शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
15 अगस्त 2022 को
हम आज़ादी की
75 वीं वर्षगाँठ मनाएँगे।
अर्थात 1947+75 = 2022
इस विशिष्ट साल के
तारीख़ ,महीने ;दिन
गिनते जाएँगे।
आइए अब पढ़ते हैं चुनिंदा रचनाएँ-
"डूबा नया जमाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
*****
किसी ने विवरण
दिया भी तो
नमक मिर्च लगा कर
किस्सा सुनाया।
है कितनी सच्चाई
उस विवरण में
आज तक
जान न पाई।
*****
रैली निकाली जानी है
एक सभा
आयोजित करानी है
अपना पक्ष
गम्भीरता से रखना है
भाषण में करना है
परतन्त्रता का विरोध
स्वतंत्रता में बड़ा अवरोध
*****
*****पोंछकर सिंदूर अपना शृंगार करती देश का
देह,मन औ प्रीत समिधा शांति यज्ञ परिवेश का,
तपस्विनी
तेजोमयी के चक्षुओं से स्वप्न झरकर,
शिखर पर हिम के
तिरंगे संग रेखांकित हो गये।
नमन् उन्हें जो आजादी की खातिर सबकुछ भूल गये...
*****
*****
"जी ऐसा ही हुआ है रमन जी। उन्होंने भी शादी नहीं की थी।हमारी पिकनिक जयपुर के जिस होटल में रुकी थी।वही मौसी जी की मुलाकात मौसा जी से हो गई। और फिर दोनों को एक-दूसरे के साथ घटी घटनाओं की जानकारी हुई और फिर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामकर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया..!"**********
लाजवाब! बहुत बढ़िया।ओजपूर्ण रचनाओं से ओत-प्रोत बेहद सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में उत्तम कविताओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति।मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना!
हटाएंजय हिन्द !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Thanks for the post
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए अत्यंत आभार आपका रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
बहुत शानदार अंक! मान्यवर मेरी रचना को स्थान देने के लिए अत्यंत आभार! 🙏
जवाब देंहटाएं