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शुक्रवार, दिसंबर 03, 2021

'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-4267)

सादर अभिवादन। 
शुक्रवारीय  प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


 शीर्षक व काव्यांश आ. सुधा दी जी की रचना 
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा' से -


हर इक इम्तिहा से गुजरना ही होगा

चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा

 रो-रो के काटें , खुशी से बिताएं 

 है जंग जीवन,तो लड़ना ही होगा

बहुत दूर साहिल, बड़ी तेज धारा

संभलके भंवर से निकलना ही होगा


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
-- 

ग़ज़ल "सुनानी पड़ेगी ग़ज़ल धीरे-धीरे" 

यहाँ पाप और पुण्य दोनों खड़े हैं
करनी पड़ेगी पहल धीरे-धीरे
जीवन  हिस्सा सभी हैं हमारे
सुनानी पड़ेगी ग़ज़ल धीरे-धीरे
--
हर इक इम्तिहा से गुजरना ही होगा
चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा
 रो-रो के काटें , खुशी से बिताएं 
 है जंग जीवन,तो लड़ना ही होगा

मेघों में छुपकर सोया है सूरज ,

या घन ने उसको ढका हुआ ।

भोर भी अब सांझ जैसी ,

भ्रम दृग पटल पर, पड़ा हुआ ।

--

६२४.नदी

चट्टानों से टकराती है,
जंगलों से गुज़रती है,
अपना रास्ता ख़ुद बनाती है,
अनवरत संघर्ष करती है, 
कभी थकती नहीं,
कभी रुकती नहीं,
गुनगुनाना नहीं छोड़ती 
यह मस्तमौला नदी.

बहुत दीर्घ, नहीं होते जीवन के रास्ते, फिर भी
कोई नहीं करता प्रतीक्षा, बेवजह किसी
के वास्ते, सुदूर उस मोड़ से कहीं
मुड़ गए सभी यादों के साए,
मील का पत्थर रहा
अपनी जगह
यथावत,
--

भय भी है छिपा-छिपा

पाप भी दबा-दबा 

न जाने कैसे, कब, कहाँ 

हो गए ये निहां 

--
उसने कहा
अब तुम्हारे लिए दिलचस्पी मर गयी है मेरी
इसलिए अब यह न पूछो करो
कि क्या कर रही हूँ मैं
मैंने कहा ठीक है
नहीं पूछूंगा
शबनम में भीगा गुलाब
मौसम का हाल बताता
पत्तों पर ओस नाचती
जाड़ों का एहसास कराती |
फूस की छत पूछती है
खम्भ तेरा क्या ठिकाना
छप्परों की मौज मस्ती
भरभरा कर फिर गिराना
ढाल पर जीवन डरा है
अग्नि से तृण को बचाऊँ।
रोज़ रात को अटैक आता है : अटैक के वक़्त पलट के किसी को देखते रहती है.. शायद उसे कुछ दिखता होगा
[01/12, 11:03 pm]: यह सोचकर ही हिम्मत जवाब दे जाता है
[01/12, 11:05 pm] विभा रानी श्रीवास्तव: मैंने कभी देखा जाना नहीं तो कल्पना करने में रौंगटे खड़े हो रहे हैं.. ऐसा भी होता है..!
[01/12, 11:08 pm]: इसके बारे में घर मे मैंने ही सबको बताया है
भाई ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि जितना सुरक्षित और सहज मैं तेरे साथ महसूस करती हूं उतना बाकी लड़कियां भी करें? अगर कोई लड़का दूसरी लड़कियों के लिए भक्षक ना बने तो उसे अपनी बहन का रक्षक बनने की जरूरत ही ना पड़े! मुझे हंसते हुए देखना चाहते हो, मुझे तोहफा देना चाहते हो ना ?तो तुम मुझे अपनी ये बुराइयां दे दो तोहफे में! मैं इस साल कैंडल नहीं बल्कि तुम्हारी इस बुराई को जलाना चाहती हूं! दे सकते हो...? अरू का नील के साथ असुरक्षित महसूस करना नील के लिए सबसे बड़ी सज़ा थी! नील पत्थर की मूरत सा खड़ा जमीन को देखे जा रहा था और उसकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी! उसके आंसुओं के साथ उसकी बुराइयां भी बह रही थी! अपने आंसुओं से अपनी गुनाहों का  प्रायश्चित कर रहा था! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार आदरणीया अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    सार्थक सुन्दर प्रस्तुति |
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद अनिता जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात
    विविध अंको से सुसज्जित बहुत ही सुंदर और सराहनीय चर्चामंच मेरी पोस्ट को चर्चामंच में जगह देने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏
    सादर प्रणाम 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचनाओं का सराहनीय सार -संकलन ।आपके परिश्रम को नमन । आज की चर्चा में मुझे भी स्थान दिया,इसके लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
    शीर्षक में मेरी रचना का मान बढ़ाने एवं चर्चा में मुझे सम्मिलित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  7. श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद और हार्दिक आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर सराहनीय रचनाओं का संकलन । बहुत-बहुत शुभकामनाएं अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं

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