सादर अभिवादन
आज रविवार की प्रस्तुति में
आप सभी का हार्दिक स्वागत है
शीर्षक और भूमिका
आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से
बुद्धम् शरणम् आइए, पकड़ बुद्धि की डोर।
चलो धर्म की राह में, होकर भाव-विभोर।।
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
बुद्ध हमारे जीवन में शांति का संचार करें
इसी कामना के साथ चलते हैं,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर
अस्वस्थ होने की वजह से आज प्रस्तुति में थोड़ी देरी हुई क्षमा चाहती हूँ
---------------
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जो ले जाये जो लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध।
भारत तुम्हें पुकारता, आओ गौतम बुद्ध।।
बोधि वृक्ष की छाँव में, मिला बुद्ध को ज्ञान।
अन्तर्मन से छँट गया, तम का सब अज्ञान।।
हम सब बहुत छोटे छोटे थे जब रविवार सुबह नौ बजे टीवी पर मिक्की और डोनाल्ड आता था | हम बच्चे उसे देखने के लिए मरे जाते थे | बस समझिये जब तक वो टीवी पर आता हम बच्चो की पलकें भी नहीं झपकती थी उतनी देर | पंद्रह बीस मिनट पहले ही टीवी चालो कर देतें और उतनी देर में बीस बार घड़ी भी देख लेते कि नौ बजा या नहीं |
------------
भींगे वदन के साथ मुसाफ़िर सफ़र में था
उसकी नज़र झुकी थी वो सबकी नज़र में था
बारिश, हवाएं, बिजलियां सब छेड़ते रहे
खुशबू लिए ये फूल सभी की ख़बर में था
तेरी कसम
यदि वो ना समझी
बेवफा हुई
खाओ कसम
झूठ नहीं बोलोगे
धोखा न दोगे
-----------
नशे में डूबी है सारी दुनिया
छाया हुआ है सुरूर चहुँ ओर
मदहोश है हर शै इस जहाँ की
मस्ती का है कोई ओर न छोर
ऐसे में दो घूँट मैंने भी पी ली
तो इतना बवाल क्यों ?
अनुत्तरित प्रश्न......यूं तो मन के हर कोने में विचरते रहते हैं ढेर सारे प्रश्न और उनके
--------------
दोहे "थोड़े दोहाकार है, ज्यादा दोहाखोर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुखपोथी ने ले लिया, जब से नूतन रूप।
बादल के आगोश में, सिसक रही है धूप।।
दोहाकार निभा रहे, अपने-अपने फर्ज।
मुखपोथी पर आ गये, चुकता करने कर्ज।।
आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शीर्षक बनाने के लिए
आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
बहुत सुंदर सराहनीय अंक कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
वाह वाह वाह!बहुत सुंदर परिचर्चा।मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए मंच का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक चर्चा 👍
जवाब देंहटाएं