स्नेहिल अभिवादन!
प्रस्तुत है बुधवार की चर्चा।
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गीत "भय-आतंक मिटाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"भू का अभिनव शृंगार लिए,
नूतन सम्वत्सर आया है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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यही सनातन धर्म सिखाता कृष्ण की गीता को चाहे सबने न भी पढ़ा हो पर केवल परमात्मा का नाम ही सत्य है, इससे कौन अनभिज्ञ है। भारत की इस संस्कृति का हमें सम्मान करना है और इसकी गूंज सारे विश्व तक पहुँचे इसलिए इसका पालन और विस्तार करना है। डायरी के पन्नों से
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प्रार्थना के मेरे उद्गार सुन लो शारदे
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चलो री सखी देवी मनाइ लेइ (लोकगीत)
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अम्बर में घिर आए घन
पछुआ चलती सनन सनन और
मेघों ने छेड़ा जीवन राग
पुष्पों में खिल आए पराग
हर्षित धरती का हर कण
पछुआ चलती सनन सनन
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न जाने कब चमकेगा
कितने योग आए राशी में
सितारों में चमक दिखलाते |
सच की परिक्षा में
एक भी सफल न हुआ
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मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत मेरी पीड़ा तुम क्या जानो
कितने दर-दर में भटकी हूँ।
छोड़ा है जबसे दर तेरा,
बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।
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निज मन को क्यों हम मलिन करें,
जो पल-पल रूप बदलता हो
उसे माया समझ नमन करें !
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एक थी कावेरी पागल से अस्त-व्यस्त बालों वाली कावेरी बचपन से जवानी तक और उसके आगे भी बोझ होने का बोझ उठाते रही । बांझ चाची के पास छोड़ दिया तो बचपन उस धरती पर गुजरा कावेरी का जिस धरती पर कभी बीज अंकुरित नहीं हुआ था । चाची से तो ममता नहीं मिली पर हां जीवन का गणित जरूर सीख लिया । जिस दिन डांट पड़ती उस दिन उसके बाल नहीं बनते और नन्हे हाथों से कावेरी अपने बाल सवारती स्कुल पहुंचने में देरी होती अगर गणित के अध्यापक कक्षा में होते तो खूब धुलाई होती । वैसे भी कावेरी को गणित और गणित का मास्टर दोनों यमराज से लगते । जबरदस्ती पहले बैंच पर बिठाया जाता और जिस दिन बोर्ड के तरफ उसकी सवारी गणित के अध्यापक कक्षा में निकालते उस दिन बच्चे खूब हंसते और शर्म से गडी गडी कावेरी बगीजे के आम के नीचे बैठकर खूब रोती वो सीखना चाहती थी पर सिखाएगा कौन यह सवाल था कावेरी
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अंधेर-नगरी के चौपट्ट राजा के राज्यारोहण से पूर्व की कथा
‘वत्स ! अब तू अंधेर-नगरी के राजनीतिक दलदल में कूद पड़. मेरी ओर से तेरी शिक्षा पूर्ण हो चुकी है !’
महा-घाघ ने अपने हाथ जोड़ कर गुरुघंटाल से कहा –
‘गुरु जी ! आपकी चरण-धूलि तो ले लूं और यह भी सुनिश्चित कर लूं कि यह महा-घाघ विद्या आप किसी और को न दे पाएं !’
इतना कहकर महा-घाघ ने गुरुघंटाल को उनके पैर से उठा कर, उन्हें ज़मीन पर पटक दिया और फिर उनका गला दबा, उनको अपना अंतिम प्रणाम कर, वह अंधेर-नगरी जीतने के लिए चल पड़ा.
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किताबों की दुनिया आज ज़नाब रियाज़ ख़ैराबादी साहब की ग़ज़लों की वही किताब 'शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती' जिसका अजय नेगी साहब ने लिप्यंतरण और सम्पादन किया है हमारे सामने खुली हुई है :
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आपका मोबाईल लेने का अधिकार पुलिस के पास नहीं है कल्पतरू
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कथा-सागर रेखा श्रीवास्तव
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नज़्म "हम देखेंगे" फैज़ अहमद फैज़ साहब भावसार सहित देखें इस नज़्म का पूरा तर्ज़ुमा हिंदी में :
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गौरेया तुम्हारे लिए... मेरा आत्मग्लानि भरा खत..
कैसे कहूं... तुमसे बतियाना चाहता था गौरेया। यह आत्मग्लानि है और मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था... ओ री प्यारी गौरेया कैसे कहूँ कि मैं तुमसे बतियाना चाहता था...। जानता हूँ 40 का तापमान तुम्हारे लिए नहीं है... किसी के लिए भी नहीं है... लेकिन तुम्हारे लिए तो यह जानलेवा है
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एक दिन गिर जाएंगे सूखे पत्तों से
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रोज़ नए किरदार निभाते हैं ,
कुछ रंगीन ,कुछ श्वेत -श्याम रूप में
होते खुद हम
कुछ अभिनय हमारा बखूबी दिल चुरा जाता सबका ,
कुछ में होते हैं फ़ेल हम
Roshi पीलीभीत
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ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।
वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।
गमक उठे हैं साल वन, झरते सरई फूल।
रंग-गंध आदिम लिए, मौसम है अनुकूल।।
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संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 132 | प्रकाशक: हार्पर कॉलिन्स | शृंखला: इमरान | अनुवाद: चौधरी ज़िया इमाम
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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पुस्तक समीक्षा : इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें
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आज के लिए बस इतना ही...!
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विविधता से परिपूर्ण सुन्दर सार्थक व श्रमसाध्य प्रस्तुति । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी आज के अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए |
सुप्रभात, पढ़ने के लिए शानदार और ढेर सारी सामग्री लेकर आया है आज का अंक, बहुत ही श्रम से संकलित चर्चा मंच में मुझे भी स्थान देने के लिए हृदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआभार आपका आदरणीय शास्त्री जी...। मेरी रचनाओं को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञावर्धक परिचर्चा, सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ🌷🌷🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और श्रमसाध्य चर्चा अंक आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, सादर प्रणाम !
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति और सुंदर सराहनीय तथा सामयिक संकलन ।
मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपको नमन करती हूं। बहुत बहुत आभार ।
सभी रचनाकारों को बधाई ।
आदरणीय भाई साहब,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्ते
साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत राजीव कुमार भृगु जी का गीत को साझा करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ।
बहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंकुछ पढ़ी कुछ छूट गई....।
सभी को हार्दिक बधाई।
सादर
चर्चाअंक में पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा। सुंदर, पठनीय लिंक्स। मेरी रचनना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
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