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मंगलवार, अप्रैल 26, 2022

"संस्कार तुम्हारे"(चर्चा अंक 4411)

सादर अभिवादन 
मंगलवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीया आशा लता जी की रचना से) 

कल्पना न थी तुम

संस्कारों को  भूल जाओगे

आधुनिकता के साथ अपने

 चलन को भी तिलांजलि दोगे|


आधुनिकता को अपनाने में कोई बुराई नहीं

बुरा है अपने संस्कारों को भुला देना

जो आज हम सभी कर रहे हैं..

खैर, चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

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दोहे "लोग कर रहे बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



सभी तरह की निकलती, बातों में से बात।
बातें देतीं हैं बता, इंसानी औकात।।
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माप नहीं सकते कभी, बातों का अनुपात।
रोके से रुकती नहीं, जब चलती हैं बात।।

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मेहनत रंग लाई !! (लघु कथा )


कल मुनिया ने पापा से पूछ ही लिया ,''पापा आप ने क्या पढ़ाई की है ?'' सुनील ने बात टाल दी | उसे लगा अगर  मुनिया को डॉक्टर बनाना है तो उसे पढ़ाई करनी ही पड़ेगी |  उसने मैट्रिक का फॉर्म भर दिया | मेहनत रंग लाती  है | आज मुनिया डॉक्टर है ,सुनील का काम बढ़िया चल रहा है और घर के  बाहर  बोर्ड लगा है सुनील मिस्त्री ,बी ए ,एल.एल बी !!

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तीन विचार


अब 

मंदिर तोड़े गए 

पुस्तकालय जलाए गए 

अधिकारों से वंचित किया गया 

मारा गया 

कठोरता की सीमाएँ लांघी गयीं 

ग़ुलाम बनाया गया, बेचा गया 

अब बहुत हुआ, अब और नहीं 

अब परिवर्तन अवश्यंभावी है !


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मिलने की बेक़रारी - -



उतरती है चाँदनी धीरे - धीरे, मुंडेरों से
हो कर, झूलते अहातों तक, फिर भी
मिलती नहीं, रूह ए मकां  को
तस्कीं, इक रेशमी अंधेरा
सा घिरा रहता है दिल
की गहराइयों तक,
हम खोजते हैं
ख़ुद को
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मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की नज़्म - रहबर
कठिन उर्दू शब्दों से अनभिज्ञ, हम जैसे लोगों के लिए, मैंने कठिन शब्दों का हिंदी भावार्थ कोष्ठक में दे दिया है. इस से नज़्म के प्रवाह में बाधा आती है पर उसे समझने में सुविधा हो जाती है.---------------------एक गज़ल-सब् तेरी झील सी आँखों को ग़ज़ल कहते हैँ


बर्फ़ जब धूप में पिघले तो सजल कहते हैं

सब तेरी झील सी आँखों को ग़ज़ल कहते हैँ


होंठ भी लाल,गुलाबी हैँ,फ़िरोजी, काही

इनको शायर क्या सभी लोग कंवल कहते हैँ


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अब और न कुछ कह पाऊंगा, मन की अभिव्यक्ति मौन सही !


कुछ चित्रकार आसानी से 
निज चित्र, उकेरे जाते हैं !
आहिस्ता से मुस्कानों के 
गहरे रंग , छोड़े जाते हैं !
पत्थर पर निशाँ पड़े कैसे 
अनजाने, दिल में कौन बसा 
अनचाहे स्मृति चिन्ह बने 
मेटे न मिटाये , जाते हैं !

कहने को जाने कितना है पर यह अभिव्यक्ति मौन सही !

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लसोड़े या लेसवा को साल भर के लिए कैसे स्टोर करे?


लसोड़े बहुत ही कम समय के लिए आते है। बाद में यदि हमें लसोड़े की सब्जी खाना है तो साल भर इंतजार करना पड़ता है। यदि आपको लसोड़े की सब्जी पसंद है और आप इसे स्टोर करना चाहती है तो जानिए लसोड़े को साल भर के लिए स्टोर करने का तरीका... 

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आज का सफर  तक,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आज के संकलन में मेहनत रंग लाई लघुकथा पढ़ कर अच्छा लगा।
    सुन्दर प्रस्तुति।
    वैसे चर्चामंच के संचालक और संपादक जी मुझसे नाराज़ हैं क्या?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर धन्यवाद अनिल जी.

      हटाएं
    2. नमस्कार अनील जी 🙏 कोई नाराज़गी नहीं है, ईमेल के द्वारा आप से जुड़ने पर भी आप का पोस्ट रीडिंग लिस्ट में नजर नहीं आता है इस लिए आप का पोस्ट लाने में असमर्थ हूं इसका मुझे खेद है।इस समस्या का समाधान किजिए 🙏

      हटाएं
  2. सभी लिंक्स सुंदर और पठनीय।सादर अभिवादन कामिनी जी

    जवाब देंहटाएं
  3. लघुकथा को स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद कामिनी जी!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात! विविधतापूर्ण विषयों पर सुंदर रचनाओं के सूत्रों का संकलन, आभार आज की चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए, सभी रचनाकारों को बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी

    जवाब देंहटाएं
  6. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।

    जवाब देंहटाएं

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