मंगलवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ।
आज की प्रस्तुति में बिना किसी भूमिका के अद्यतन सूत्रों का अवलोकन करते हैं।
अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दोहे "अमर रहेगा जगत में, अटल आपका नाम"
अटल बिहारी आपका, करते सब गुणगान।
माता के इस लाल पर, भारत को अभिमान।।
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आज दिखावे के लिए, लगी हुई है भीड़।
बिना अटल के लग रहा, सूना संसद नीड़।।
सुना तुमने ?
गणपति ने महीनों से मोदक को हाथ नहीं लगाया है
माँ सरस्वती ने वीणा के तार झंकृत नहीं किये
भोग से विमुख हर देवी देवता
शिव का त्रिनेत्र बन
माँ दुर्गा की हुंकार बन
दसों दिशाओं में विचर रहे ...
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तुम थी मेरी जीवन-साथी
तुम थी जीवन की आशा,
जन्म-जन्म तक साथ रहें
यह थी प्यारी अभिलाषा।
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लोग पुराने जब जाते हैं,
कितनी यादें दे जाते हैं !
कसमें भी कुछ काम ना आतीं,
वादे भी सब रह जाते हैं !
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क्या कभी मेरे ह्रदय की पीड़ा,
तुम समझ पाओगे?
और यदि समझ गए तो,
क्या उसे पुष्प की तरह सहलाओगे?
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आबरू वतन की आज यूँ बची कि क्या कहें,
फौज़ अपनी कारगिल में यूँ लड़ी कि क्या कहें ।
दुश्मनों के काफिले जो हिन्द की ज़मीं पे थे,
फौज़ ए हिन्द बन के शोला यूँ लड़ी के क्या कहें ।
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काश!
उसने द्वार खुलने तक
की होती प्रतीक्षा
तो व्यर्थ न जाती
दस्तक,
कब्ज़ों और सिटकनी की
सिहरन
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भारत वर्ष
वर्षों की दासता से
उन्मुक्त हुआ
टूटी श्रंखला
ख़त्म हुई गुलामी
स्वाधीन हुआ
राष्ट्रीय पर्व
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पत्थरों की कशीदाकारी
बुद्ध स्तूप दिखा मौन
उसे देखकर मैं करती हूँ याद
उन औरतों के हाथों को जो
इन्हें काटते हुए कितना बोले होंगे
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आओ सब मिल कर आज ,स्वन्तत्रता दिवस मनायें ।
सीखें समानता बन्धुता का पाठ ,
राष्ट्र का मान बढ़ायें ।
त्यागें राग द्वेष का भाव ,
कुटुम्ब खुशहाल बनायें ।।
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हम प्रकृति बदलना चाहते हैं, हम पर्यावरण सुधार के लिए एक पत्रिका निकाल रहे हैं, आप पहले पत्रिका देखें और तय करें कि आपको हमारे साथ आना चाहिए या नहीं। हम इतना चाहते हैं कि प्रकृति में सुधार केवल किसी के प्रयासों से नही होगा उसके लिए सभी को समग्र प्रयास करने होंगे। हम पौधारोपण कर रहे हैं उन पौधों का जो प्रकृति के मित्र पौधे हैं, आप भी हमारे साथ आना चाहते हैं तो स्वागत है...पत्रिका डिजिटल मोड पर भी उपलब्ध है उसके लिए आप वेबसाइट या सोशल मीडिया के किसी भी लिंक पर क्लिक कर सकते हैं। हमारा निवेदन है कि प्रकृति ऐसी ही रही तब निश्चित मानियेगा कि हमारे बच्चों का भविष्य बहुत खतरे में है...सोचिएगा मत अब अपने अपने क्षेत्र में पौधे
जी बहुत आभार आपका...। हमें तय करना है प्रकृति के प्रति हमारा नजरिया क्या हो...। हमें आपके साथ की जरूरत है... चाहे पत्रिका हो या चैनल...। हम मिलकर कुछ अलग लिखेंगे... कुछ अच्छा दिखाएंगे दुनिया को...। मैं इतना ही समझता हूँ कि जब प्रकृति पर संकट हो तब साहित्य खामोश नहीं बैठ सकता...। सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति अनीता जी । सभी सूत्रों की रचनाओं के अंश रोचक व प्रभावित करने वाले । दिन भर में पढ़ने के लिए बेहतरीन सूत्र उपलब्ध करवाने और इनके मध्य मुझे स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम एवम धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और श्रम से लगाई गयी चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी|
अति सुंदर व उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंविविध रंगों से सजा बहुत ही उम्दा और सार्थक अंक,बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चर्चा ।
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी रच आ लगाने के लिए धन्यवाद ।
सादर
वाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! सभी सूत्र स्तरीय एवं पठनीय ! सभी रचनाकारों का हृदय से बहुत बहुत अभिनन्दन ! आप सभीका हृदय से बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अंक, विभिन्न प्रकार की भावनाओं को समाहित करता हुआ। आभार प्रिय अनिता।
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