सादर अभिवादन !
शुक्रवार की चर्चा में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का आरम्भ 'गीता-कविता' नामक हिन्दी कविताओं के संकलन में संग्रहित एक कविता के अंश से जिसके लेखक या लेखिका के नाम पर एक मत का अभाव है लेकिन कविता के मर्म पर पाठक वृन्द निर्विवाद रूप से एक मत हुए बिना न रह सकेंगे -
आ गए तुम,
द्वार खुला है अंदर आओ…!
पर तनिक ठहरो,
ड्योढ़ी पर पड़े पाएदान पर
अपना अहं झाड़ आना…!
मधुमालती लिपटी हुई है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीं
उँडेल आना…!
तुलसी के क्यारे में,
मन की चटकन चढ़ा आना…!
【आज की चर्चा का शीर्षक है- "आ गए तुम "】
--
आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-
मन को करें विभोर" -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
चाहत मन में अगर हो, बन जाते सब काम।
श्रम के बिन संसार में, कभी न होता नाम।।
केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
बैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।।
चन्दा, सूरज धरा भी, चलते हैं दिन-रात।
जो देते जड़-जगत को, शीतल-सुखद प्रभात।।
***
बातों ही बात में अपने आप को यूँ कहते जाना
इक फलसफा है ज़िन्दगी तेरा इस तरह गुज़रते जाना
वक़्त है कि चलता है ,रुकता नहीं किसी के लिए ,
दो घड़ी चैन देता है अपनों का यूँ ठहरते जाना ,
***
निजता की गरिमा तार-तार
साख़ रो रही है ज़ार-ज़ार
देशी जासूसी तक तो
मनाते रहे हम ख़ैर
विदेशियों को ठेका
और अपनों से बैर
***
कहना नहीं
कुछ करना चाहे
इस काल में
-
जीवन भार
अब सहा न जाए
मैं क्या करूं
***
लिखने में कौन सा रोका है कब रुका है लिखने वाला गर खुले आम किसी ने टोका है
नियम लिखने लिखाने के लिये
बात करने के लिये
करने के समय बस
अपनी सोच अपना ही दिमाग होता है
सब कुछ पहेलियों में ही होता है
दिखाना और बताना
कुछ और ही होता है
***
मन के दरवाज़े के
कब्जों में
पथरा गई हैं
पल्लों की लकड़ियां
उन पर पड़ने वाली थाप
अब नहीं होती
ध्वनित, प्रतिध्वनित
***
तुम्हें स्पष्ट दिखाई दे जाएंगे जीवन
के सही माने, तुम महसूस करो
अपने भीतर, कि तुम चाहते
हो बंद हथेलियों में
कच्चे नारियल
का एक
छोटा
सा फांक, और कुछ नकुल - दाने। - -
***
ब्लाग से प्रथम सम्पर्क २००९ में हुआ। यद्यपि लेखन की ओर प्रवृत्ति १९८६ में ही जाग चुकी थी जब कुछ लघु कवितायें और नाटक लिखे थे। डायरी में लिखता रहा, संजोये रहा, सकुचाता रहा कि पता नहीं मन के भावों को इस प्रकार सबके सामने रखने पर प्रतिक्रिया क्या होगी? यद्यपि खेलों आदि में रुचि थी पर मन की प्रवृत्ति मुख्यतः अन्तर्मुखी थी।
***
वैसे क्लास में बात करना कोई अच्छी बात तो नहीं खासकर तब जब टीचर पढ़ा रही हों। हैं न विक्की"! माँ बोली तो विक्की कुछ हिचकिचाया पर तुरन्त सफाई देते हुए बोला , "नो मम्मा ! टीचर कुछ खास पढ़ा नहीं रही थी , ये सौरव न मेरी नयी दोस्ती से जैलस था बस इसीलिए"...
***
काफी इंतजार करवाने के बाद दिल्ली में बरखा
रानी मेहरबान हुई हैं। अब जब वह अपना जलवा बिखेर रही है तो हमें अपनी बरसातियां, छाते याद आने लगे हैं। बरसातियां तो खैर बहुत बाद में मैदान में आईं, पर छाते तो सैंकड़ों सालों से हम पर छाते रहे हैं। छाता जिसे दुनिया में ज्यादातर "umbrella" के नाम से जाना जाता है, उसे यह नाम लैटिन भाषा के "umbros" शब्द, जिसका अर्थ छाया होता है, से मिला है।
***
गहराइयों में बसा शहर, गहराइयों से बसा शहर, गहराइयों के लिए बसा शहर। ये गहराई एक पूरी उम्र की ईमानदार दौलत है। इसके हर हिस्से में मौन खनकता है। ये उस गहरे से शख्स के मन में बसा हुआ शहर है जो रोज, प्रतिफल इन्हीं गलियों में रैदासी विचरण करता है, ये एक सभ्यता है जो मन के धरातल पर ही बसती है।
***
आपका दिन मंगलमय हो…
अगले शुक्रवार फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
विविध प्रकार की रचनाओं और लेख से सजा खूबसूरत चर्चा मंच!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंक...। गहरी रचनाओं का चयन...। आभार आपका मीना जी...।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों के साथ मेरी अभिव्यक्ति को स्थान दिया, हार्दिक धन्यवाद मीना जी!!
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा। मेरी ब्लाग यात्रा को स्थान देने के लिये अतिशय आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी विद्वजनों का हृदयतल से असीम आभार । सादर वन्दे ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पठनीय लिंकों के साथ लाजवाब चर्चा प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेम सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् की चर्चा शनिवार (07-08-2021) को "नदी तुम बहती चलो" (चर्चा अंक- 4149) पर शामिल करने के लिये , बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सभी शामिल प्रविष्टियाँ बहुत ही अच्छी है । सभी आदरणीय रचनाकारों को बहुत बधाइयाँ ।
"मीना भारद्वाज"