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शुक्रवार, अप्रैल 01, 2022

"भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान" (चर्चा अंक-4387)

 स्नेहिल अभिवादन!

आज की चर्चा में आप सबका स्वागत है।

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देखिए एक नजर में कुछ अद्यतन लिंक।

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स्वागत स्वागत नव संवत्सर स्वागत स्वागत नव संवत्सर, हर द्वार सजा है बंदनवार। घर घर से भक्त निकल रहे, लिए थाल पुष्पों का हार।। हर कोई सरपट दौड़ रहा, पहुंच रहा माता के द्वार। अशर्फी लाल मिश्र काव्य दर्पण 

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गीत "धरती गाती गान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

खिलते फूल जहाँ पर सुन्दर, धरती गाती गान।

ऐसा मेरा हिन्दुस्तान, ऐसा मेरा हिन्दुस्तान।।

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सबके अपने पर्व अनोखे, अलग-अलग त्यौहार,

ईद-दिवाली में आपस में,  सब देते उपहार,

हिन्दू व्रत करते हैं, मुस्लिम रखते हैं रमजान।

ऐसा मेरा हिन्दुस्तान, ऐसा मेरा हिन्दुस्तान।। 

उच्चारण 

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तभी तो ख़ामोश रहता है आईना :) सभी साथियों को नमस्कार कुछ दिनों से व्यस्ताएं बहुत बढ़ गई है इन्ही कारणों से ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा हूँ...आज सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ अपनी नई रचना जिसे मैं करीब २ वर्ष पहले लिखा उम्मीद है आपको सभी को पसंद आये......!!

अक्सर हमेशा कुछ कहता है आईना
तभी तो हमेशा ख़ामोश रहता है आईना  !!
जो बातें छिपी है दिल के अन्दर 
उसे बाहर लाने में मददगार होता है आईना  !!

 शब्दों की मुस्कुराहट :) 

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ढ़ाई युग - एक यात्रा 

कविता "जीवन कलश 

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सेंधा नमक या सादा नमक कौन सा नमक सेहत के लिए बेहतर है? 

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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बाज़ार 2 आजकल शाम सुबह कल से काम होता है 

कल से बाज़ार घर आता है दाम होता है
बहुत आराम है दिखता है हम बिक जाते हैं
एक दुकान सा जीवन तमाम होता है 

मेरी कविताएं 

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जुहू चौपाटी- साधना जैन हालांकि यह उपन्यास मुझे लेखिका से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इस 172 पृष्ठीय बढ़िया उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म ने और इसका दाम रखा गया है 150/- जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

हँसते रहो 

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एक्शन से भरपूर मनोरंजक कॉमिक बुक है  'मैं समय हूँ' 

एक बुक जर्नल 

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परछाँई 

भरी धूप में 

सूर्य की गर्मीं सर पर

तुम्हारी परछाईं  चलती

 कदमों में तुम्हारे

जैसे ही आदित्य आगे बढ़ता

 परछाईं भी बढ़ती आगे 

पर साथ कभी ना छोड़ती  

Akanksha -asha.blog spot.com 

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लौ दीये की : कविता संग्रह 

अनुशील 

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आये हैं जब भी शाम को तेरी गली से हम 

 221 2121 1221 212

कब  तक  सहेंगे  दर्द  यहाँ  ख़ामुशी  से हम।

करते   रहे   सवाल  यही   ज़िंदगी   से  हम ।।1


यूँ हिज़्र की न चर्चा करो हम से आजकल ।

निकले  हैं जैसे -तैसे  सनम  तीरगी  से  हम ।।2 

तीखी कलम से 

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मुझसे रूठी मेरी कविता (लघु कविता) 

मुझसे रूठी मेरी कविता'

नैन  तुम्हारे किससे उलझे, क्यों पास मेरे तुम ना आती? 

तुम ऐसी छलना नारी हो, डगर-डगर फिरती मदमाती। 

हर दिन औ' हर रात-सवेरे, नई  राहों  से निकल जाती। 

Gajendra Bhatt 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए इस अंक में |

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह, सुंदर,सार्थक और सामयिक

    जवाब देंहटाएं
  3. अनुशील को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
    आपके श्रमसाध्य कार्य को प्रणाम!

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. सच में भारत के लिए यह गर्व की बात है क्योंकि बिना जीरो के कुछ नही है। आपका ब्लॉग सच में पढने लायक है बहुत बढ़िया सर
    मेरे ब्लॉग पर भी एक नज़र देखे बैंक मदद

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद शास्त्री जी💐

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहूत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्रीं जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर रचनाओं से सजा सुन्दर अंक! मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए आ. मयङ्क जी का बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं

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