सादर अभिवादन।
रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज चर्चामंच की ओर से अतिथि चर्चाकार के रूप में प्रस्तुति लेकर आई हैं वरिष्ठ ब्लॉगर एवं लेखिका आदरणीया कुसुम कोठारी जी।
आज अपनी पसंद के ब्लाॅग चुनने का मौका मिला मन प्रसन्न तो था पर डर भी लग रहा था, क्योंकि इतने सारे प्यारे प्यारे ब्लाॅग में से सिर्फ ११ किसको चुनु किसको छोड़ूं ।
प्रबुद्ध साथियों आप मेरी सीमा समझ सकते हैं जो नहीं आ सका मेरी सूची में उनका लेखन भी मुझे बहुत प्रिय हैं मैं सोचती हूँ अतिथि एक बार आके ही कब रुकता है भला, इतनी अच्छी आवभगत है तो ये अतिथि तो सदा लालायित रहेगा अपनों के ब्लाॅग लाने के लिए । फिर नये साथियों के साथ का वादा।
लीजिए पढ़िए आज आदरणीया कुसुम दीदी की पसंद की रचनाएँ-
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गोष्ठी
संगोष्ठी में
निमंत्रित
किये गये
ईश्वर गौड
और अल्ला
क्रिसमस की
पूर्व संध्या थी
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प्रेमचन्द जयन्ती पर डॉक्टर श्रीमती रमा जैसवाल का आलेख -
प्रेमचंद के साहित्य में विद्रोहिणी नारी –
राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने भारतीय नारी में धैर्य, सहनशीलता, सेवाभाव, त्याग, कर्तव्यपरायणता, ममता और करुणा का सम्मिश्रण देखकर कहा है -
'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी.'
ममता, कोमलता, सहनशीलता और त्याग की प्रतिमूर्ति भारतीय नारी ज़रूरत पड़ने पर सिंहनी भी बन जाती है और अगर यह सिंहनी कहीं घायल हुई तो उसके प्रतिशोध की ज्वाला में बड़े से बड़ा दमनकारी भी भस्म हो जाता है.
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हिय रुत मनभावन से
बूंदों के सरस अमिरस गावन से
अगत्ती अगन लगाने वाला
छिन-छिन काया कटावन से
नव यौवनक उठावन से
कनि-कनि कनेरिया उमगावन से
ऐसे में मुझ परकटी को छोड़ कर
पीड़क परदेशी तेरे जावन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से
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नहीं खोलते हम
मन की खिड़कियाँ
सारी कुंठाओं से ग्रस्त
रहते हैं मन ही मन त्रस्त
नहीं करते परिमार्जन
चलते रहते हैं
पुरानी लीक पर
परम्पराओं के नाम
संस्कारों के नाम
और धकेल देते हैं
स्वयं को बंद
खिड़कियों के पीछे .
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एक मुट्ठी ख्वाबों की
सहेजी एक आइने की तरह
जरा सी छुअन,
और...
छन्न से टूटने की आवाज
घायल मुट्ठी,
कांच की किर्चों के साथ
सहम सी गई।
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हमराही बन के जीवन में
चलना था साथ यहाँ मिलके
काँटों में खिले कुछ पुष्पों को
चुनना था साथ यहाँ मिलके
राहों में बिखरे काँटों को
साथी मुझको तो उठाने दो...
अब नहीं प्रेम तो जाने दो...
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ना सुनाई देगी सदा,तुम्हें ये सदा मेरी,
हो जायेंगी एक दिन, तुमसे राहें जुदा मेरी ,
महकेगा कभी यादों में ,गुलाब की तरह
तुम्हारी जिंदगी का वो क्षणिक आनंद हूँ !
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मखमली,कोमल,
खिलती कलियों, फूलों की
पंखुड़ियों को छूकर सिहरती हूँ
मुरझाये फूल देख
उदास हो जाती हूँ,
हवा में डोलते फूल देख
मुग्ध हो मुस्कुराने लगती हूँ,
मुझे फूल पसंद है
क्योंकि फूल नहीं टोकते मुझे
मेरी मनमानी पर।
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धरती गोदां सोवे सुपणो
अंग-अंग अनंग उमड़े
सांझ लालड़ी उजलो मुखड़ो
अंबर आँचल आस जड़े
फूला में पद छाप निहारूं
प्रेम हृदय पावन पुनीत।।
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प्रकाश ने बैडमिंटन की दुनिया में किशोरावस्था से ही अपना नाम चमकाना शुरू कर दिया । मात्र चौदह वर्ष की आयु में ही अपनी धुन का पक्का यह बालक देश का जूनियर नंबर एक खिलाड़ी बन गया । १९७१ में मात्र सोलह वर्ष की आयु में राष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिता में पहले प्रकाश ने जूनियर ख़िताब जीता और दो दिन बाद ही फ़ाइनल में देश के धुरंधर खिलाड़ी देवेन्द्र आहूजा को हराकर सीनियर ख़िताब भी जीत लिया. यह पहला अवसर था जब किसी खिलाड़ी ने जूनियर और सीनियर दोनों ख़िताब एक साथ जीत लिए हों । उसके बाद तो राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने का सिलसिला ही चल पड़ा । एक-दो-तीन बार नहीं, पूरे नौ बार लगातार राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर प्रकाश ने रिकॉर्ड कायम किया । प्रकाश का यह रिकॉर्ड आज तक भी नहीं टूटा है ।
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एक ऐसा गांव जहां का हर निवासी दृष्टिहीन है। काफी पहले इस गांव के बारे में पढा था। पर विश्वास नही होता कि आज के युग में भी क्या ऐसा संभव है। इसीलिये सब से निवेदन है कि इस बारे में यदि और जानकारी हो तो बतायें।
इस गांव का नाम है 'टुलप्टिक। जो मेक्सिको के समुद्री इलाके में आबाद है। यहां हज़ार के आस-पास की आबादी है। यहां पैदा होने वाला बच्चा कुदरती तौर पर स्वस्थ होता है पर कुछ ही महीनों में उसे दिखना बंद हो जाता है। ऐसा सिर्फ मनुष्यों के साथ ही नहीं है यहां का हर जीव-जन्तु अंधा है। पर यह अंधत्व भी उनके जीवन की रवानी में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सका है।
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आज का सफर यहीं तक
फिर नये साथियों के साथ का वादा
@कुसुम कोठारी
आपने नवीन रचनाओं के साथ मेरे एक दशक पुराने लेख को भी स्थान दिया, इसके लिए आपका आभारी हूं कुसुम जी। बहुत विविधता है इस संकलन में जिसमें गद्य एवं पद्य दोनों ही का संतुलित संयोजन है। इस उत्कृष्ट संपादन हेतु बहुतबहुत अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंसादर आभार जितेंद्र जी,आपकी मोहक प्रतिक्रिया से मैं अभिभूत हूँ।
हटाएंआपको चर्चा पसंद आई ये मेरा सौभाग्य है,
पुराने लेख पर यही कहूंगी कि बहुत बार पुराने कागज़ों के बण्ड़ल को ऊपर नीचे करते, सम्हालते कोई ऐसा कागज हाथ में आता है जो सुखद एहसास देता है ।
ये वही पुराना पर पसंदीदा कागज है जिस पर कुछ बहुत मनभावन पढ़ने को मिलता है ।
सादर।
हार्दिक स्वागत चर्चामंच पर आदरणीय कुसुम दी।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचनाएँ।
समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।
सभी को हार्दिक बधाई।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी,आपको चर्चा पसंद आई ये मुझे आत्मानुभूति दे रहा है । आपके आत्मीय सहयोग से सभी सम्पन्न हुआ ,आपके दिशानिर्देश से ही ये सब कर पाई ।
हटाएंसस्नेह आभार आपका।
प्रकृति की चितेरी आज की अतिथि चर्चाकारा आदरणीया कुसुम जी हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत🙏🌹आज आपके एक और गुण से रुबरु होने का सुअवसर मिला कि आप एक कुशल चर्चाकारा भी हैं । आपके संकलन में अपने आरम्भिक दिनों रचना 'हकीकत' को पा कर हर्ष से अभिभूत हूँ । बहुत सुन्दर और सुगढ़ प्रस्तुति तैयार की है आपने । हार्दिक आभार कुसुम जी !
जवाब देंहटाएंअहा मीना जी! आपने तो निशब्द कर दिया आपका इतना ढेर सा स्नेह मेरी उर्जा है,।
हटाएंआपकी बहुत ही सुंदर रचनाओं में से एक चुनना चुनौती था पर आपको पसंद आई मेरा सौभाग्य है ।
आप एक अच्छी साहित्यकार हैं एक अच्छी चर्चाकारा और एक अच्छी इंसान एक अच्छी सखी।
सस्नेह।
आभार कुसुम जी और अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
हटाएंआपकी उपस्थिति चर्चा को गौरवान्वित करती है सदा ।
सादर।
बहुत बहुत बधाई कुसुम जी ! अतिथि चर्चाकारा के रूप में भी आप छा गयी हैं लाजवाब चर्चा प्रस्तुति बनाई है आपने... सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट हैं मुझे भी अपनी पसंद में शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका...
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
सुधा जी !आपको चर्चा पसंद आई ये मेरे लिए सुखानुभूति है।
हटाएंढेर सा स्नेह आभार आपका।
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदा रचनाकारों के लिए उत्साहवर्धक होती है ।
और आपका लेखन तो बस गज़ब।
सार्थक प्रतिक्रियाएं सदा किसी ब्लॉग का सम्मान बढ़ाती है।
पुनः आभार।
सस्नेह।
जी प्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंआपको चर्चा कार के रूप में देखने की इच्छा पूरी हुई मेरी।
सुरूचिसंपन्न अंक में गद्य और पद्य को समानरूप से महत्व दिया आपने यह मुझे विशेषकर अच्छा लगा।
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर हैं दी।
आप जैसी विदुषी,साहित्य मर्मज्ञ कवयित्री जिसने लुप्तप्राय विधाओं को सहेजने में प्रयासरत हैं,उनकी पसंद में स्वयं की रचना को देखने की अनुभूति हम शब्दों में नहीं कह सकते हैं। बहुत आभारी हूँ दी।
आपका स्नेह और आशीष सदैव मिलता रहा है।
इस सुंदर संकलन के लिए आपको बहुत बधाई।
शुभकामनाएं स्वीकारें।
सस्नेह
सादर।
सस्नेह आभार प्रिय बहना ।
हटाएंआप जैसे उत्कृष्ट चर्चा कार, साहित्यकार से सराहना पाकर मन आह्लाद से भर गया।
आपने इतनी उपमाएं दे दी "दी" को कि मन संकोच से भर गया अतिशयोक्ति होते हुए भी मन को आनंदित करता है आपका स्नेह।
आप तो आज से नहीं पिछले पांच सालों से मेरी चहेती रचनाकारा हो छोटी बहना,आपको तो मेरी पसंद में होना ही था।
सस्नेह।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकुसुम जी ,
जवाब देंहटाएंआज तो आप हमारी बिरादरी में शामिल हैं ,
यूँ तो आपने आज न जाने कौन कौन सी खिड़कियाँ खोल दी हैं लेकिन मेरी खिड़की की भी झाड़ पोंछ हो गयी ।
इसके लिए आभारी हूँ ।
आज इस अंक को सहेज लिया है । क्यों कि अभी लिंक्स पर जा नहीं पाई हूँ । लेकिन जानती हूँ कि अनमोल मोती ही सजे होंगे । बस इतना कह सकती हूँ कि पढूँगी ज़रूर ।
पुनः आभार ।
नमस्कार आदरणीय संगीता जी, चर्चा कार तो मैं बस स्नेह विभुषित हूं।
हटाएंपर बिरादरी हमारी सदा एक ही रहेगी रचनाकारों की अपनी बिरादरी।
वैसे सबसे पहले चर्चा पर आपकी उपस्थिति चर्चा को गौरवान्वित कर रही है ,मैं सदा आभारी रहूंगी ।
अनमोल मोती तो हमारे ब्लॉग जगत में भरे हैं और आपके पठन समय में सामने आते ही हैं।
और खिड़की खूलने से देखिये कितनी प्यारी बयार आ रही है मन को आनंदित करती सी।
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया की सदा प्रतिक्षा रहती है ।
पुनः आभार दीदी, कह सकती हूँ।
सादर।
चुनाव के नोक पर ससीम में असीम को समेटती हुई अति सुन्दर चर्चा और सूत्रों का संकलन एवं प्रस्तुतिकरण विस्मित कर रहा है । हार्दिक आभार एवं हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाह!क्या बात है अमृता जी तिलस्मी दो शब्द ही मोह गए।
हटाएंचर्चा पर स्वागत है आपका और हृदय से आभार ।
चर्चा पसंद आई ये मेरा सौभाग्य है ।
सस्नेह आभार आपका।
आपको मंच पर देखकर मन आनंदित हुआ आदरणीय कुसुम दी।
जवाब देंहटाएंदिल से बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
मुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार।
सादर नमस्कार
स्वागत बहना आपका चर्चा पर ,और ढेर सा आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर रचना से चर्चा व्योम में चार चाँद लग गये ,
और चांद बिना तो आसमान ही सूना होता है कोरा सा ।
मुझे चर्चा के लिए आमंत्रित करने के लिए हृदय से आभार आपका।
पुनः आभार।
सस्नेह।
🎈🎈🎈🎈🙏🌷🌷🙏🌷🌷🎈🎈🎈
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम बहन , आज आपको प्रतिष्ठित मंच पर चर्चाकारा के रूप में देखकर अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है | सच कहा मीना जी ने -- प्रकृति की चितेरी -- आज एक अलग रूप में अपने स्नेही पाठकवृन्द से मुखातिब है | छायावाद और प्रकृतिवाद की याद दिलाता आपका लेखन तो बेमिसाल है ही ,इस भूमिका में भी आज मंच पर आपका गरिमामय व्यक्तिव अलगरूप में अपनी आभा बिखेर रहा है | अभिनन्दन ! अभिनन्दन !! अभिनन्दनम !!!!!!!
आज की प्रस्तुति की कहूँ तो निसंदेह कलम के महारथियों का जमावड़ा है | सभी के साथ आपको मेरा भी स्मरण रहा मेरे लिए हर्ष और गर्व का विषय है | आपके लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और प्रेम सदैव है | आप यूँ ही कलम से इतिहास रचते रहिये ||आज मैत्री दिवस पर कह सकती हूँ आभासी दुनिया ने जो आप जैसे मित्रों से सजी मित्र -मण्डली दी उस पर गर्व है मुझे | आपके साथ सभी को इस शुभदिवस विशेष की ढेरों शुभकामनाएं और बधाईयाँ | मैत्री का ये बंधन अटूट रहे |आपको पुनः सस्नेह शुभकामना | 🙏🙏
रेणु बहन स्वागत है आपका चर्चा पर ।आपकी टिप्पणियां तो हर रचनाकार के लिए अनमोल उपहार होती है ।
हटाएंऔर आज आपने मुझे जो सम्मान दिया मैं अनुग्रहित रहूंगी सदा ये मेरे लिए सहेजकर रखने वाले पल हैं।
सच आभासी दुनिया ने हमें कितने प्रबुद्ध साथियों से मिलाया है ।
आपको भी सखत्व दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपका स्नहिल आभार रेणु बहन
आपकी प्रति पंक्तियाँ एक पूर्ण काव्य होता है।
सस्नेह ।
साहित्यकार क्या है ??मेरी दृष्टि में।
जवाब देंहटाएंभाव में प्रतिबिंब दिखते
छवि निहारे रत्नदर्पण
बिंब भी फिर हँस पड़ा था
कर गया निज आत्म तर्पण।
और कवि की कल्पना भी
ढूंढती नव व्यंजना है
भाव के मोती उड़ेले
कल्प सृष्टा का जना है
सोच का आसन बिछाया
फूल करते देव अर्पण।।
राग जब बजता विधी का
छनछनाते तार दिशि के
गान तब दिग्पाल गाते
मुस्कुराते तार निशि के
ईश का संगीत झनका
अब लुटाते दान कर्पण।।
बज उठा हिय एक तारा
सुर नदी कलकल बहे फिर
कर्ण में हो नाद मधुरिम
रागिनी पंचम गहे फिर
शब्द गुंथित गीत माला
स्वर सुगंधितमय समर्पण।
प्रबुद्ध साथियों आप सभी की उपस्थिति चर्चा को महका रहा है।
आप सब की उपस्थिति मंच के और मेरे दोनों के लिए के लिए आनंद का विषय है ।
आज की चर्चा में कुछ लिंक जूने हैं ,पुरानी यादों की तरह गुलकंद से मन में घुलते ,सभी को लग रहा होगा इतना पीछे क्यों??
बस यूं ही कभी कभी जब पूराने
यादों के ढेर खंगालते हैं तो कुछ ऐसी कतरन निकल आती है जिन्हें हम ऊपर ही ऊपर सहेज लेते हैं ,बस ये वही ऊपर सहेजने जैसी खूबसूरत कतरनें हैं।
मेरे नजर में हर रचनाकार बधाई के पात्र है।
सादर सस्नेह।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकुसुम बहन, आपके ये उद्गार एक विदूषी के स्नेहिल उद्गार तो है ही उनमें विनम्रता और ज्ञान का अद्भुत समायोजन है! साहित्यकार की परिभाषा आपके शब्दों में अभिभूत कर रही है। सहज भाव से जो अंतस से निसृत हो वही कविता है --- कवि धर्म बहुत ही दायित्वपूर्ण कर्म है।ये सद्भावना भराऔर लोककल्याण की भावनाओं से परिपूर्ण हो तभी इसकी सार्थकता है।मेरे शब्दों में कवि धर्म-----
हटाएंसुनो ! कवि , धर्म तुम्हारा बहुत बड़ा
कभी कुटिल , कपट व्यवहार ना करना
निज तुष्टि की खातिर बिन सोचे
मर्मान्तक प्रहार ना करना !
तुम संवाहक सद्भावों के ,
करुणा के अमिट प्रभावों के ;
बुद्धिज्ञान के दर्प,गर्व में
फूल व्यर्थ की रार ना करना !
कवि , धर्म तुम्हारा बहुत बड़ा !!
सदियों रहेगी गूँज तुम्हारी वाणी की ,
सौगंध तुम्हें कविधर्म , माँ वीणापाणी की ;
फूल बनाना शब्दों को
बनाकर खंज़र वार ना करना
सुनो कवि ! धर्म तुम्हारा बड़ा ! !
पुनः ढेरों प्यार और शुभकामनाएं!!
🙏🌷😀😀
बहुत सुंदर,सराहनीय तथा वैविध्यपूर्ण रचनाओं से सज्जित आज का अंक बहुत ही मनमोहक लगा,लगा ही नहीं कि कुसुम जी अतिथि के तौर पे आई हैं,एक अनुभवी साहित्यकार कब्परिचय दिया आपने बहुत बधाई,एक से बढ़कर एक सृजन,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई तथा शुभकामनाएं। टिप्पणी में आपकी और रेणु जी की कविता ने तो समा बांध दिया।
जवाब देंहटाएं