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रविवार, अक्टूबर 31, 2021

"गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" (चर्चा अंक4233)

 सादर अभिवादन

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली।

रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।

दीपों का त्यौहार "दीपावली "
आप सभी के जीवन में रौशनी और खुशियाँ लाए.... 
इसी शुभकामना के साथ..... 
चलते हैं,आज की रचनाओं की ओर.......


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गीत "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिये,

चाँद-तारों को करीने से, अगर रौशन किये,
हार जायेगी अमावस, छा रही दीपावली।

नित्य घर में नेह के, दीपक जलाना चाहिए,
उत्सवों को हर्ष से, हमको मनाना चाहिए,
पथ हमें प्रकाश का, दिखला रही दीपावली।



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लाल, पाल, बाल! (लघुकथा)

..सिर्फ बारह बोतल पानी लेकर गए थे। तीन दिन तक खाना नहीं खाया। बिस्कुट खाकर गुजारा किया... मेरे 'आर्य'पुत्र!, मेरे लाल!....हे लोक पाल!

उफ्फ! इतनी यातना तो  मेरे बाल (गंगाधर तिलक) ने भी मांडले जेल में नहीं सही..!!!!!

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...अंधेर नहीं हुआ!



अपने सृजन का कबाड़ा करती ही हो। अन्य लेखक की रचनाओं में अपनी ओर से अन्तिम पँक्ति जोड़कर रचना को कमजोर कर दिया.., वरना कलम तोड़ थी!"

"तुम क्या जानों, रचना की आत्मा कहाँ बसती है..!"

"थोथा चना...! तुम जैसे सम्पादक-प्रकाशक की नज़रों में पाठक-समीक्षक तो गाजर मूली होते हैं!"

"क्या मैंने लेखक गाँव है, जिसको गोद लिया है?"

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‘इंटरनेट का भविष्य’ बताए जा रहे Facebook का ‘मेटावर्स’ आखिर है क्या?

अपना कॉर्पोरेट नाम बदल कर ‘मेटा’ कर लिया है.

कंपनी ने कहा है कि वो जो काम करती है, नया नाम उसे बेहतर तरीके से बताता है.
साथ ही कंपनी सोशल मीडिया के इतर वर्चुअल रियलिटी जैसे क्षेत्रों में अपने काम का दायरा बढ़ाने जा रही है.
फ़ेसबुक ने हाल में घोषणा की थी कि ‘मेटावर्स’ का विकास करने के लिए वो यूरोप में 10,000 लोगों को बहाल करेगी.



*******फटे लिबास में तुम्हारी हंसी

काश मैं 

इस बाज़ार से

कुछ 

बचपन बचा पाता...।

काश 

मुस्कान का भी 

कोई 

कारोबार खोज पाता।

काश 


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प्रीत की धुन

पिया तो नैनन आज बसाऊँ


ऐसी रुत ने अगन लगाई

प्रीत की धुन में है बौराई 

जल स्वाहा हो जाऊँ 

पिया तोहे नैनन आज बसाऊँ

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काष्ठ

भाव उकेरे काष्ठ में, कलाकार का ज्ञान।
हस्तशिल्प की यह विधा,गाती संस्कृति गान।।

वृक्षों पर आरी चली,बढ़ा काष्ठ उपयोग।
कैसे शीतल छाँव हो, कैसे रहें निरोग।।

ठंडा चूल्हा देख के, आंते जातीं  सूख।
अग्नि काष्ठ की व्यग्र है,शांत करें कब भूख।।


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नैना छलके


नैना छलके

अश्रु बहने लगे द्रुत गति से 

मन को लगी ठेस

उसके  वार  से|

कभी न  सोचा था

किसी से प्यार किया

तब क्या होगा |

जब भी स्वीकृति चाही 

मन की  चाहत गहराई 

इन्तजार में


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६१५. इंसान

इंसान हो,तो साबित करो,

कहने से क्या होता है?


दूसरों के दुःख से 

दुखी होकर दिखाओ,

दूसरों के आँसुओं से 

पिघलकर दिखाओ. 


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तुलसी पूजन गीत (मगही लोकगीत )

हमर अंगना में शोभे,श्याम तुलसी।

श्याम तुलसी,हां जी राम तुलसी।
हमर अंगना में.................
सोने के झारी में गंगाजल भर के,
नित उठ के पटैबै हम श्याम तुलसी।
हमर अंगना में..............

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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे

आप का दिन मंगलमय हो

कामिनी सिन्हा













10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति। हार्दिक आभार आदरणीय सखी कामिनी जी !मेरी रचना को स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर अंक। अत्यंत आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर प्रस्तुति.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना को आज के चर्चा मंच में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार आपका कामिनी जी..। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. कामिनी जी, नमस्कार !
    सुंदर, सराहनीय सूत्रों से सजा अंक, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐💐

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    आने वाले पांच त्योहारों की सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं।
    शुभ दीपावली।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति| मेरी रचना का लेख लगाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
    आदरणीया कामिनी सिन्हा जी|

    जवाब देंहटाएं
  10. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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