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सोमवार, मई 30, 2022

'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' चर्चा अंक 4446

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है लेखक गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' ने जिसे हाल ही में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ। गीतांजलि श्री जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!

आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-

गीत "रिश्ते-नाते प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
*****
*****

*****

गीतिका

रखे दोहरी नीति, मुखौटा पहने  सब

अजब जगत व्यापार, समझना दूभर है।।

देश-प्रेम अनमोल, भाव यह सर्वोपरि

बनते क्यों गद्दार, समझना दूभर है।।

*****

अब कैसे रुकेगी यूक्रेन में लड़ाई?

यूक्रेनी समाज नीचे से ऊपर की ओर संगठित हो रहा है, रूसी समाज ऊपर से नीचे की ओर। सन 1991 में स्वतंत्र होने के बाद से यूक्रेन ने छह राष्ट्रपतियों को चुना है। हरेक ने कड़े चुनाव के बाद और कई बार बेहद नाटकीय तरीके से जीत हासिल की। इस दौरान रूस ने केवल तीन शासनाध्यक्षों को देखा। हर नए शासनाध्यक्ष को उसके पूर्ववर्ती ने चुना।*****बेजुबां नहीं हो....

हालात से है वाकिफ़

दर्दे सफ़र तुम्हारा,

अपनी कहो जुबानी ,

कहता रहा है कोई।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


6 टिप्‍पणियां:

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