फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, अप्रैल 04, 2022

'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 )

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से।  

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-

दोहे "नवसम्वत से चमन का, सुधरेगा परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

ओ भारत के वासियों, मन को करो उदार।
केवल हिन्दु वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।।
--
पंथ भिन्न तो क्या हुआ, सबका है ये देश।

नवसम्वत से चमन का, सुधरेगा परिवेश।।

*****

पेैबंद लगा पुरुष-हृदय

पुरुष-हृदय को स्त्री-हृदय की स्वतंत्रता की भावनाएँ अखरने लगीं। वह मुक्त होने का स्वप्न देखने लगी!  उसी दिन से पुरुष-सत्ता क्षीण होने लगती है।

 पेड़ की शाख़ पर बैठा पुरुष-हृदय छोटी-छोटी टहनियों से स्त्री-हृदय को स्पर्श करते हुए, स्वार्थ में पगी उपमाएँ गढ़ने का प्रयास करता है वह कोमल से अति कोमल स्त्री-हृदय गढ़ने का प्रयास करता है त्याग के नाम पर सम्पूर्ण जीवन माँग लेता है।

*****

आत्म विश्वास मेरा अटूट

मैं गलत नहीं हूँ जानती हूँ

तभी हर बात किसी की

आँखें बंद कर मानती नहीं

यही कमीं रही मुझ में

*****

नवगीत...उड़ जाऊँगी...

थक हार कर जब कभी

हताश हो कर बैठोगे

धीरे धीरे दबे कदमों से

पास तुम्हारे आऊँगी ,

तुम गाओ प्रेम गीत

विरह गीत मैं गाऊँगी।

*****

कर प्यार गोरिया


मनवा मारे  गजबे के धार गोरिया।

छोड़ नखड़ाना रुस रार गोरिया।

हम गइनी   हियवा अब हार गोरिया।

*****

एक ग़ज़ल

सब गए हैं, छोड़ करजाओगे तुम भी ,
महल अपना ले के जाओगे कहाँ तक ?           

जाग कर भी सो रहे हैं लोग ’आनन’ ,
तुम उन्हें कब तक जगाओगे कहाँ तक ?         

*****

संतुष्टि का भाव

असर जो कर न पाए ज़ह्र-ओ-दिल पर,
नहीं  कुछ   फ़ायदा   उस    शायरी  से।

उसे   अफसोस   है   अपने   किए  पर,

पता  चलता   है  आँखों  की   नमी  से।
*****

बार बार जिन्दा होता है

चाहे वो जितना भी विकट है,

पर उससे ज्यादा वो जीवट है,

 तो कभी किसी से डरता है,

और  वो कभी मरता है।

*****

बाद भी वो तवायफ़ ...

बारूदी दहक में पसीजते मासूम आँखों से आँसू,

ये हैं भला यूँ भी कैसे तरक्क़ी पसंदों के क़वायद .. शायद ...

किसी की माँ या बहन या पत्नी होती है औरत,

बनने से पहले या बनने के बाद भी वो तवायफ़ .. शायद ...

*****

तब याद करोगे तुम मुझे...

वो तेरे बिन कहे लफ़्ज़ों के मायने समझ जाता था मैं 

जब अनसुने होंगे शब्द भी तेरे तब याद करोगे तुम मुझे 

बे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को 

जब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी चर्चा प्रस्तुति |
    आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को सौम्रवारीय अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा में सम्मलित होने वाले रचनाकारों को हार्दिक बधाई व मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए अतिशय आभार🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को आज के अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार महोदय

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन।

    'पेैबंद लगा पुरुष-हृदय'को स्थान देने हेतु हृदय से आभार आदरणीय रविंद्र जी सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चर्चा प्रस्तुति, सभी लिंक पठनीय आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. जी ! नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देने के लिए .. वो भी दो-दो मंचों पर ...

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।