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शनिवार, अगस्त 28, 2021

'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक- 4170)

सादर अभिवादन। 

शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

दूर्वा अर्थात दूब।  एक ऐसी घास जो धरती की सतह पर रेंगती हुई बढ़ती रहती है। आँधी-तूफ़ान ग़ुरूर में खड़े विशाल वृक्षों को धरासाई कर देते हैं लेकिन दूर्वा जो ज़मीन से जुड़कर चलती और बढ़ती है उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।  दूर्वा हमें विनम्रता के भाव विकसित करने की प्रेरणा देती है।  यही दूर्वा पूजा में अपना स्थान पा जाती है क्योंकि इसकी प्रकृति में सिर्फ़ औरों का कल्याण है। 

-अनीता सैनी 'दीप्ति'

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

मैं कोई सिंदूरी दिन लिखूं
तुम सांझ लिख देना
मैं कोई सवेरा खिलूं
तुम उल्लास लिख देना
मैं कोई मौसम लिखूं
तुम बयार लिख देना

तुम तो किसी और आंगन में

तुलसी,मनीप्लान्ट, 

पीपल,बरगद

सब कुछ हो…

हम तो बस उस 

पुराने वादे के साथ

निर्वात में जी रहे हैं

--

अस्तित्व, हमारा भी था कुछ

अस्तित्व हमारा भी था कुछ
पर ख़ुद ही दाँव गँवा बैठे,
इक पूनम की अभिलाषा में
सूरज से नैन लड़ा बैठे।
--

मन के पाखी: बौद्धिक आचरण 

 बर्बरता के शिकार
रक्तरंजित,क्षत-विक्षत देह,
गिरते-पडते,भागते-कूदते
दहशत के मारे
आत्महत्या करने को आमादा
लोगों की
तस्वीरों के भीतर की
सच की कल्पना
भीतर तक झकझोर रही है।
मथुरा में जन्मे थे कृष्ण
गोकुल में पले थे कृष्ण
धर्म के रथ पर, कर्म की पथ पर 
जीवन भर चले थे कृष्ण . 
--
मैने तुझसे कब कहा था दो निमंत्रण
था बंटा मेरा तुम्हारा मार्ग कण कण
फिर भी तू मेरी जमीं को रौंद आया

मित्र मैं कैसे न आऊँ द्वार तेरे
जब लगाता तू मेरे हज्जार फेरे
बन के तू घुसपैठिया सब लूट लाया 
प्रकृति का अंत कैसे हो सकता है?
 नहीं हो सकता... 
 मरण सूर्यास्त सा है, अंत सा लगता है 
लेकिन वास्तव में यह भोर है.। 
गोधूलि और भोर में सूर्य चंद का अंत नहीं होता... 
--
 सूरज के बिना सुबह नहीं होती, 
चांद के बिना रात नहीं होती, 
बादल के बिना बरसात नहीं होती, 
और अपनों को याद किये बिना, 
दिन की शुरवात नहीं होती...!! 
भारतीय संस्कृति अनूठी है, यहाँ जीवन को उसकी समग्रता में  सम्मानित करने का भाव है. जीवन के आरम्भ होने से पूर्व ही उसे संस्कार के द्वारा परिष्कृत करने की व्यवस्था है. यदि सही अर्थ के साथ वेद मन्त्रों का पाठ तथा अध्ययन किया जाये तो जीवन को दिशा देने वाले सूत्र उनमें छिपे हैं. हमारी प्रार्थनाएं विश्व कल्याण की कामना लिए हुए हैं. सर्वे भवन्तु सुखिनः.. यदि हम नित्य प्रति अर्थ की प्रतीति करते हुए गाते हैं तो संसार के समस्त जीवों की शुभ भावना से भर जाते हैं. असतो मा सद गमय..
-- 
"ओहो ! तो मम्मी ! तो आपको ये सब भी पता है ?  हाँ मम्मी ! सच्ची में दीदी तो मेरी बहुत मदद करती है"।"तो बेटा यही तो है रक्षा !    जो तुम दोनों को हमेशा एक दूसरे की करनी है तो प्रॉमिस भी दोनों को ही करना होगा न....।
रक्षा सिर्फ भाई ही करे बहन की ये जरूरी नहीं,  बहने भी भाई की रक्षा करती हैं चाहे पास हों या दूर , हमेशा भाई के साथ होती हैं उसका मानसिक सम्बल बनकर। हर वक्त भगवान से उसकी खुशहाली की प्रार्थना करती हैं।
इसीलिए  बेटा तुम दोनों ही एक दूसरे को ये रक्षा सूत्र बाँधकर हमेशा एक दूसरे की रक्षा करने एवं साथ देने का प्रॉमिस करोगे"।
"हाँ मम्मी ! हम दोनों ही हमेशा की तरह  एक - दूसरे को राखी  बाँधेंगे !  और  प्रॉमिस करेंगे कि हम हमेशा एक-दूसरे का साथ देंगे और एक-दूसरे की रक्षा करेंगे।
आओ न दीदी ! इस बार तो मैं आपको दो राखी बाधूँगा शौर्य ने कहा तो उसकी दीदी बोली चाहे तो चार बाँध ले भाई पर गिप्ट एक ही मिलेगा... हैं न मम्मी ! 
और सब खिलखिला कर हँस पड़े।
--
विराट को पता चल गया था कि अगर उसे अपने आप को बेगुनाह साबित करना है तो उसे प्रचण्डदेव का खात्मा करना होगा। 
और प्रचण्ड देव का खात्मा वह तभी कर सकता था जब वह सात तिलस्मों के पार जाकर उस जीव तक पहुँच जाता जिसमें प्रचण्डदेव की जान बसती थी। 
पर इन तिलस्मों को पार करना हँसी खेल नहीं था। हर तिलस्म में जान का खतरा मौजूद था जिसे पार करने का दृढ़ संकल्प विराट कर चुका था। वहीं प्रचण्डदेव को पूरा यकीन था कि विराट इन तिलस्मों से ज़िंदा लौटकर नहीं आने वाला था। 
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरी रचना को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी । चयनित रचनाकारों को सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर और संदेशात्मक भूमिका।
    विविधापूर्ण रचनाओं को पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
    सुंदर कविताएं, सारगर्भित कहानी,लेख बहुरंगी सूत्रों से सजी बेहतरीन प्रस्तुति अनु।
    बेहतरीन अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार।

    सस्नेह शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत आभार आपका...। सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं...। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार...।.

    जवाब देंहटाएं
  5. उपयोगी लिंकों के साथ सार्थक चर्चा।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. आँधी-तूफ़ान ग़ुरूर में खड़े विशाल वृक्षों को धरासाई कर देते हैं लेकिन दूर्वा जो ज़मीन से जुड़कर चलती और बढ़ती है उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। दूर्वा हमें विनम्रता के भाव विकसित करने की प्रेरणा देती है....
    सार्थक भूमिका एवं उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति...
    मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी!

    जवाब देंहटाएं
  8. सार्थक भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं के लिंक्स देती सुंदर चर्चा, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  9. वैविध्यपूर्ण तथा सारगर्भित रचनाओं से सज्जित सार्थक संकलन के लिए आपका बहुत आभार एवम अभिनंदन अनीता जी, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । अति व्यस्तता के कारण आजकल ब्लॉग पर लेटलतीफ हो जाती हूं, क्षमा करिएगा । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर सार्थक भुमिका! दुर्वा के माध्यम से सुंदर संदेश।
    शानदार प्रस्तुति, आकर्षण लिंक, पठनीय सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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