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बुधवार, मई 04, 2022

नाम में क्या रखा है? (चर्चा अंक-4420)

 मित्रों! 

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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कल अक्षय तृतीया परसुराम जयन्ती 

और ईद का पर्व था। 

आज देखिए कुछ अद्यतन लिंक 

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नाम में क्या रखा है? (what is in Name?) 

शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है?" 
"कौन से जमाने की बात कर रहीं है तू? शेक्सपियर सोलहवीं सदी का था और आज बाइसवीं सदी चालू है! आज नाम याने ब्रांड ही सब कुछ है। तभी तो ब्रांडेड जूते एयर कंडीशनर शो रूम में और किताबें फुटपाथ पर बिकती है। बड़े स्टार याने नाम वाले को छींक भी आई तो ख़बर बन जाती है। अखबारों में इस बात की भी चर्चा होती है कि तैमूर ने पॉटी की या नहीं। अपने बच्चों के लिए तो कभी कोई पड़ोसी भी नहीं पूछता। नाम की ही तो सारी महिमा है। तभी तो आज कई शहरों के,सरकारी योजनाओं को और संस्थानों के नाम बदले जा रहे है।"  

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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दोहे "ईद मुबारक़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

चाँद दूज का देखकर, जागी है उम्मीद।
गले मिलें सब प्यार से, कहें मुबारक ईद।।
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मौमिन को सन्देश ये, देते हैं रमजान।
नेकी और खुलूस है, मौला का फरमान।।

उच्चारण 

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ईद मुबारक मैंने शाहिदा को ईद की मुबारकबाद दी तो फफक-फफक कर रोते-रोते उसने मुझे शुक्रिया कहा. मैंने घबरा कर उस से परिवार का कुशल-मंगल पूछा तो उसने बताया कि 28 अप्रैल, 2021 को सिराज कोरोना की दूसरी लहर का शिकार हो गया था.
इस बार रमज़ान में सिराज अल्मोड़ा नहीं जा पाया था. वह दिल्ली में ही था. 
तिरछी नज़र 

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ईद की दिली मुबारकवाद

Kuchh Rang Pyar ke, Drisht Kavi - Posts of 3 May 2022 

और आख़िर चाँद दिख ही गया, ख़ुशी हुई
इस बार पूरे माह रमज़ान के रोजों ने तड़फा दिया था, रोज शाम होते ही रोज़ा छूटने का इंतज़ार रहता कि अब सब लोग पानी पी सकेंगे, इफ्तारी करेंगे - दिन भर की चिलचिलाती धूप, गर्मी, पानी और बिजली की दिक्क़तें इस सबके बीच कड़क रोज़े और रोजेदारों का धैर्य एक कड़ी तपस्या ही है और हर साल यह परीक्षा कड़ी होते जा रही है जैसे जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, पूरे माह अपनी कक्षा के मित्रों को, प्राध्यापकों को, मित्रों को, बचपन के दोस्तों को, काम से जुड़े और प्रोफेशनल रिश्तों से जुड़े मित्रों को फोन लगाकर ख़ैर खबर लेता था कि सब भालो ना
बहरहाल, एक पाक माह गुजर गया और अपने पीछे लाखों किस्से छोड़ गया, देश दुनिया ने इतना कुछ देख समझ लिया और भुगत लिया कि कहना मुश्किल है, यूक्रेन - रूस युद्ध से लेकर खरगोन और दिल्ली के प्रायोजित दंगों ने मन खट्टा कर दिया था, दुर्भाग्य देखिये कि खरगोन में कल ईद बंदूक और कर्फ़्यू के साये में मनेगी , कैसा दहशतज़दा और मनहूस समय हमने बना दिया है

ज़िन्दगीनामा 

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ईद शाइरी  कैसे   ईद   मनाए   भला   दौरे  वबा  में। अच्छा है कि ईमा रखें हम सिर्फ ख़ुदा में। मायूसी बेबसी बेकली छायी ईद आयी है कैसी उदासी है ~आकिब जावेद

आवाज सुख़न ए अदब 

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भावों के मोती 

भावों के मोती जब बिखरे

मन की वसुधा हुई सुहागिन

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आज मचलती मसी बिखेरे

माणिक मुक्ता नीलम हीरे

नवल दुल्हनिया लक्षणा की

ठुमक रही है धीरे-धीरे

लहरों के आलोडन जैसे

हुई लेखनी भी उन्मागिन।। 

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। 

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समाधान जो चाहें पाना मानव को यदि अपनी उलझनों का समाधान चाहिए तो भीतर मिलेगा। मन की गहराई में जो शुद्ध चैतन्य है, जो सत् है, आनंद है, उसके सान्निध्य में मिलेगा। बाहर जगत में उलझाव है, प्रतिस्पर्धा है, तनाव है, बाहर सब कुछ निरंतर बदल रहा है। सागर में उठी लहरों की तरह जग निरंतर विनाश को प्राप्त हो रहा है। भीतर एक अवस्था ऐसी है जो सदा एकरस है, उसमें टिके बिना पूर्ण विश्रांति नहीं मिलती। वहाँ जाने में बाधा क्या है ? स्वयं के और दूसरों के बारे में हमारी धारणाएँ, मान्यताएँ और विचार ही सबसे बड़ी बाधा हैं। वह निर्विकल्प अवस्था है, मन कल्पनाओं का घर है। वहाँ प्रेम का साम्राज्य है, मन जगत में दोष देखता है। जब हम जगत को जैसा वह है पूर्ण रूप से वैसा ही स्वीकार करके मन को कुछ समय के लिए ख़ाली कर देते हैं तब उस शांति का अनुभव अपने भीतर करते हैं। 

 

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माँ ... 

माँ........

मेरी क्या बिसात 
जो लिख पाऊं कुछ 
तेरे लिए ,तेरे बारे मेंं
तू तो है मेरी जीवन धार 
ये मेरा जीवन है 
तुझ पर निसार  

मेरा फोटो

अभिव्यक्ति शुभा

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नैना- संजीव पालीवाल धाराप्रवाह लेखन से सुसज्जित इस उपन्यास का कवर डिज़ायन खासा आकर्षक एवं उत्सुकता जगाने वाला है। एक आध जगह वर्तनी की छोटी मोटी त्रुटि दिखाई दी। 266 पृष्ठीय इस उम्दा उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है वेस्टलैंड पब्लिकेशंस की सहायक कम्पनी Eka ने और इसका मूल्य रखा गया है 250/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट के हिसाब से जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

हँसते रहो 

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बुक हॉल अप्रैल #1: एक पुरानी खरीद जो अप्रैल में जाकर आई 

कहते हैं जब जब जो जो होना होता है तब तब वो वो होता ही है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ कुछ दिनों पहले हुआ। हुआ यूँ कि जब नवंबर 2021 में साहित्य विमर्श प्रकाशन ने अपना बाल/किशोर पाठक सेट लॉन्च किया था तो मैंने उसे मँगवा लिया था और वह अब अप्रैल 2022 को मेरे पास पहुँचा है।  दुई बात 

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गुलज़ार की कहानी - सनसेट बुलवार्ड | Hindi Story 'Sunset Boulevard' by Gulzar 

गुलज़ार साहब को कैसे भी पढ़िए, उनके शब्दों की चमक सबसे जुदा, चमकदार और सटीक होती है। उनके गद्य में भी नज़मों की रवानगी होती है। शब्दांकन पर आप पहले भी गुलज़ार साहब की कहानी पढ़ते रहे हैं, उसी क्रम में आज पेश है कहानी 'सनसेट बुलवार्ड'। राय दीजिएगा.. 

Shabdankan शब्दांकन 

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कुछ अपने साथ भी... 

चुपचाप निराश और सौ कमियाँ 

कुछ भी तो अच्छा नहीं था मुझमें 

न बैठने का शऊर न चलने फिरने 

ओढ़ने पहनने की अकल

और तो और बात करना तक नहीं आता था मुझे 

शेफालिका उवाच 

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परीक्षा में नकल करने की प्रथा। 

 

आत्म रंजन 

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बुलेवर्ड स्ट्रीट की एक शाम  अभी हम स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट पर टहलते हुए कुछ ही कदम चले होंगे कि अचानक ऐसा कुछ हुआ कि मुझे लगा स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की किसी ने जैसे हवा निकाल ली हो। हुआ यूँ कि हम दोनों स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की चकाचौंध में खोये और बतियाते हुए उसका इधर-उधर से निरीक्षण करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे कि तभी पड़ोसन का किसी चीज पर पांव क्या पड़ा कि वह फिसल गई। वह तो गनीमत रही कि हम साथ-साथ चल रहे थे तो मैंने ऐन वक्त पर उसका हाथ पकड़ लिया, नहीं तो वह निश्चित ही बहुत बुरी तरह गिरती,  

KAVITA RAWAT 

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रूह 

मजहब रंग एक था मेरी मोहब्बत का l
रोजा वो रखती इसकी सलामती का ll

इफ्तारी मैं करता उसके चाँद दीदार से l
कबूल हो जाती मन्नतें कई एक साथ में ll 

RAAGDEVRAN 

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किताबों की दुनिया - 256 

एक दिन मैं मुंबई के युवा और बेजोड़ शायर स्वप्निल तिवारी को दुबई के एक मुशायरे में अपना क़लाम पढ़ते हुए की विडिओ देख रहा था कि उसी विडिओ में मैंने पहली बार हमारे आज के शायर का नाम और क़लाम सुना। पता चला कि ये पाकिस्तानी शायर 'शाहीन अब्बास' साहब हैं। 
आखिर स्वप्निल को ये काम सौंपा।  स्वप्निल उनके प्रशंशक हैं लिहाज़ा उन्होंने शाहीन साहब से संपर्क किया और उनके बारे में जो भी पता लगा सकते थे पता लगाया और मुझे भेजा। शाहीन साहब अपने बारे में बताने से संकोच करते हैं , लिहाज़ा उनकी प्राइवेसी का सम्मान करते हुए उनके बारे में जितना मुझे पता चला आपके साथ साझा कर रहा हूँ। थोड़े को बहुत समझें और उनकी लाजवाब शायरी का आनंद लें :
वो भी क्या दिन थे कि जिस जिस मौज पर पड़ता था पाँव 
ख़ुद किनारे तक समंदर छोड़ने आता रहा 
*
राख सच्ची थी तभी तो सर उठाकर चल पड़ी 
शो'ला झूठा था दिलों के बीच बल खाता रहा 

नीरज 

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क्षणिकाएं 

कुछ रिश्तों  को बचाना था
इसलिए थोड़ा झुककर 
उठा लिये 
वरना हमारे भी स्वाभिमान में 
एक मजबूत रीढ़ की हड्डी मौजूद है । 

कावेरी 

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एक ग़ज़ल - सुर्खाब ग़ज़ल 

शोख इठलाती हुई परियों का है ख़्वाब ग़ज़ल
झील के पानी में उतरे तो है महताब ग़ज़ल

वन में हिरनी की कुलाँचे है ये बुलबुल की अदा
चाँदनी रातों में हो जाती है सुर्खाब ग़ज़ल 

छान्दसिक अनुगायन 

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कुबड़ी बुढ़िया की हवेली - सुरेन्द्र मोहन पाठक  फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 96 | प्रकाशक: साहित्य विमर्श | प्रथम प्रकाशन: 1971 पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श

आखिर क्या थी ये कुबड़ी बुढ़िया की हवेली? 
इस हवेली में क्या राज दफ्न थे? 

एक बुक जर्नल 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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6 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए और मेरी रचना के शीर्षक को चर्चा अंक का शीर्षक बना कर मेरी रचना को इतना मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

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  2. सुप्रभात! ईद की मिठास लिए सराहनीय रचनाओं के सूत्रों से अति श्रम से सजायी गयी चर्चा में डायरी के पन्ने को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार!

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  3. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

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  4. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  5. श्रमसाध्य प्रस्तुति।
    बहुत से लिंक्स का सुंदर गुलदस्ता
    अत्यधिक व्यस्तता के चलते बहुत दिनों बाद आज सभी ब्लाग घूमकर पढ़कर आप रही हूँ।
    सभी पोस्ट बहुत ही आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।

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  6. बड़ा अच्छा मंच है। आप सभी को शुभकामनाएँ । मैं शेफालिका उवाच से डॉ विभा नायक🙏

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