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शुक्रवार, दिसंबर 10, 2021

'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -4274)

सादर अभिवादन। 
शुक्रवारीय  प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


 शीर्षक व काव्यांश आ.श्वेता सिन्हा जी की रचना 
'सुनो सैनिक' से -


 सुनो सैनिक
तुम्हारे रक्त का चंदन
लगाकर मातृभूमि
शृंगार करती है।
कहानी शौर्य की
अविश्वसनीय वीरता की
गाथाएँ अचंभित,
सुनकर, पढ़कर, गर्वित होकर  
श्रद्धानत वंदन
भीरू मन को भी
धधकता अंगार करती है।

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--

गीत "वो ही राग-वही है गाना, लाऊँ कहाँ से नया तराना" 

वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
सुनो सैनिक
तुम्हारे रक्त का चंदन
लगाकर मातृभूमि
शृंगार करती है।
कहानी शौर्य की
अविश्वसनीय वीरता की
गाथाएँ अचंभित,
सुनकर, पढ़कर, गर्वित होकर  
श्रद्धानत वंदन
भीरू मन को भी
धधकता अंगार करती है।
सिंह के कंधे सा सुपुष्ट 
वज्र- सा था कबंध  उसका।
भारत माता की रक्षा का
एक ही था अनुबंध उसका।
--
अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।

वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।
--
हरियाली है खेत में, अधरों पर मुस्कान
रोटी खातिर तन जला, बूँद बूँद हलकान

अधरों पर मुस्कान ज्यूँ , नैनों में है गीत
रंग गुलाबी फूल के, गंध बिखेरे प्रीत
--
चश्मा लग गया है अब,
काले घुँघराले बाल 
सफ़ेद होने लगे हैं अब। 


जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 
चुभता है दंश कभी निर्मम यथार्थ का ?
देखा प्रतिबिम्ब कभी दर्पण में स्वार्थ का ?
भीगी कभी पलकें लख लोगों के कष्टों को ?
पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को
जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का ?
पिघला क्या मन सुन संवेदन व्यथाओं का ?
आज फिर से
भूख पसरी होगी
कुछ आशियानों में
और कहीं पकवान बनेंगे,
आज फिर से
कोई मरेगा भूख से
और किसी को
बदहजमी की शिकायत होगी,
थोड़ा-सा   साहस  जुटा , किए  एक-दो  वार,
कुहरा  लेकिन  अंत  में , गया  सूर्य  से  हार।

सर्द   हवा   ने   दे  दिया , जाड़े   का  पैग़ाम,
मिल जाएगा कुछ  दिनों ,कूलर को  आराम।
कहमुकरी छंद (शतक)
अँखियों में छुपके यह डोले।
पलकों में यह सबको तोले।
पल भर में वो लगता अपना।
ए सखि साजन? ना सखि सपना।
''चिंटू, चलो बेटा नहाने चलो...'' 
शिल्पा ने अपने तीन साल के बेटे से कहा। 
''मुझे अभी नहीं नहाना। बाद में नहाउंगा।'' 
''नहीं बेटा, मम्मी को फ़िर नाश्ता बनाना है। चलो फ़टाफट...'' 
''नहीं, मैं अभी नहीं नहाऊंगा।'' 
''तुम्हारा ये रोज का ही है। अच्छे बच्चे मम्मी का कहना सुनते है। मेरे राजा बेटा चलो जल्दी।'' 
''नहीं, मुझे अभी नहीं नहाना!!'' 
-- 

आज का सफ़र यहीं तक 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

13 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे देश के इतने जांबाजों का एक साथ चले जाना पूरे देश को व्यथित कर गया ! हमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि सभी शूरवीरों को ! आज की चर्चा में बहुत ही सुन्दर सूत्रों का चयन ! मेरे रचना को भी स्थान मिला आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सार्थक और सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका3 आभार आदरणीया अनीता सैनी दीप्ति जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति अनीता, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  5. अनीता जी बहुत-बहुत धन्यवाद सुंदर चर्चा है मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. इस बार चर्चा मंच पर एक से एक रचनाएँ आयीं। अनिता जी को साधुवाद! सभी प्रतिभगियों को स्नेह और शुभकामनाएँ!--सादर!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  7. पठनीय एवं सराहनीय विविधतापूर्ण सूत्रों के मध्य मेरी भावनाओं को शामिल करने के लिए अत्यंत आभार अनु।
    अपनी रचना को आज के अंक के शीर्षक में देखना अच्छा लग रहा।
    सस्नेह शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन लिंक संयोजन , सुंदर शीर्षक ।
    सैनिकों को समर्पित हृदय स्पर्शी भाव रचनाएं।
    सभी रचनाएं शानदार।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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