शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता सुधीर जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा पसंदीदा रचनाएँ-
गीत "नवअंकुर उपजाओगे कब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सही दिशा दुनिया को देना
कलम कभी मत रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे तब
जग को राह दिखाओगे तब
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आतिशीलभ्य
*****धरा की अंबर से प्रीत
पवन पेड़ पर टंगी होले से फुसफुसाती है।धरा पवन के शब्दों को अनसुना करते हुए कहती है-
”एक ही परिवार तो था! यों छूता मेरी टहनियों को, देखते ही देखते दूरियों में दूरिया बढ़ गई। चाँद का चाँदनी बरसाना, सूरज का भोर को लाना उसमें इतना आक्रोश भी न था। बादलों का यों भर-भरकर बरसना सब दाता ही तो थे ! बेटी बिजली का रौद्र रूप कभी-कभी पीड़ा देता है, बेटी है ना ; लाडली जो ठहरी।”
दिखा ना सकूं जो जख़्म कह सकूं नहीं जो दर्द
समझ लेना बहते आँसुओं से दिल का हर मर्ज़
आँसू से लिखा अफ़साना है जज़्बातों का मोती
कितने भी करूं जतन मोहब्बत कम नहीं होती ।
*****
दहशतजदा दीवारों में
जंग लगी
खिड़कियों को बंद कर
देखना पड़ता है
छत की तरफ़
नींद में चौंककर
रोना पड़ता है
बच्चों की तरह
*****
मन-मस्तिष्क की दीवारों पे...
साहिब ! .. शायद ...
पाते हैं समझ बस उतना ही
मूढ़ साक्षर या भोले निरक्षर सारे,
हों आपके आदेश या निर्देश
या कोई ख़ास संदेश,
या फिर हों नारों वाले विज्ञापन सारे,
गाँव-गाँव, शहर-शहर,
हर तरफ, इधर-उधर ...
मसलन ... "स्वच्छ भारत अभियान" के .. शायद ...
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जागृत देवता हैं पुस्तकें
एक डिबिया में बंद कर लूँ
या फैला दूँ यहाँ से वहाँ अंबर तक
सब कुछ परिलक्षित है
भाव से भरी उदारी है ॥
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रामधारी सिंह दिनकर
धारी दिनकर सिंह का, लेखन कार्य महान।
अलख क्रांति की नित जगा, रखा देश का मान।।
रखा देश का मान, खरी खोटी थे कहते।
रहे सदा निर्भीक, झूठ को कभी न सहते ।।
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पात्र या दर्शक?
नीयत,नीतितत्व का एक मात्र वह दर्शक,
जिसको रिझाने के लिए उसने चुना हमको,
हम भूलकर उसको
कहें हर पात्र को दर्शक!
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प्रतिदिन
तुम आते हो प्रतिदिन
अब तो नियम सा हो गया है
तुम्हारा आना
जैसे आता है सूरज , चाँद
जीवन में
दे जाते हो शब्दों के कण
और तुम चाहते हो
कण कण मिलाकर
मै ऋचाएं रचूं
आलोकित करु जीवन
पथ
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मंजिल
रास्तों पर चले थे अकेले
मिली न मंजिल
तुम मिल गए
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इरफ़ान पठान और संविधान
हम, भारत के लोगों ने, भारत को मज़बूती से ऐसा देश बनाने का संकल्प लिया है, जो अपने फ़ैसले खुद लेगा, जो सामाजिक व्यवस्था वाला होगा, जो सेकुलर होगा, जहां लोगों का राज होगा, और जो अपने सभी नागरिकों के लिए हर तरह का इंसाफ़ या न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) सुनिश्चित करेगा, जहां लोगों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा (इबादत-अरदास-प्रेयर) की आज़ादी होगी, जहां सभी को दर्जे और अवसर की बराबरी हासिल होगी. जो लोगों के बीच ऐसे भाईचारे को बढ़ावा देगा जो किसी भी शख्स की गरिमा और देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करता हो. हमारी संविधान सभा में 26 नवंबर 1949 की इस तारीख से इस संविधान को हम कबूल करते हैं, क़ानून बनाते हैं और अपने को पेश करते हैं.*****फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक ।
मेरी कविता को शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार आदरणीय, सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
आपको मेरा नमन और वंदन आदरणीय सर।
बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार मेरे सृजन को स्थान देने हेतु।
सादर
शानदार और खूबसूरत संयोजन
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मलित करने के लिए आभार
जी ! नमन संग आभार आपका ... मेरी बतकही को यहाँ जगह देने के लिए ...
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