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मंगलवार, अप्रैल 05, 2022

शुक्रिया प्रभु का.....(चर्चा अंक 4391)

 सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

आज की विशेष प्रस्तुति समर्पित है 

हमारी ब्लॉग जगत की सुप्रसिद्ध रचनाकार...हर दिल अजीज टिप्पणीकार  

और एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी आदरणीया सुधा देवरानी जी के नाम। 

सुधा जी की तारीफ में मैं क्या कहूँ....शब्द काम पड़ते हैं। 

हमारी सुधा जी को लेखन की हर विधा में महारत हासिल है।

 उनकी लिखी प्रत्येक रचना चाहे वो गीत हो,कविता,कहानी या ग़ज़ल 

सब मे एक संदेश होता है।  

उनकी सभी बेहतरीन रचनाओं में से चंद रचनाओं को चुनना ऐसा है

 जैसे सागर में से मोती चुनना 

तो मैंने  एक सरल रास्ता अपनाया ,

मैं आज आपको उनकी उन रचनाओं का रसपान कराऊँगी जिन तक आप पहुँच नहीं पाए है 

और ये रचनाएँ मुझे दिल से बेहद पसंद है। 

सुधा जी, आपको और आपकी लेखनी को मेरा सत-सत नमन 

तो लीजिए, सुधा जी की अनमोल रचनाओं का आनंद उठाईये....

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इंसान बड़ा ही स्वार्थी होता है वो या तो भगवान से माँगता रहता है

 या शिकायत करता रहता है शुकराना करना तो आता ही नहीं

प्रभु ने हमें जो कुछ भी दिया है उसके लिए हर पल उनका शुक्रिया भी करना चाहिए 

आईये,शुरुआत करते हैं,प्रभु को शुक्रिया अदा करती एक सुंदर प्रार्थना से 

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शुक्रिया प्रभु का.....






हम चलें एक कदम
फिर कदम दर कदम
यूँ कदम से कदम हम
फिर बढाते चले.......
जिन्दगी राह सी,और
चलना गर मंजिल.....
नयी उम्मीद मन में जगाते रहें.......
खुशियाँ मिले या गम
हम चले,हर कदम
शुकराने तेरे (प्रभु के) मन में गाते रहें......

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प्रभु के बाद यदि जीवन में कुछ शाश्वत है तो वो है "प्रेम" 
और प्रेम ही वो डोरी है जो संसार को ही नहीं वरन भगवान को भी बाँधती है
 प्रेम पर लिखी सुधा जी की दो अनमोल रचनाएँ जो मुझे बेहद पसंद है 

प्रेम





 प्रेम
  अपरिभाषित एहसास।
  " स्व" की तिलांजली...
       "मै" से मुक्ति !
   सर्वस्व समर्पण भाव
   निस्वार्थ,निश्छल
       तो प्रेम क्या ?
     बन्धन या मुक्ति  !
 प्रेम तो बस, शाश्वत भाव
    एक सुखद एहसास!!

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एक कली जब खिलने को थी,
तब से ही निहारा करता था।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
वह प्रेम निभाया करता था.....

दीवाना सा वह भ्रमर, पुष्प पे
जान लुटाया करता था.....

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प्रेम की डोर से बाँधकर ही हर रिश्ता भी निभाया जाता है 
प्रेम नहीं तो कुछ नहीं....




बड़ी ही कोमल नाजुक सी डोरी से
बंधे प्रेम के रिश्ते ।
समधुर भावोंं की प्रणय बन्धन से
जीवन  को सजाएं रिश्ते ।
जोश-जोश में भावावेश में
टूट न जायें रिश्ते ।
बड़े जतन से बड़े सम्भलकर
चलो निभाएं रिश्ते. ।
रिश्तों से है हर खुशी............

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बच्चों में संस्कारों का विकाश भी घर-परिवार और रिश्तों के बीच ही होता है 
उन्हें हर पल ये याद दिलाना भी हमारा ही कर्तव्य है 
कि-किसी भी जाति-धर्म से पहले "तुम एक हिंदुस्तानी हो... "
बच्चों का मनोबल बढाती बहुत ही सुंदर रचना....

"तुम हो हिन्दुस्तानी"






क्षितिज का तुम भ्रम मिटाना,
         ज्ञान की ऐसी ज्योति जगाना।
            धरा आसमां एक बनाकर,
               सारे भेद मिटाना....
                कुछ ऐसा करके दिखाना,
 गर्व  करें हर कोई तुम पर "तुम हो हिन्दुस्तानी"।


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नारी ना कभी अबला थी ना है...उसके मन की खुद के प्रति निष्क्रियता ही उसे समाज में कभी सबल नहीं बनने दिया 
एक बार वो स्वयं को जागृत कर ले तो वो लक्ष्मी,दुर्गा और काली भी है....
मगर, आज नारी जाग भी रही है तो....उनकी राहें थोड़ी भर्मित सी हो रही है.... 


नारी-"अबला नहीं"




उठो नारी ! "आत्मजाग्रति" लाकर,
"आत्मशक्तियाँ" तुम बढ़ाओ !
"आत्मरक्षक" स्वयं बनकर ....
"निर्भय" निज जीवन बनाओ !!
शक्ति अपनी तुम जगाओ !!!


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"नशा "समाज का एक ऐसा दानव बन गया है जिसने कई जीवन को निगल लिया, कई घर तबाह कर दिया, कई बच्चों को यतीम बना दिया.....एक कर्तव्य परायण औरत कैसे उस आग में झुलसती है उसका आँखों देखा वर्णन... 

आइना---समाज का।।




रास्ते मे पुल पर खडी वही महिला गुस्से मे बडबडा रही थी,गला रूँधा हुआ था, चेहरे पर गुस्सा, दु:ख और चिंता......वह बडी परेशानी से पुल से नीचे की तरफ देख रही थी, एक हाथ से सिर पर रखे पल्लू को पकडे थी ,जो सुबह की मन्द हवा के झोंके से उडना चाहता था, महिला पूरी कोशिश से पल्लू संभाले थी जैसे वहाँ पर उसके ससुरजी हों.............।
मैंने भी नीचे झाँका,तारबाड के पीछे ,खेतों से होते हुये  नदी की तरफ,वही आदमी लडखडाती चाल से चला  जा रहा है,बेपरवाह,अपनी ही धुन में,....।


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गरीबी के चादर तले कामयाब होती एक जीवन की मार्मिक कहानी 





stairs
मिठाई का डिब्बा मेरी तरफ बढाते हुए वह मुस्कुरा कर बोली  "नमस्ते मैडम जी !मुँह मीठा कीजिए" मैं मिठाई उठाते हुए उसकी तरफ देखकर सोचने लगी ये आवाज तो मंदिरा की है परन्तु चेहरा ! नहीं नहीं वह तो अपना मुंह दुपट्टे से छिपा कर रखती है । 
नहीं पहचाना मैडम जी !   मैं मंदिरा 
मंदिरा तुम ! मैने आश्चर्य से पूछा, यकीनन मैं उसे नहीं पहचान पायी ,पहचानती भी कैसे , मंदिरा तो अपना चेहरा छिपाकर रखती है ।

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एक ऐसी रचना जो कवित्री ने अपनी लड़कन अवस्था में लिखा था.... 
उस बालमन में अपने अन्नदाताओं के प्रति ऐसी भावना कैसे जगी वो तो राम जाने 
मगर,इतनी सुंदर रचना पर अब तक किसी की नज़र नहीं पड़ी थी... 
सो मैं ढूँढ लाई आप सब के लिए.....


कृषक अन्नदाता है....






आज पुरानी डायरी हाथ लग गयी,टटोलकर देखा तो यह रचना आज के हालात पर खरी उतरती हुई दिखी ,आज किसानों की स्थिति चिन्ताजनक है........ मुझे अब याद नहीं कि तब  करीब 30 वर्ष पहले किन परिस्थितियों से प्रभावित होकर मैंने यह रचना लिखी होगी ?........कृषकोंं की चिन्ताजनक स्थिति या फिर लोगों में बढ़ती धनलोलुपता.........?
तब परिस्थितियाँ जो भी रही हो................अपने विद्यार्थी जीवन के समय की रचना आप लोगों के साथ साझा कर रही हूँ.................आप सभी की प्रतिक्रिया के इंतज़ार में---------"मेरे छुटपन की कविता"



कागज का छोटा सा टुकड़ा (रुपया)
पागल बना देता है जन को
खेती करना छोड़कर
डाकू बना रहा है मन को...।

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यही तो समय है, स्वयं को निखारेंं
     जानेंं कि हम कौन हैं ?
इस विषय पर मेरी और सुधा जी की सोच बिलकुल एक सी है, 
इसलिए ये रचना मुझे बेहद पसंद है। 
जीवन की आखिरी चंद दिन ही तो मिलते हैं हमें खुद के लिए 
फिर इसकी तैयारी हम पुरजोर क्यूँ ना करें...
क्यों ना इस आजादी का लुफ्त उठाए...
क्यों बँधे रहें मोह बंधन में....
अब तो हमारा भी एक-एक कदम उस ओर ही जा रहा है 
तो एक बार,सुधा जी के विचारों पर गौर जरूर फरमाईयेगा....


आओ बुढ़ापा जिएं......






वृद्धावस्था अभिशाप नहीं.... यदि आर्थिक सक्षमता है तो मानसिक कमजोर नहीं बनना.....सहानुभूति और दया का पात्र न बनकर, मनोबल रखते हुए आत्मविश्वास के साथ वृद्धावस्था को भी जिन्दादिली से जीने की कोशिश जो करते हैंं , वे वृृद्ध अनुकरणीय बन जाते है.....।
मानसिक दुर्बलता से निकलने के लिए यदि कुछ ऐसा सोचें तो.......


अभिशाप क्यों हम समझें इसे
     निरानन्द बस तन ही है
आनन्द उत्साह मन में भरें तो,
    जवाँ आज भी मन ये है।
अतीती स्मृतियों से बाहर निकलके
नयेपन को मन से स्वीकार कर के
  वक्त के संग बदलते चलें
सुगम से सफर की हो कामनाएं
यही तो समय है स्वयं को निखारें
        जाने कि हम कौन हैं ?

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"डॉग लवर"हाँ आज कल ये नाम स्टेटस सिम्ब्ल बन गया है 
मगर ,इन डॉग लवरों से एक सवाल ?
इनका प्यार चंद दिनों में ही क्यों ख़त्म हो जाता है,जब इन कुत्तों की इन्हे जरूरत नहीं होती तो क्यों इन्हे लावारिस सड़कों पर छोड़ देते है ?
अय्यासी में पले ये कुत्ते जब खुद को गली के कुत्तों के साथ एडजेस्ट नहीं कर पाते तो वो कितने खुंखार हो जाते है,कभी सोचा है उन्होंने ?
लावारिस कुत्तों के कारण दिल्ली के सड़कों का ये हाल है कि-
10 बजे रात के बाद सड़क पर निकलते डर लगता है 
उनके डर से लोग मॉर्निंग वॉक तक पर नहीं जा पाते,कई बार इन कुत्तों का शिकार बन चुके है लोग...
बड़े शान से खुद को डॉग लवर बताने वालों,अगर सच्चा प्यार है तो उनके जीवन के आखिरी दिनों तक उनका साथ निभाओं,यदि किसी कारण आपको उन्हें त्यागना पड़े तो उन्हे उनकी सही जगह यानि नगर निगम तक छोड़कर आओ....
कुत्तों की इसी मनोदशा का सुंदर वर्णन है इस कथा में...




हैलो शेरू!बडे़ दिनों बाद दिखाई दिया,कहाँ व्यस्त था यार आजकल ?( डॉगी टाइगर ने डॉगी शेरू के पास जाकर बड़ी आत्मीयता से पूछा) तो शेरू खिसियाते हुए पीछे हटा और बुदबुदाते हुए बोला; ओह्हो!फँस गया.....
अरे यार!  परे हट! मालकिन ने देख लिया तो मेरी खैर नहीं.....यूँ गली के कुत्तों से मेरा बात करना मालकिन को बिल्कुल नहीं भाता....मेरी बैण्ड बजवायेगा क्या?....

टाइगर-- अरे शेरू! मैं कोई गली का कुत्ता नहीं!....अबे यार ! तूने मुझे पहचाना नहीं !!! ..… मैं "टाइगर" तेरे मालिक के दोस्त वर्मा जी का टाइगर......

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किशोरावस्था में बिपरीत लिंग के प्रति आकर्षण आम बात है 
यदि माता-पिता उस नाजुक दौड में बच्चों का सही मार्गदर्शन करें और सहयोग करें तो युवा कभी गलत राह नहीं अपनायेगे। 
वैसे,इश्क-मुश्क कहाँ बंधन मानता है वो अपनी राह बना ही लेता है
तो क्यों ना उन्हें सहयोग दे और सही राह चुनने में मदद करें 
दिल को छूती एक प्यारी कथा 






ऑण्टी! आपका बेटा शिवा रोज मेरे पीछे मेरे स्कूल तक क्यों आता है? जबकि वो तो सरकारी स्कूल में पढ़ता है न,  और आपके पड़ोस में रहने वाली दीदीयाँ शिवा का नाम लेकर मुझे क्यों चिढ़ाती है ?
आप शिवा को समझाना न ऑण्टी!  कि उधर से न आया करे। घर पर आयी मम्मी की सहेली से ग्यारह वर्षीय भोली सी सलोनी बोली तो दोनों सखियाँ ओहो! कहकर हँसने लगी...।

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"माँ" जो एक वक़्त में सारा घर संभालती है....वही माँ जीवन के आखिरी पलों में  
कैसे असहाय सी हो जाती है। 
हम बच्चों का कर्तव्य है कि जैसे उसने ताउम्र जिस प्यार और समर्पण से हमें संभाला है 
वही प्यार और समर्पण उन आखिरी पलों में हम भी उसे दे
वृद्ध होती माँ की शारीरिक और मानसिक दशा का मार्मिक चित्रण 
 

वृद्ध होती माँ........





हौसला रखकर जिन्होंने हर मुसीबत पार कर ली ,
अपने ही दम पर हमेशा, हम सब की नैया पार कर दी ।
अब तो छोटी मुश्किलों से वे बहुत घबरा रही हैं,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं ।


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सुधा जी,आपकी लेखनी पर माँ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहें 
यही प्रार्थना करती हूँ। 

आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और उपयोगी एकल चर्चा।
    बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी।

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  2. सुप्रभात, अनेक विषयों पर सराहनीय रचनाओं के सूत्रों का सुंदर संकलन!आभार!

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  3. बहुत अच्‍छी एकल चर्चा प्रस्‍तुतिं
    अच्‍छा लगा यह नया अंदाज

    जवाब देंहटाएं
  4. आ.कामिनी जी,आपके स्नेह से अभिभूत हूँ किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ समझ नहीं पा रही, आपने मेरी पुरानी भूली-बिसरी रचनाओं को आज चर्चा मंच पर शामिल कर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया से उन्हें मुकम्मल एवं सार्थक कर दिया इसके लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है...साथ ही आपकी नजर में अपने लिए सम्बोधन जो भूमिका में पढ़ा हृदय गदगद हो उठा सच कहूँ तो सोचा ही नहीं कभी कि लेखन की दुनिया में मेरी कोई पहचान होगी नहीं अपने लिखे को लेखन की तरह लिया बस आप सभी से ज्ञानार्जन के उपरांत जो भावमंथन हुआ उसे ब्लॉग पर सहेज लिया एवं आप सभी की प्रतिक्रिया के प्रोत्साहन ने पढ़ने से और जोड़ दिया...मेरा अकिंचन सा लेखन आज आपकी सराहना पाकर एवं चर्चा मंच का हिस्सा बनकर फूले नहीं समा रहा...इसके लिए आपका जितना धन्यवाद करूँ उतना कम है...मैं दिल से शुक्रगुजार हूँ आपकी एवं चर्चा मंच की ।
    बहुत बहुत आभार🙏🙏🙏🙏

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    उत्तर
    1. सुधा जी,जितनी खुशी आप को प्रस्तुति देखकर हुईं उतनी ही खुशी मुझे ये प्रस्तुति बनाते हुए मिली । आप के लिए प्रस्तुति बनाते वक्त आप की सभी रचनाओं को पढ़ने का सुअवसर बना। आप को ये सम्मान देना मेरा सौभाग्य है। इस ब्लॉग जगत ने हम महिलाओं को एक मंच पर एकत्रित होकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने और खुद को एक अलग नजरिए से देखने का,घर परिवार को सम्भालते हुए अपनी एक पहचान बनाने का
      अवसर प्रदान किया है ।जो शायद हमारी पिढी को कभी नहीं मिलता। इसके लिए इस ब्लॉग जगत और इस मंच का शुक्रिया।

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  5. एक सशक्त शब्द-चित्रकार, कवयित्री और लेखिका होने के साथ-साथ सुधाजी ब्लॉग जगत की ऐसी समर्थ समीक्षक हैं जिनकी विवेचना की सुधा के स्पर्श से एक मृतप्राय तंवंगी शुष्क साहिय-लता भी प्राणवंत और पुलकित हो उठे!!! इस सरस साहित्य-सुधा का शाश्वत प्रवाह बना रहे! सुधा जी को शुभकामनाएँ। कामिनी जी को इस प्रस्तुति हेतु आभार और साधुवाद!!!

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    1. आदरणीय विश्वमोहन जी आपकी सराहना मेरे लिए पुरस्कार स्वरूप है आप सभी का प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन पाकर ही मेरी अन्तर्मुखी लेखनी जैसा तैसा लिख पाने की हिम्मत करती है । आपका सानिध्य पाना अत्यंत सौभाग्य है मेरा ।
      तहेदिल से धन्यवाद एवं कोटिश नमन ।

      हटाएं
  6. सुधा जी का नाम ब्लॉग जगत के लिए स्थापित और प्राण वायु जैसा निर्मल है।
    आपकी लेखनी , साहित्य की बहु विधाओं पर निर्बाध चलती रही है, आपकी रचनाओं में रसात्मकता, काव्यात्मकता, शब्द सौंदर्य,और आज की पीड़ा यथार्थ रूप में सृजित होती है।
    इसमें वर्तमान परिस्थितियों से उत्पन्न पीड़ा छटपटाहट और यथार्थ उभर कर चित्रित होता है।
    सही मायने में सुधाजी बहुआयामी लेखन सरल सहज और प्रवाह मय भाषा में करती रही हैं।
    सुधाजी का ये एकल अंक उनके साहित्य मर्मज्ञ लेखन के लिए सदा ब्लॉग जगत में याद किया जाएगा,मेरी और सम्पूर्ण ब्लाग जगत की ओर से सुधाजी को असीम शुभकामनाएं,माँ वागीश्वरी का वरद हस्त उनके सिर पर सदा रहे।
    अनंत बधाईयाँ।🌷🌷
    कामिनी जी को इस महती श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार।
    कामिनी जी आपकी प्रतिबद्धता को साधुवाद।
    सादर सस्नेह।

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    उत्तर
    1. आ.कुसुम जी अभिभूत हूँ आपकी स्नेहासिक्त सराहना पाकर । आपका मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन संबल है मेरा ।
      बस आपको पढ़ते पढ़ते आपका अनुसरण करने की कोशिश करती हूँ । तिस पर आपकी सराहना पाकर मन बाग हो रहा है इस तरह असीम खुशी देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  7. सुधा जी की अनुपम रचनाओं का रसास्वादन कराता चर्चामंच का यह विशेषांक सही अर्थों में अनुपम अद्वितीय है ! सुधा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से भला कौन अछूता रह गया होगा ! उनकी सुन्दर सशक्त लेखनी को हृदय से अनेकानेक शुभकामनाएं एवं साधुवाद ! सुधा जी इसी प्रकार लिखती रहें, अपने प्रशंसकों को तृप्त करती रहें एवं साहित्य जगत में सफलता एवं यश के परचम लहराती रहें यही शुभकामना है ! आज का संकलन भी बहुत ही सुन्दर ! अनंत अशेष शुभकामनाएं एवं अभिनन्दन सुधा जी ! हमारी बधाई स्वीकार करें !

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    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.साधना जी ! ब्लॉग जगत में आकर सबसे पहले आपको ही पढ़ा था मैंने । आपकी अत्यंत उत्कृष्ट रचनाओं को मैं जब पढ़ती तो एक साथ कई रचनाएं पढ़ डालती । शायद आपको भी याद हो ।
      आज आपसे सराहना पाना पुरस्कार पाने जैसी असीम खुशी दे रहा है..कोटिश नमन🙏🙏🙏🙏।

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  8. बहुत ही सुंदर संकलन। प्रिय सुधा दी को हार्दिक बधाई।
    कामिनी जी ने सराहनीय भूमिका लिखा है। प्रिय सुधा दी के भावों की लड़ी को सहेज लिया है समय मिलते ही पढूँगी। कुछ दिनों से गाँव आई हुई हूँ सो काफ़ी व्यस्तता रहती है।
    एक बार फिर प्रिय सुधा दी को बहुत बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

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    उत्तर
    1. प्रिय अनीता जी हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका...वाकई आ.कामिनी जी की शुक्रगुजार हूँ ।
      आप सभी का दिल से धन्यवाद
      🙏🙏🙏🙏

      हटाएं
  9. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

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  10. मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद। आप सभी की उपस्थिति पाकर मेहनत सार्थक हुआ। मैंने मीना भरद्वाज जी की भी एकल प्रस्तुति बनाई थी मगर उसमें कुछ खास उपस्थित ना पाकर थोड़ी हतोत्साहित हुईं थीं, मगर फिर मैंने सोचा कि ये तो मैं अपनी खुशी से और अपनी खुशी के लिए कर रही हूं। ब्लॉग जगत की सभी महिला रचनाकारों के लिए मेरे हृदय में एक खास सम्मान और स्नेह है। क्योंकि इन में से अधिकांश रचनाकार मेरी ही तरह इस लेखन के माध्यम से अपनी अधुरी ख्वाहिशों को पुरा कर रही है तो उनके लिए कुछ विशेष कर मुझे हार्दिक खुशी मिलती है। एक बार फिर से आप सभी का शुक्रिया एवं सादर नमस्कार 🙏

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  11. सुधा दी कि लगभग हर पोस्ट मैं पढ़ती हूं। सुधा दी कि व्यक्तित्व और उनकी रचनाओं से ब्लॉग जगत बहुत अच्छी तरह परिचित है। सुधा दी लेखनी हमेशा यू ही चलती रहे और हमे उनकी अच्छी अच्छी रचनाये पढ़ने मिलती रहे यही शुभकामनाएँ।
    कामिनी दी, आपने उनकी ढेर सारी रचनाओं में से चुनिंदा रचनाओं को चयनित कर उसे मंच प्रदान करने का को कठीन कार्य किया है उसके लिए आपको साधुवाद।

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    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.ज्योति जी !आप सभी के सनेह सहयोग एवं मार्गदर्शन हेतु ।🙏🙏🙏🙏

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