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मंगलवार, अप्रैल 19, 2022

क्यों लिखती हूँ ?' (चर्चा अंक 4405)

  सादर अभिवादन 

आज की विशेष प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

आज की प्रस्तुति समर्पित है हमारे ब्लॉग जगत की एक ऐसी रचनाकार के नाम जो तब से इस घर में है जब से मुझे तो इसका अता-पता भी मालूम नहीं था। इस परिवार की सबसे खास और अनुभवी रचनाकार, चर्चाकार और यकीनन बेहतरीन टिप्पणीकार भी।

 जिनकी शुरूआती दिनों के रचनाओं पर तो सौ से भी ज्यादा टिप्पणियां है, इतनी प्रतिक्रियाओं की तो हम आजकल के रचनाकार कल्पना भी नहीं कर सकते। 

रचनाएँ भी ऐसी की एकबार को मन सोचने पर मजबूर हो जाता है कि इतने गहरे भाव आते कहाँ से है।इनकी अधिकांश रचनाओं में मन के जद्दोजहद से उत्पन्न  हुए कई सवाल होते हैं कुछ खुद से, कुछ समाज से,कुछ प्रकृति से और कुछ विशेष पौराणिक पात्रों से भी...

कवियत्री के शब्दों में 

कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... 

मन के भावों को

 कैसे सब तक पहुँचाऊँ

 कुछ लिखूं या

 फिर कुछ गाऊँ 

और उनके बारे में मैं कहती हूँ 

आप जो लिखती है हर दिल को छू जाता है और वो उसे गुनगुनाना चाहता है। 

आईये मिलते हैं हर दिल अजीज हमारी आदरणीया संगीता स्वरूप दी से 

मेरे नजरिये से उनकी रचनाओं का  विश्लेषण करना यानि सूरज को दीपक दिखाना होगा इसलिए वो हिमाक़त तो मैं नहीं कर सकती। बस,ये मेरा खुद की नज़र से एकबार उन्हें देखने का प्रयास भर है।  

संगीता दी,जिनसे मैं तो काफी दिनों बाद मिली।जिस वक़्त मैं इस घर की सदस्य बनी थी तब, शायद वो कुछ समय के लिए कही और भ्रमण कर रही थी। लेकिन जब से मिली हूँ मैंने देखा है कि वो हर किसी को अपनी मनमोहक शब्दों के मोहपाश में बांध रखी है। घर की बड़ी सदस्य की तरह उन्होंने सभी को एक समान स्नेह दिया।  उनकी नजरों से खुद को देखना बेहद सुखकर होता है। हमारी प्रशंसा में कहे उनके शब्दों से हमारा मनोबल कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। इस ब्लॉग जगत परिवार में वो हम सभी के लिए आदरणीय तो है ही प्रिय भी है। इनकी अनगिनत अनमोल रचनाओं में से कुछ को चुनना बेहद दुस्कर कार्य है। तो मैं आप सभी  के लिए उनकी वो खास रचनायें लेकर आई  हूँ जो शुरूआती दिनों के है 

और उनमे से कुछ तक आप अभी पहुँच नहीं पाए है।  

तो प्रस्तुत है उनमे से मेरी पसंद की चंद रचनायें......

शुरू करते हैं एक सुंदर प्रार्थना के संग 

मधुसूदन






ऐ मेरे मधुसूदन ! 
नहीं चाहती कि , 
मैं बनू  कोई राधा ,
या फिर मीरा , 
न ही रुकमणि
और न ही सत्यभामा । 
मैं तो चाहती हूँ 
बनू बांसुरी तेरी 

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मोहब्बत में कोई लेन-देन हो ही नहीं सकता और वो मोहब्बत अगर परमात्मा से हो...?
भगवान के प्रति सच्चे प्यार को बड़े ही सुंदर भाव से पिरोया है आपने 

मोहब्बत





मोहब्बत में

पाने से ज्यादा

देने की चाहत होती है

इसीलिए

कभी तेरे सामने

मैंने अपना हाथ

फैलाया नहीं।

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इंसान कितना भी बुढ़ा हो जाये बचपन की यादों से वो खुद को कभी अलग नहीं कर पाता,वो सुनहरा वक़्त एक बार फिर से जीने की ख़्वाहिश हर दिल में होती है...





अक्सर अकेली स्याह रातों में
अपने आप से मिला करती हूँ
और अंधेरे सायों में
अपने आप से बात किया करती हूँ।
याद आते हैं वो
बचपन के दिन


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माँ के गर्भ में साँस लेते हुए
मैं खुश हूँ बहुत
मेरा आस्तित्व आ चुका है
बस प्रादुर्भाव होना बाकी है।
 खुद को जन्म देने के लिए क्या आज भी एक बेटी को माँ से प्रार्थना करनी होगी ?
एक बेहद मार्मिक सृजन 


माँ ! मुझे जन्म दो / रचयिता सृष्टि की






माँ ! मैं तो तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ , तुम्हारी ही कृति हूँ
तुम्हारी ही संरचना हूँ , तुम्हारी ही सृष्टि हूँ।
माँ ! मुझे जन्म दो, हे माँ ! मुझे जन्म दो

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जबकि वही बेटी एक दिन फिर सृजनकर्ता बनती है.... 
बड़ी होकर वो बिना किसी सुर-ताल के कर्तव्यों की डोर से बंधी
 ताउम्र नाचती रहती है, एक कुशल नृत्यांगना की तरह....
नारी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को बेहद खूबसूरती से उकेरा है दी ने 
जो खासतौर पर मुझे बेहद पसंद है....

नृत्यांगना ---






जीवन के संगीत पर 


थिरकती रहतीं हैं  स्त्रियाँ 


नही होती ज़रूरत 


किसी साज़ की 


या कि किसी सुर ताल की ,


मन और सोच की 


जुगलबंदी 


नचाती रहती है उसे 


अपनी थाप पर । 



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हर पीढ़ी में एक माँ अपनी बेटी से ये वादा करती है और 

यकीनन इसी का परिणाम है आज की नारी..... 






मैं तुम्हारे हर ख्वाब
चुन लुंगी
अरमानो का खून
नहीं होने दूंगी
आँख से कतरा
नहीं बहने दूंगी
ये वादा है मेरा तुमसे
एक माँ का वादा है
जिसे मैं ज़रूर
पूरा करुँगी.


मगर,इतना आसान नहीं
 होता है वादों को पूरा करना  
क्योंकि  जिंदगी हर घड़ी एक नया  इम्तहान जो लेती रहती है 
जीवन संघर्ष वयां करती लाज़बाब सृजन  







ज़िंदगी में इम्तहान तो
हर घड़ी चला करते हैं
कुछ स्वयं आ जाते हैं सामने
तो कुछ हम खुद चुन लिया करते हैं
और जो बचते हैं वो
हम पर थोप दिए जाते हैं ।
और मान लिया जाता है कि
ज़िंदगी के इम्तिहान में
हमें सफल होना है ।


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विज्ञान ने हमें तरक्की तो दी है मगर हमारा विनाश भी बहुत कर रहा है 
अस्त्र-शस्त्र का निर्माण कर हम स्वयं का ही संहार कर रहे हैं 
इसका जीता-जागता उदाहरण अभी रूस और यूक्रेन का युद्ध है....







ज्ञान चक्षु खोल कर
विज्ञान का विस्तार कर
जा रहे हो कौन पथ पर
देखो ज़रा तुम सोच कर।

कौन राह के पथिक हो
कौन सी मंजिल है
सही डगर के बिना
मंजिल भी भटक गई है।

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क्या आपके मन 
में भी कभी ये विचार आता है कि-
शहीदों की आत्मा से कभी हमारा साक्षात्कार हुआ और उन्होंने पूछा कि -
तुमने एक साहित्यकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है तो....?

एक मुलाक़ात ...शहीद की आत्मा से








कल रात



एक विचित्र बात हो गयी


स्वप्न में भगत सिंह की


आत्मा से


मेरी मुलाकात हो गयी


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"गांधारी" महाभारत की एक ऐसी पात्र जिस पर प्रश्नचिन्ह लगना जायज है 
ये सवाल मेरे मन में भी उठता है....
अपनी आँखों पर पट्टी बांधते वक़्त उनकी मनोदशा क्या होगी ?
गांधारी को मनोदशा को समझने और समझाने का एक अलग अंदाज ....
जिस पर अनगिनत प्रतिक्रिया है। 

सच बताना गांधारी !








हे गांधारी !

तुम्हारे विषय में बड़ी जिज्ञासा है 

उत्तर  पाने की तुमसे आशा है 

जानना चाहती हूँ  तुमसे कुछ तथ्य 

क्या बता पाओगी पूर्ण सत्य ?

पूछ ही लेती हूँ तुमसे 

-------------------------

कवयित्री खुद से सवाल करती है कि क्यों लिखती हूँ...? 
और हमारा जबाब-क्या खूब लिखती है आप
जिससे यकीनन आप सभी भी सहमत है....

क्यों लिखती हूँ ?






चिंतन हो

जब किसी बात पर

और मन में

मंथन चलता हो

उन भावों को

लिख कर मैं

शब्दों में

तिरोहित   कर जाऊं ।

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जैसा कि-मैंने कहा ही है कि-
उनकी रचनाओं का विश्लेषण करना मेरे लिए तो संभव नहीं है 
ये प्रस्तुति मेरी तरफ से संगीता दी के लिए सिर्फ मेरा स्नेह और आदर भाव है 
परमात्मा उन्हें स्वस्थ रखें,सकुशल रखें 
उनकी लेखनी पर माँ शारदे की कृपा बनी रहें 
यही कामना करती हूँ। 

आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहन संगीता स्वरूप जी मेरी बहुत पुरानी ब्लॉगर मित्र हैं|
    आज कामिनी सिन्हा द्वारा उनके बारे में और उनकी रचनाओं के बारे में चर्चा मंच पर यह विशेष अंक देखकर एक सुखद अनुभूति हुई|
    संगीता स्वरूप जी को बहुत-बहुत बधाई हो और आपका बहुत-बहुत आभार कामिनी सिन्हा जी|

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  2. चर्चा मंच का यह विशेष अंक अतुलनीय है, संगीता जी की रचनाएँ वर्षों से पढ़ती आ रही हूँ, कुछ आरम्भिक रचनाएँ छोड़कर शायद सभी पढ़ी हैं। उन्हें पढ़ना सदा ही सुखद आश्चर्य से भर जाता है।

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  3. Bahut hi Shandar aaj ke Charcha Manch ki post.... aadarniy Sangeeta ji ke blog ke bare me padhakar bahut Achcha Laga

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  4. आज की चर्चा संगीता जी की रचनाओं के माध्यम से भावनाओं और विचारों का मंथन करती है. संगीता जी के लेखन को एक रचनाकार की दृष्टि से समझने का अनुभव सुखद
    रहा. दोनों का अभिनन्दन.

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  5. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार

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  6. क्षमा चाहूँगी कामिनी कि आज की विशिष्ट चर्चा मेरे नाम थी और मैं अब आ पाई हूँ ।
    सबसे पहले तो इस दुष्कर कार्य के लिए हृदय तल से आभार । आज अपनी ही रचनाओं को पुनः पढ़ना मन को पुलकित कर गया है ।
    रूप चंद शास्त्री जी का आभार , उनके शब्द 14 साल पीछे ले गए हैं । अनिता जी का हार्दिक धन्यवाद कि आज भी नियमित रूप से मेरे ब्लॉग पर आती हैं और जैसा भी उल्टा सीधा लिखती हूँ सराहती हैं ।
    इतने प्यारे और भावुक कर देने वाले शब्दों से मुझे नवाज़ा है कि कुछ लिखते नहीं बन रहा ।
    एक बात जरूर है कि मुझे ब्लॉग जगत में सच ही बहुत प्यार और सम्मान मिला है । इसके लिए मैं अपने पुराने और अभी जिनसे परिचय हुआ सभी ब्लॉगर साथियों का आभार प्रकट करती हूँ ।
    आपसे अनुमति ले कर यह चर्चा फेसबुक पर शेयर कर रही हूँ ।।
    धन्यवाद ।
    कामनी आपको बहुत सारा स्नेह ।।

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  7. आ. संगीता जी के उत्कृष्ट लेखन को शेयर करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ. कामिनी जी! हालांकि मैं देर से आई हूँ व्यस्तता और अस्वस्थता के चलते नियमित नहीं रह पाती ...पर आज सौभाग्य से आना हुआ और सौभाग्य से आपको पढना हुआ... आपकी रचनाओं में यथार्थ और जीवन अनुभव भरा रहता है ...मैने आपको बहुत देर से जाना इसलिए बहुत रचनाएं अभी अछूती हैं मुझसे...पर हर सम्भव प्रयास है कि आपको पढूँ और आपसे सीख लूँ...शत-शत नमन आपको एवं आपकी प्रभावशाली लेखनी को।🙏🙏🙏

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी ,
      आप अपनी सेहत का ध्यान रखें । आप जैसे पाठक मुश्किल से मिलते हैं । मेरे और मेरी रचनाओं का अहोभाग्य कि आप की सार्थक प्रतिक्रिया मिली ।
      आभार ।।

      हटाएं
  8. संगीता जी फिर वही दिन जीने का मन करता है।

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    उत्तर
    1. रेखा जी ,
      मन तो सच में करता है कि बीते दिन जैसा फिर से माहौल हो लेकिन रास्ते में चलते हुए बहुत से साथी रास्ता बदल चुके हैं । नए साथियों के साथ जितना भी सफर पर किया जाए बेहतर है ।।आभार

      हटाएं
  9. मेरा भी सौभाग्य रहा कि शुरू से जुड़ा हूँ और पढ़ने का अवसर मिला है।

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  10. मेरा भी सौभाग्य रहा कि शुरू से जुड़ा हूँ और पढ़ने का अवसर मिला है।

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  11. बहुत सुन्दर सच लिखा है कामिनी जी ने। मेरा वास्ता कुछ ही वर्षों से है ब्लॉग की दुनिया से और Sangeeta Swarup जी से…परन्तु इतने कम समय में भी उनसे अभिन्न मित्रता का अहसास हुआ। उनके अन्दर एक विचारक, कवि नजर आता है । किसी भी विषय पर बात करने पर उनकी स्पष्टवादी व सुलझी हुई विचारधारा दृष्टिगोचर होती है।इसके अतिरिक्त उदारता , बुद्धिमत्ता के साथ-साथ दृढ़ता व अच्छे मित्र के दर्शन हुए। उनके अन्दर सम्वेदनशीलता के साथ गम्भीरता भी है। कविताएं तो जैसे उनके स्वच्छ ह्रदय का दर्पण हैं। गद्य और पद्य दोनों में कमाल लिखती हैं हमारी मित्रता भी इसी तरह एफ बी पर मैसेज करते- करते हो गई थी कभी। कामिनी जी आपको बहुत साधुवाद जो आपने आज उन पर लिखा और संगीता जी को ढेर सा प्यार और शुभकामनाएँ 🌹

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  12. जो सबकी चर्चा में सहायक हैं, उनकी चर्चा का महती कर करने के लिए साधुवाद। ब्लॉगिंग के प्रारंभिक दिनों से ही उनका साथ रहा है। स्वयं सर्वोत्तम लेखन कर ने के बावजूद नए रचनाकारों का अपनी टिप्पणीयो द्वारा प्रोत्साहन कर आगे बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

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  13. देर से ही सही आप सभी की उपस्थिति और आशीर्वाद पाकर बेहद खुशी हुई। मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आप सभी को 🙏

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