बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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गीत "प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
महक से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।
प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।।
रात हो, दिन हो, अँधेरा या उजाला हो,
सब वहीं जाते, जहाँ मिलता निवाला हो,
भ्रमर को अक्सर, चमन का रूप छलता है।
प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।।
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दोहे
"कट्टरपन्थी जिन्न"
रखना है सदभाव का, भारत में परिवेश।
अब मजहब के नाम पर, नहीं बँटेगा देश।।
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राजद्रोह में लिप्त है, जिन्ना की औलाद।
पूजागृह के नाम पर, करती वाद-विवाद...
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हाय ये #गुमराह #गरमी ,
न जाने कितना सतायेगी ,
सुबह भी ठीक से गुजरने न देती ,
भर #दुपहरिया आग लगायेगी ।
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मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरम शर्मा की रचना -- ईश्वर का आशीष लिए माँ करुणा लगती है
नयन के मृदुलेप सा झर-झर झरना लगता है
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याद रहे ये भी माँ हैं (मातृ दिवस)
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बिना शर्त अनुबंध है इक दुआ मां
तेरा हाथ सिर पर है मेरी दवा मां
झुलसती दुपहरी में राहत दिलाती
फुहारों सी बरसे निराली घटा मां
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रंग क्या-क्या दिखाती रही उम्र भर जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर एक मिसरा ग़ज़ल का नहीं बन सकी जाने क्या बुदबुदाती रही उम्र भर आनंद--
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यह नक्शा लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखा काशी विश्वनाथ मंदिर का है, जिसे जेम्स प्रिंसेप ने बनाया था। इस नक्शे में काशी विश्वेश्वर मन्दिर के गर्भगृह को बीचो बीच दिखाया गया है। इस पर अंग्रेजी में महादेव लिखा गया है। इसके चारों तरफ अन्य मन्दिर बने हैं।
औरंगजेब के हमले से स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए सन 1669 में मंदिर के पुजारी जी ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। जब औरंगजेब की सेना जब स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को नुकसान नहीं पहुंचा पाई, तब उसने मंदिर के बाहर बैठे 5 फीट ऊंची नंदी की मूर्ति पर हमला कर दिया। मूर्ति पर खूब हथौड़े चले, खूब प्रहार किए गए पर नंदी अपनी जगह से हिले नहीं। तमाम प्रयासों के बाद सेना हार गई और नंदी जी को उसी जगह छोड़ दिया। यह प्रतिमा ज्ञानवापी मस्जिद की तरफ है। हम सब जानते हैं कि नंदी जी का मुँह सदा शिवलिंग स्थापित गर्भगृह की ओर ही होता है।
नक्शे के नीचे लिखे गए डिस्क्रिप्शन को गौर से देखा जाए, तो अंग्रेजी में लिखा है - The doted line shows the portion of the temple occupied by the present masjid.
अर्थात नक्शे में बनाई गई डॉटेड लाइन मौजूदा मस्जिद के कब्जे वाले मंदिर के हिस्से को दर्शाती है। यह नक्शा सन 1832 में तैयार किया गया था।
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मेरा सृजन--
उतरती दुपहरी में हुज़ूर, सुबह का अक्सन तलाश करो, चल सको, तो चलो
कि दूर तक कोई मरुद्यान
नहीं, देह से लिपटे हैं
बेशुमार थूअर के
ज़ख़्म, इस
यात्रा में अग्निशिखा :
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एक देशगान -प्यारे हिन्दुस्तान को
जागो हिंदुस्तान
के वीरों
जागो साधू-
संत,फ़क़ीरों
फिर सोने की
चिड़िया कर दो
प्यारे हिंदुस्तान को ।
वन्देमतरम,वन्देमातरम,वन्देमातरम्
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खड़े होकर पानी क्यों नहीं पीना चाहिए? (why should we not drink water while standing?)
दोस्तों, क्या आप पानी पीने के तरीकों पर ध्यान देते है? क्या आप जानते है कि हमें किस पोजिशन में पानी पीना चाहिए? बैठ कर पानी पीने के क्या फ़ायदे है और हमें खड़े होकर पानी क्यों नहीं पीना चाहिए? वास्तव में खड़े होकर पानी पीने से हमारे शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों पर बुरा असर पड़ता है। आइए, जानते है खड़े होकर पानी क्यों नहीं पीना चाहिए? आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
प्राकृतिक संसाधन और आधुनिक सुविधाएँ एक ज़माना था जब घर में मनोरंजन के साधन के रूप में या तो एक छोटा सा ट्रांजिस्टर होता था या एक ब्लैक एंड वाइट टी वी, जिस पर सप्ताह में एक दिन आधे घंटे का चित्रहार और सप्ताहंत में एक हिंदी फिल्म दिखाने के अलावा कृषि दर्शन जैसे कुछ कार्यक्रम ही प्रसारित किये जाते थे। फिर देश में एशिया ८२ गेम्स का आयोजन हुआ और रंगीन टी वी का आगमन हुआ। अब मनोरंजन रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रमों से होता हुआ हम लोग और बुनियाद जैसे मेगा सीरियल्स में तब्दील हो गया। फिर केबल टी वी, डिश टी वी और अंतत: ओ टी टी के उपलब्ध होने से मनोरंजन हमारी पकड़ में पूरी तरह से आ गया। साथ ही स्मार्ट मोबाइल के आने से तो दुनिया ने दुनिया को सचमुच अपने मुट्ठी में ही कर लिया।
अंतर्मंथन डॉ. टी.एस. दराल--
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नाम भले ही आम हो, बात हर खास है
यूं तो गर्मियां ज्यातातर परेशान ही करती हैं। पर ढेर सारी परेशानियों के बावजूद कई मायनों में अहम, यह ऋतु अपने साथ एक अनोखा तोहफा भी ले कर आती है ! जिसका सिला तो किसी भी तरह नहीं दिया जा सकता ! वह बेमिसाल उपहार है फलों के राजा आम के रूप में ! जो ग्रीष्म ऋतु में ही, आ कर दिल ओ दिमाग को तृप्ति प्रदान करता है। अपने देश के इस राष्ट्रीय फल की अनगिनत विशेषताएं हैं ! आम होते हुए भी यह स्वादिष्ट और पौष्टिकता से भरपूर फल इतना खास है कि प्रकृति की इस नियामत को शायद ही कोई इंसान नापसंद करता हो ! यह अकेला फल है जो आम और खास हर तरह के लोगों को समान रूप से प्रिय है ! बेर से कुछ बड़े, गमले में भी लग जाने वाली, आम्रपाली से लेकर साढ़े तीन किलो वजन की नूरजहां जैसी किस्मों तक फैले इस अनोखे फल की बात ही कुछ अलग सी और निराली है !
हथेली पर आम्रपाली |
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प्रकाशक के अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारने का उदाहरण है '48 घंटे का चैलेंज'
एक बुक जर्नल--
तब सामंजस्य रहेगा
हम दोनों के बीच में
व्यर्थ का तर्क कुतर्क
अशान्त नहीं करेगा
इस जीवन को |
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यूक्रेन-युद्ध के कारण खाद्य-संकट से रूबरू दुनिया
जिज्ञासा--
आज के लिए बस इतना ही...!
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सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर आयोजन और श्रेष्ठ सामयिक रचनाएँ।मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु मंच का हार्दिक आभार🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, आज के सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं...बहुत सुंदर ...अभी सभी का चक्कर लगाती हूं...प्रणाम
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर मेरी रचना https://deep-007.blogspot.com/2022/05/blog-post.html?m=1 को इस अंक में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी सम्मिलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है सभी को बहुत बधाइयां ।
सादर ।
वैविध्यपूर्ण रचनाओं से सज्जित सार्थक अंक । मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंलाजबाव चर्चा प्रस्तुति
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