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बुधवार, अप्रैल 13, 2022

"गुलमोहर का रूप सबको भा रहा" (चर्चा अंक 4399)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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"शीतलता का अन्त हुआ" 

"बैशाखी की धूम" 


खेतों में बिरुओं पर जब, बालियाँ सुहानी आती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

सोंधी-सोंधी महक उड़ रही, गाँवों के गलियारों में,
खुशियों की भरमार हो रही, आँगन में, चौबारों में,
बैसाखी आने पर रौनक, चेहरों पर आ जाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।। 

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"गुलमोहर का रूप सबको भा रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

हो गया मौसम गरम,
सूरज अनल बरसा रहा।
गुलमोहर के पादपों का,
रूप सबको भा रहा।। 

उच्चारण 

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अमर लेखनी कितनों ने  किया है त्याग , कितनों ने किया बलिदान। कितने मर  कर  जीवित है, कितनों  का  मिटा  निशान।। 

- अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर। 

काव्य दर्पण 

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दौलत वालों के सब ठाठ निराले हैं 

मेरी  हाल ही में एक जदीद ग़ज़ल मुकम्मल हुई।इस ग़ज़ल के कुछ शेर ऐसे हैं जो कई साल पहले उस समय की परिस्थिति और परिदृश्य पर हुए चिंतन के फलस्वरूप सृजित हुए थे।मैंने वो ग़ज़ल फेसबुक पर "ग़ज़लों की दुनिया" समूह में पोस्ट की।इस ग्रुप से मैं पिछले लगभग सात साल से जुड़ा हुआ हूँ।इस पटल से अच्छी ग़ज़लें कहने वालों के साथ-साथ ग़ज़लों का शौक़ीन एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग भी जुड़ा हुआ है। 

जुमले  और  नारे  ही  सिर्फ़ उछाले हैं,
मुद्दे   तो   हर   बार   उन्होंने  टाले  हैं।

देख रहे  हैं वो  चुपचाप चमन जलता,
कैसे  कह  दें  हम  उनको,रखवाले हैं। 

मेरा सृजन 

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......बेटी के घर से लौटना :) 

बहुत जरूरी है पहुँचना
सामान बाँधते बमुश्किल कहते पिता
बेटी जिद करती
एक दिन और रुक जाओ न पापा
एक दिन 

शब्दों की मुस्कुराहट :) 

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निठल्लों की फ़ौज और नेताओं की मौज 

(आलेख : स्वराज करुण) 
 अगर पढ़ना चाहें तो कृपया ध्यान से और धीरज से पूरा पढ़िएगा । महान विभूतियों द्वारा निर्मित हमारे देश के  संविधान ने  सबको अपनी- अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार पूजा-  प्रार्थना , इबादत या अरदास करने का अधिकार दिया है। कोई किसी के धार्मिक कार्यो में हस्तक्षेप न करे , किसी के पूजा स्थल को आहत न करे ,तो सब कुछ शांति से चल सकता है। आम तौर पर अब तक ऐसा चल भी रहा था। 
   हमारा देश पूरी दुनिया में सामाजिक -धार्मिक सदभाव की मिसाल बना हुआ था । कमोबेश आज भी है।  सब एक- दूसरे के तीज-  त्यौहारों में हँसी -खुशी शामिल होते थे 

मेरे दिल की बात 

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दाता तुम मेरे हो 

मैंने हाथ फैलाया तुम्हें पाने को
मुझ पर कृपा करना प्यार बरसाना
दाता तुम मेरे हो मेरे ही रहना
दाता मुझ पर महर करना भूल न जाना

Akanksha -asha.blog spot.com 

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प्यास 

ज़मज़म ही चाहिए न सादा आब चाहिए ।। गंगा का जल न रूद ए चनाब चाहिए ।। बेशक़ तड़प रहा हूॅं प्यास से मगर मुझे , दो घूॅंट ही सही फ़क़त शराब चाहिए ।। -डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

डॉ. हीरालाल प्रजापति का "कविता विश्व" 

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बौराई आँखें

भारी जगी जगाई आँखें
नींद लिए बौराई आँखें

काम ढूँढती दर दर भटकी
गुदड़ी की ये जाई आँखें 

रोटी मिली प्याज़ की खातिर
जगह जगह भटकाई आँखें

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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हार कर भी मुस्कुराना ही तेरी जीत है 

 हार कर भी मुस्कुराना ही तेरी जीत है,

बीते लम्हों को भूल जाना ही 

दुनिया की रीत है।

AAJ KA AGRA 

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मुठी भर कलम तबा की स्याही, ताको विद्या कभऊँ न आई 

नए-नए पेन का उपयोग करने का अपना ही मजा है, बस उसी मजे को लेते हुए घर आते ही उसमें स्याही भरी गई और लिखना शुरू. ऐसे ही एक दिन अपने कमरे में बैठे कुछ लिखा पढ़ी हो रही थी. उसी समय सबसे छोटे वाले भाई का आना हुआ. उसने पेन देखा और आश्चर्य से उसे अपने हाथ में लेकर बोलाये तो बहुत अच्छा लग रहा, बहुत छोटा भी है. उसकी आँखों की चमक बता रही थी कि अगले को वो पेन चाहिए है. यहाँ एक पल रुक कर आप सबको बता दें कि पेन, घड़ी के शौक भी उसे हमारी तरह रहे हैं. हमने कहा कि वो पेन रख दो, तुम्हारे लिए अलग रखा है एक पेन. 

रायटोक्रेट कुमारेन्द्र 

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मनुष्य से पहले: I से Insects 

पिछली पोस्ट में हमने बहुकोशकीय जीवों के विषय में पढ़ते हुए यह जाना कि पहले बहुकोशकीय जीव कब धरती पर आए। आज की पोस्ट में हम कीटों यानि इन्सेक्ट्स की बात करेंगे। आपको यह टॉपिक अजीब लग रहा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा माना जाता है कि अगर संख्या की हिसाब से देखा जाए तो धरती पर पाए जाने वाले सजीव जीवों में से 90 प्रतिशत जीव कीट या इन्सेक्ट्स ही होते हैं 

दुई बात 

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पाकिस्तान के ‘हाइब्रिड-प्रशासन’ का रूपांतरण 

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शोक गीत 

नहीं चाहती आर्त हृदय की
मेरी कोई भी पुकार अब
कभी भी तुम तक पहुँचे,
नहीं चाहती व्यथा विगलित
मेरा एक भी शब्द कभी भूले से भी
तुम्हारी आँखों के सामने से गुज़रे 

Sudhinama 

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आज लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभता
    आभार सहित धन्यवाद आज के अंक में मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सार्थक और सामयिक चर्चा। इस चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए मंच का आभार🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को भी स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा मंच में सभी प्रस्तुतियाँ शानदार.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर सराहनीय रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी । आपको मेरा नमन और वंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार प्रस्तुतियाँ चर्चा में स्थान देने के लिए मंच का आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|

    जवाब देंहटाएं

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