सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का शीर्षक केदारनाथ सिंह जी की लेखनी से निसृत "दीपदान" कविता के अंश से लिया गया है -
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल
बार-बार उलझ जाती हैं,
एक दिया वहाँ भी जलाना;
जाना, फिर जाना,
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आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-
संस्मरण "काठी का दर्द" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
एक दिन मैं बनबसा गया तो पता लगा कि सुलेमान तांगेवाले की कमर की हड्डी क्रेक हो गयी हैं। पुरानी जान-पहचान होने के कारण मैं उसे देखने के लिए उसके घर चला गया। वहाँ जाकर मैंने देखा कि सुलेमान भाई की पीठ में काठीनुमा एक बेल्ट कस कर बँधी हुई है।
मुझे देख कर उसकी आँखों में आँसू आ गये वह बोला- ‘‘बाबू जी! करनी भरनी यहीं पर हैं।
बाबू जी! आपने ठीक ही कहा था।
अब मुझे अहसास होता है कि काठी का दर्द क्या होता है?
कभी मैं घोड़े को काठी कस कर बाँधता था। आज मुझे कस का काठी बाँध दी गयी है।
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४)किरणें
नभ भाल सुशोभित चाँद हँसे, किरणें करती वसुधा पर नर्तन।
जल केलि करें विहँसे सरसे, चपला करती तटनी घर नर्तन।
जब चाँद उगे सुलभा करती, पग पायल बांध चराचर नर्तन।
नग शीश चढ़े उतरे रमती, लगता करती प्रभु के दर नर्तन।।
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हमारे ऋषि-मुनियों ने जब समस्त जगत को एक कुटुंब माना तो उनकी सोच में सिर्फ मानव जाति ही नहीं थी, उन्होंने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति यानी समस्त चराचर के साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया था। प्रकृति की छोटी-बड़ी हर चीज का रक्षण, संरक्षण और संवर्धन ही उनका ध्येय था। क्योंकि उनका मानना था कि संसार में कोई भी चीज अकारण या महत्वहीन नहीं होती ! इसीलिए उनके द्वारा पेड़-पौधों के साथ-साथ जीव-जंतुओं के सम्मान और पूजा-अर्चना का विधान भी बनाया गया था।
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बड़े अरमान से सासू ने, तोहफ़ा ये दिया मुझको,
कहा आशीष देकर तुम,बड़ी प्यारी हो हम सबको ।
सदा गौरा के जैसे प्रेम, तुमको दें महाशंकर,
भरा आँचल रहे तेरा, ख़ुशी झूमे तेरे दर पर।।
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चौरासी अलग अलग अध्यायों में विभाजित है। इन अध्यायों के शीर्षक रोचक हैं और कहानी के प्रति उत्सुकता जगाते हैं जैसे सखी रे! पिया दिखे कल भोर, सखी रे, पियु नहीं जानत प्रेम, मैं कर आई ठिठोल सखी री, पियु का भेद न पाऊँ सखी री, पियु बिन बैरी रैन सखी री,सखी री, सुख कर आई पियु संग, सखी री, भोर लुटेरी, छूटत है पियु की नगरिया सखी री इत्यादि।
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-वन संपदा
सुरक्षा आवश्यक
हो संरक्षक
-वृक्ष लगाओ
हरियाली बचाओ
पेड़ न काटो
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कहते हैं मनुष्य आदिम युग से ही कला प्रेमी रहा है। भाषा ज्ञान के साथ ही उसमें कला भी आई। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण ही वह स्वयं को सजाता संवारता रहा। किसी क्षेत्र की कला-संस्कृति उस क्षेत्र का दर्पण होता है, जिसमें लोगों की मानसिक स्थिति व सोच परिलक्षित होती है।
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बहुत दूर
कोई खूबसूरत सुबह
रात की निराशा को
चीरकर
बढ़ रही हमारी ओर
देखो इंतजार करो
भोर होने वाली है
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कल तक जो हर वक्त मेरे पल्लू को पकड़े
पूरे घर में घूमती माँ आज कुछ अच्छा बनाओ
की रट लगाती,, आज खुद को संभालती हुई
किचन में कुछ अच्छा बनाकर आवाजें लगाती
माँ देखो न कैसा बना है का उत्तर माँगती,,, मेरी बेटी बड़ी हो गई
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लोकभाषा गीत-राम कै बखान करै तुलसी कै बानी
साधु,संत औ गृहस्थ
तोहरे तट आवै
आपन सुख-दुःख
तोहरे लहर से सुनावै
तोहईं से अन-धन ,वन
खेत औ किसानी ।
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पालक को साफ़ कर धो लीजिए। एक बड़े बाउल में पानी और बर्फ़ डाल कर रखे।
• एक पैन में पानी गर्म होने हेतु रखे। पानी जब उबलने लगे तब उसमें पालक डाले। एक-दो मिनट में ही पालक उबल जाएगी। चीमटे की सहायता से पालक को उबले पानी में से निकालकर तैयार बर्फ़ वाले पानी में डालिए। इस क्रिया को ब्लांच
(blanch) करना कहते है।
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अपना व अपनों का ख्याल रखें…,
आपका दिन मंगलमय हो...
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |
विभिन्न विधाओं से सुसज्जित चर्चा मंच मुग्धता बिखेरता हुआ - - असंख्य आभार स्थान देने हेतु। नमन सह
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत और पठनीय अंक....खूब बधाई आपको मीना जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मीना दी।
जवाब देंहटाएंउत्तम लिंक्स संचयन मीना जी !!
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार।सभी लिंक्स अच्छे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी,विविधतापूर्ण,सामयिक तथा सुंदर संकलन । मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।बहुत बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुशोभित चर्चा.... एक बुक जर्नल की पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया मीना जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंदीपदान की भावभीनी पंक्तियों से शुरूआत मोहक सुंदर।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंको को एक साथ पढ़कर आनंद की अनुभूति होती है ।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
सभी लिंक मनभावन।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार मीना जी।
सस्नेह सादर।