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मंगलवार, मई 03, 2022

"हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419)

सादर अभिवादन 
मंगलवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

कभी होली, कभी क्रिसमस,
मनाओ ईद-दीवाली,
खुदा ने एकता के वास्ते,
ये दिन दिखाया है।

आदरणीय शास्त्री सर जी की बहुत ही सुंदर सीख देती पंक्तियाँ 
सच,त्यौहार तो इसी मकशद से बनाये गए थे 
मगर अब उनका रूप बिगड़ता जा रहा है 
आप सभी को ईद मुबारक 
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गीत "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


ईद का चाँद आया है।
नया पैगाम लाया है।।

ख़ुदा ने नेमतें बख्शी,
हुई मन्नत सभी पूरी,
सिंवय्यों का मधुर तोहफा,

खुशी से आज खाया है।

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“जंगली फूल”



रईसी के ठाठ में पलते

गुलाब और उसके संगी-साथी

उसकी जिजीविषा

और बेफ़िक्री की आदत से

ईर्ष्या भी करते ही होंगे

एक अलग सी ठसक

और…,


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 मौन गौरैया





 ” हाँ,गमले के पीछे की एक गज़ ज़मीन तुम्हारे ही नाम तो लिख रखी है। "

  हिलकोरे मारती स्मृतियाँ; राधिका समय से साथ बहती ही चली गई।

 "हाँ, वही तो है यह कबूतर…नहीं! नहीं!वह नहीं है, वह तो कुछ मोटा था।” अब कबूतर की पहचान करने को आकुल हो गया मन ?

 कबूतर अपने साथ ले आया यादों की पोटली।  राधिका उस गठरी में ढूँढ़ने लगी थी कोकिला को, उसकी माँ उसे कोकि कह पुकारती।


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वसीयत




निकलूँ जब अन्तिम यात्रा पर 

तब मेरे सिरहाने सहेज देना 

कुछ रंग शोख तितली से और 

कुछ बुझे-बुझे राख से 

कुछ ब्रश, कुछ स्याही और 

कुछ कलम भी

थोड़े से खाली पन्ने और

कुछ बर्फ से सफेद 

कोरे कैनवास भी


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अपना स्वेद बहाते हैं वो

दिन डूबा संध्या उतरी है 

पशुओं की कतार सजी है

खेतों और खलिहानों से

आने को तैयार खड़ी है.

बिखरी लट है कृषक बाला की

मलीन है उसका मुख मस्तक भी


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हुड़दंग मत करो भई !



रंग मेरे बजरंग का 

बदरंग मत करो भई,

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!

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दोहे



बूढ़ा बरगद देखता, घर का आँगन लुप्त।

खड़ी मध्य दीवार में, नेह पड़ा है सुप्त।।


लाख यत्न शासक करे,बना नियम सौ-लाख।

कुछ की भूख करोड़ की, कहाँ बचे फिर साख।।


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लोरी



अँधेरे समय ने तुम्हारे हाथों  से छीन कर 

पतंग की डोर और फेक कर कंचे
रख दिये कुछ निशान गाँठों की शक्ल में, 
खेल के मैदान से दूर तुम अब कैद हो 
अब नहीं सुनाई देते तुम्हें स्कूल के घंटे 
बस सुनाई देती है सायरन की आवाज 
जो तुम्हारे दिमाग की अंधेरी गुहा में फोड़ा बन तुम्हें टीसता है 


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६४८. मुट्ठी



कभी उससे मिलो,

तो ज़बर्दस्ती ही सही,

उसकी मुट्ठी खोल देना,

उसमें मेरी रेखाएँ बंद हैं,

उन्हें मेरे हाथ में होना चाहिए. 


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स्वामी विवेकानंद जी से सीखने वाली 5 बातें 



1. चिंतन करो चिंता नहीं नए विचारों को जन्म दो।

2. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो।

3. उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।

4. जब तक जीना तब तक सीखना।

5. ये दुनिया एक व्यायामशाला है जहाँ हम ख़ुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं ।


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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे 

आपका दिन मंगलमय हो 

कामिनी सिन्हा 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी|

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन सूत्रों से सजी बहुत सुन्दर चर्चा । आज की चर्चा में “जंगली फूल” को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन चर्चा- प्रस्तुति। कामिनी जी मेरी रचना को शामिल करने का बहुत शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपके पटल पर सभी सामग्री बेहद बढ़िया है । शुभकामनाएं आपको !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर संकलन।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमन

    जवाब देंहटाएं

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