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सोमवार, मई 02, 2022

'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418)

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना से।  

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-

दोहे "करते श्रम की बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

काँटे और गुलाब का, कैसा है संयोग।
अन्तर आलू-आम का, नहीं जानते लोग।।
--
नहीं गये जो बाग में, देखा नहीं बसन्त।
वही बने हैं आज भी, मजदूरों के सन्त।।
*****
परीक्षक की अग्निपरीक्षा
अपना कर्तव्य निभाने वाली इस फ़ौज को मुंहमांगा पारश्रमिक मिलता है. पर सबसे पहले हमको कापियां जांचनी हैं, फिर मार्कलिस्ट पर उनके अंक चढ़ाने हैं.
हमारी सहायतार्थ खड़ी फ़ौज को अभी सब्र करना पड़ेगा.
सेवा के बदले मेवा मिलने की कहावत कहीं और सही बैठती है या नहीं, यह तो हम नहीं जानते पर हमारे घर में वह हर साल चरितार्थ होती हुई देखी जा सकती है.
*****दिल दरिया सा

अपनी आजादी की कीमत पर

कोई अवरोध स्वीकार नहीं उसे

गति भी कम हो सहन नहीं उसे

*****

मजदूर

इन्हीं साँसों के बल 
कल जीतने की लड़ाई जारी है
और जीत की संभावनाओं पर
टिके रहने का दमखम है
क्योंकि,
इन्हीं साँसों की ताकत में बसा है 
मजदूर की
खुशहाल ज़िन्दगी का सपना----
*****

मजदूर दिवस

पसीने से विकास के बाग वो सींचते

मेहनत से राष्ट्र के पहियों को खींचते,

सपनों के आँगन में खुशियाँ है बोते

जागे हो वो तो हम बेफ्रिक्री में सोते,

उनके लिए मुस्कानों का हार बनाये

मजदूर दिवस सम्मान से मनाये ।

*****

उनकी राहें बड़ी कठिन है (मजदूर दिवस)

लाख फाइलें चलीं, तरक्की होगी 
होंगी मीनारें भी इनके नाम,
गारा तसला मुकुट सरीखा होगा
ऊंचे होंगे अब इनके भी दाम,
जोड़ तोड़ गठजोड़ बनेगा
आज काम का दिन है ॥
*****

संस्मरण ....Baroda days ...!!

जब श्रीमानजी के लिए धनिया खरीदी जा रही थी ...तो थोड़ी उनकी ट्रेनिंग भी याद रही ..."थोडा भाव-ताव  किया करो ...!''बस वही याद करते करते लग गए भाव -ताव करने ...!!"अरे इतना महंगा धनिया ..!!!!अरे नहीं भई ...भाव तो ठीक दो ।"अब वो भला मानुस भी अपनी दलीले देने लग गया । मानने को राज़ी नहीं ...खैर मैंने भी सोचा नहीं लूंगी अगर कम में नहीं देगा ....!! मैं पलटी और वापस चल दी   !!

*****

एक ग़ज़ल -खुदा उनसे मुलाक़ात न हो

इस तरह पेड़ हरे कटते रहे तो शायद

अबकी सावन के महीने में ये बरसात न हो

मुझसे वो पूछता है मेरी कहानी अक्सर

और खुद चाहता है उससे सवालत न हो

*****

सूने अंधेरे

दीवारें सुनती नहीं अब,

 दरवाज़े खुलते नही ,

टेबल कुर्सी 

जस के तस है 

झूले भी हिलते नही ...

फानूस भी जो 

हवा चले, 

देखो, कैसे   है खांसते....

*****

देश में नए आए हो.(कहानी लघुकथा)

 वे मेरे करीब आ गए, तब मैंने पूछा,  "क्या आपको कोई मदद चाहिए?"
उन्होंने कहा था, "लगता है आप इस देश में  नए आये हो। मदद हमें नहीं आपको चाहिए।"
मैंने कहा, "मैंने समझा नहीं।"
"आप जिस ओर जा रहे हो, बस स्टैंड उसकी विपरीत दिशा में है।"
मैं तो हतप्रभ था। वे मुझे सही दिशा निर्देश देने के लिये तेजी से मेरी ओर आ रहे थे।

*****

संस्मरण ....Baroda days ...!!

पंद्रह बीस  कदम चल चुकी थी ,तब  न जाने क्या  सोच कर उसने मुझे आवाज़ दी ..."ओ मोठी बेन .....कोतमीर लइए जाओ | " मैं वड़ोदरा  में नई थी और गुजराती भी नहीं जानती थी और तो और मोटापे की मारी तो थी ही ! अब मोटे इंसान को अगर मोटा कह दिया जाये तो उससे बुरा उसके लिए और कुछ नहीं होता ,यकीन मानिये !!उसकी आवाज़ सुनते ही गुस्से के मारे मैं तमतमा गई  !!"उसने मुझे मोटी  बोला  तो बोला  कैसे ???

*****

वे जो लोकतंत्र के बीहड़ में खो गएचमकीली पसीने की बूँदों को

बदन से गिराते गये
धान के गर्भवती होने के 

उत्सवों को मनाते रहे
*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संकलन।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सारगर्भित चर्चा प्रस्तुति !!मेरे संस्मरण को यहाँ स्थान दिया ह्रदय से धन्यवाद आपका आदरणीय रवींद्र सिंह यादव जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह रवींद्र जी, सभी लिंक्स एक से बढ़कर एक हैं...जबरदस्‍त

    जवाब देंहटाएं
  5. विविधतापूर्ण ,पठनीय ,प्रभावशाली रचनाओं से सुसज्जित अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार आपका।

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. हार्दिक आभार आपका।सभी लिंक्स अच्छे

    जवाब देंहटाएं

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