फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, मई 06, 2022

'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-4421)

सादर अभिवादन। 

शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है। 

शीर्षक व काव्यांश आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी की रचना 'नदिया में बहते पानी सा मन !' से -

कोई धारा कोई किनारा

कोई ले आता मजधार

फिर भी कोई पेड़ों सी देता
 ठंडी ठंडी छाँव 
सबका अपना अपना ठौर 

सबकी अपनी अपनी ठाँव !!

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

गीत "खारा-खारा पानी" 

दुख आता है तो रोने लगते हैं नयन सलोने,
सुख में भी गीले हो जाते हैं आँखों के कोने,
हाव-भाव से पहचानी जाती है छिपी कहानी।
दोनों में ही बहता रहता खारा-खारा पानी।।
--
उसपर बहती जीवन की नाव 
रे मन
सबका अपना अपना ठौर 
सबकी अपनी अपनी ठाँव !!
पल पर परलय का पहरा है,
तिमिर विश्व पसरा गहरा है।
आशा का किंतु, कहाँ अंत है!
पहले पतझड़ फिर बसंत है।
अक्सर 
बगीचे में बैठकर
करते थे
घर,परिवार की बातें
टटोलते थे
एक दूसरे के दिलों में बसा प्रेम
नींव अंतस की धसक कर टूट जाती।
सोचता, अनुशंसितों की पंक्तियों में,
एक संज्ञा और, क्या जुड़कर रहेगी?
या कि, रण मैं जीत लूँगा
लोभ की अलकापुरी में द्वंद्व से निज?
गीत में संगीत होगा
तार झनके वाद्य के जब
बज उठी हो झाँझरे तो
मन मयूरा नाचता तब
रागिनी बिन राग फीका
लेख पर दायित्व कैसे।।
--
यह कैसी रिक्तता
आकर ठहर गयी है
मेरे मन मस्तिष्क में !
कोई ख़याल नहीं,
कोई कल्पना नहीं,
कोई विचार नहीं,
--
 बचपन से लेकर आज तक मां की प्रत्येक .....टोका टोकी  यादों में रची बसी है। बचपन में 'घर के बाहर देर तक खेलना ठीक नही है बेटा' ---बडी हुई छात्रावास से आने के बाद मां का लाउडस्पीकर चालू हो जाता था-' कितनी दुबली होरही है ,क्या खाना नही मिलता है वहां' वगैरह - वगैरह
 पर जब और बड़ी हुई तो कहना "बेटा थोडा थोडा हमारे काम में भी हाथ बटा दिया कर" 
 प्रत्येक बात को समझा कर कहतीं कि मुझसे होता नही है अब। माँ तो माँ होती है चाहे मेरी या दूसरे की उनकी पहचान ही ममता होती है। 'माँ 'बच्चों के  भविष्य की चिंताओं से लेकर  बच्चों की सेहत,आदते ,सभी की चिंताओं से व्यग्र रहती हैं.......ऐसी होती है मां की ममता।
--

"तो क्या करूँ..? मैं पूरे दिन घर में अकेले बोर होती रहती हूँ इसी उम्मीद के साथ कि शाम को तुम आओगे तो हम दोनों कुछ वक्त साथ गुजारेंगे। मगर तुम हो कि तुम आते ही टीवी में नजरें गड़ा लेते हो।क्यों करते हो ऐसा..?

"कभी खुद को ठीक से देखा है..? नहीं देखी तो जाओ और आईने के सामने खुद को देखो ज़रा ?अस्त व्यस्त साड़ी,उलझे से बाल, मुस्कुराहट का तो कहीं नामोनिशान नहीं..? चेहरे पर जब देखो बारह बजे रहते हैं...!सौरभ चिढ़कर बोला।"तो मेकअप करके बैठूँ..?घर में कौन सज-सँवर होकर बैठता है जरा बताना..?

--

आज का सफ़र यहीं तक 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|

    जवाब देंहटाएं
  2. विविधता से परिपूर्ण सुंदर रचनाओं का अंक ।
    आभार और शुभकामनाएं अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को सम्मान देने हेतु आपका ह्रदय से सादर धन्यवाद अनीता जी!!बहुत बहुत शुभकामनायें!❤❤💐

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक और सुंदर चर्चा
    सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    अच्छे लिंक संयोजन के लिए
    आपको साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर सूत्रों का संकलन। बधाई और आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. सार्थक सामग्री के साथ सुंदर लिंक्स, सभी रचनाकारों को बधाई।
    शीर्षक आकर्षक बहुत कुछ कहता सा।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।