज़ार में --परिस्थिति का मारा ये लाल परिस्थिति का मारा किसकी आँखों का तारा है । न साथ में मातु पिता इसके न दिखता कोई सहारा है जिज्ञासा की जिज्ञासा --भूल मेरी Akanksha -Asha Lata Saxena --'अन्त भला तो...' "नमस्ते आँटी जी!" मैं बुटीक में अपने कपड़े पसन्द कर रही थी कि लगा किसी ने मुझे ही सम्बोधित किया है। आवाज की दिशा में देखा तो एक प्यारी सी युवती मुझे देखकर दोनों हाथ जोड़कर मुस्कुरा रही थी। लेकिन उसकी मुस्कान और आँखें निश्चेत लगीं। "सोच का सृजन" --आख़री सांस तक अग्निशिखा : --स्वतन्त्रता दिवस Sudhinama --बाल कहानी -- जंगल में सफाई अभियान Fulbagiya --कितनी यादें दे जाते हैं !लोग पुराने जब जाते हैं,
कितनी यादें दे जाते हैं !
कसमें भी कुछ काम ना आतीं,
वादे भी सब रह जाते हैं !
पीपल के पत्तों के भी
पीले होने की रुत होती है,
पर मानव के साथी क्यूँकर
बेरुत छोड़ चले जाते हैं ?
मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंवंदन संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुतिकरण हेतु साधुवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हैं सभी चयनित सूत्र ! मेरी रचना को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति सर।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन।
सभी को बधाई।
सादर
बहुत सुंदर,सार्थक संकलन, बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी, आपको मेरा सादर अभिवादन ।
जवाब देंहटाएंप्रभावी लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर