सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय शास्त्री जी के गीत 'नेह का बिरुवा यहाँ कैसे पलेगा' से -
कामनाओं का प्रबल सैलाब जब बहने लगा,
भावनाओं का सबल आलाप ये कहने लगा,
नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गीत "नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा"
कामनाओं का प्रबल सैलाब जब बहने लगा,
भावनाओं का सबल आलाप ये कहने लगा,
नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
बेदाग़ यहाँ कोई नहीं, चश्म ए अंदाज़ है
अपना अपना, जो हथेली पर रुका
कुछ पल के लिए वो एहसास
ए बूंद है मुहोब्बत, जो
छलक गया मेरी
पलकों से हो
कर..
अपना अपना, जो हथेली पर रुका
कुछ पल के लिए वो एहसास
ए बूंद है मुहोब्बत, जो
छलक गया मेरी
पलकों से हो
कर..
पाकर के आशीष तुम्हारा,
दुर्बल भी बलवान बने।
मूरख ज्ञानी बन जाए औ,
निर्धन भी धनवान बने।
दर्शन करके माँ दुर्गे का,
मन भक्तों का नित हरषे।
मैया कृपा तेरी बरसे।
तभी चूहे ने बेल बजाई
गुड़िया उठकर गेट पे आई l
चूहा बोला बिल्ली बाहर
मुझको कर लो टेंट के अंदर
इसे आतंक से अब तोड़ने का ख़्वाब मत देखो
यहाँ योगी का शासन है गुरु गोरख की बानी है
मुकुट भारत का नवरत्नों का यह फीका नहीं होगा
ये चिड़िया स्वर्ण की असली,नहीं सोने का पानी है
मुझ तक नहीं आती हैकभी कोई ढाढ़स की आवाज़ अपना ढाढ़स होने को मुझे ही औरों का ढाढ़स होना पड़ता है
जिस जिस तक मैं पहुँचीवो सब मेरे खुद तक पहुँचने के ही उपक्रम थेमाना आसान नहीं होता
उस जगह से अपमान का घूंट पीकर
खामोशी से लौटना
जिस जगह की खुशहाली के लिए
मन्नतो की चिट्टियां ईश्वर के चरणों पर
अनगिनत बार आपने अर्पण की हो तमाम गैर ज़रूरी चीज़ों के बीचसबसे गैर ज़रूरी चीज़ है इंसानियतआज के वक़्त में सबसे ज़्यादा आउटडेटेड और खतरनाक़ इसलिए चुन चुनकर निकालना चाह रहे हैं लोग इसे अपनी आत्मा सेइसका एक भी अंशतबाह कर सकता है उनकी हसरतों कोवरेण्य नवगीतकार गणेश गम्भीर जी के पाँच नवगीतमाँ! तुम्हारा नहीं होनाफूल सहलातीहवा कानमी खोना!
आँख मेंआकाश हैजितना भी फैलाधीरे-धीरेहो रहा हैकुछ मटीलादोस्तों, चावल के आटे की कुरडई (Chawal ke aate ki kurdai) बनाने में वक्त और मेहनत बहुत ही कम लगती है। मतलब कम मेहनत में आप कुरडई खाने और खिलाने का मजा ले सकते है। आइए बनाते है चावल के आटे की कुरडई... आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
उस जगह से अपमान का घूंट पीकर
खामोशी से लौटना
जिस जगह की खुशहाली के लिए
मन्नतो की चिट्टियां ईश्वर के चरणों पर
अनगिनत बार आपने अर्पण की हो
माँ! तुम्हारा नहीं होना
फूल सहलाती
हवा का
नमी खोना!
आँख में
आकाश है
जितना भी फैला
धीरे-धीरे
हो रहा है
कुछ मटीला
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत ही बढ़िया संकलन आप सभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
बेहतरीन और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति|÷<
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|
बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना की सूचना के लिए |
बहुत अच्छी सार्थक चर्चा।कई नए ब्लॉग्स से परिचय के लिए साथ ही इस कजरच में फुलबगिया को जगह देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह! तथ्य और कथ्य से परिपूर्ण प्रभावशाली रचनाओं पर बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा 🌷🌷👌👌👍👍
जवाब देंहटाएंप्रभावी और समृद्ध अंक अनीता सैनी दीप्ती जी का कृतज्ञ मन से आभार
जवाब देंहटाएंप्रभावी और समृद्ध अंक अनीता सैनी दीप्ती जी का कृतज्ञ मन से आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी🙂🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय चर्चा अंक,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय अंक।
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