सादर अभिवादन
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक आदरणीय गजेंद्र भट्ट जी की रचना से)
एक विचारणीय प्रश्न "क्या ईश्वर है"?
कैसी विडंबना है, हमें सत्य को भी बार-बार सिद्ध करने की जरूरत पड़ती है
"सत्य" स्वयंसिद्ध होता है,
हम-आप सिर्फ तर्क-कुतर्क कर सकते हैं।
यदि हवा है तो ईश्वर है,पानी है तो ईश्वर है,सूर्यदेव का आस्तित्व है तो ईश्वर है।
उसी ईश्वर के श्री चरणों में वंदन करते हुए चलते है आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
क्या ईश्वर की सत्ता और उसके अस्तित्व के प्रति मन में संदेह रखना बुद्धि का परिचायक है? ईश्वर की सत्ता को नकारने वाला, कुतर्क युक्त ज्ञानाधिक्यता से ग्रस्त व्यक्ति वस्तुतः कहीं निरा जड़मति तो नहीं होता? आइये, विचार करें इस बिंदु पर।
मैं कोई नयी बात बताने नहीं जा रहा, केवल उपरोक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम जीव की उत्पत्ति से विचार करना प्रारम्भ करेंगे। इसे समझने के लिए हम मनुष्य का ही दृष्टान्त लेते हैं।
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माई! पंछी प्रेम पुगायो
उण ही पीर सुणा बैठी।।
भाव बोल्या न बदळी गरजी
आभे देख गुणा बैठी।।
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सुनो तुम-
एक ही तो ज़िंदगी है
बार- बार
और कितनी बार
उलट-पलट कर
पढ़ती रहोगी उसे
तुम सोचती हो कि
बोल- बोल कर
अपनी नाव से
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कभी भूल कर भी
न जाना उस ओर
जहां नहीं मिलता सम्मान
यह भी जान लो |
सम्मान माँगा नहीं जाता
स्वयं के गुण ही उसे पा लेते
परहेजी खानपान और बच्चेबिटिया के हर जन्मदिन पर उनके जैन मित्र आते हैं तो बिना लहसुन प्याज के खाना बनाने की आदत हैं | लेकिन इस बार तो गजब ही हो गया जब जन्मदिन महावीर जयंती के एक दिन पहले था ना खाने वाली चीजों की लिस्ट खूब लंबी हो गयी | लहसुन प्याज के साथ आलू , गाजर , मशरूम , रोटी , ब्रेड , चीज आदि की भी मनाही हो गयी | ------------एक गीत - कोई तो वंशी को स्वर दे
मन के सूने
वृंदावन को
कोई तो वंशी का स्वर दे.
यह पठार था
फूलों वाला
मौसम फिर फूलों से भर दे.
रहस्यमय खबरी | तहकीकात पत्रिका में जनवरी 2022 में प्रकाशित
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन है।
कामिनी सिन्हा जी।
बहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
बेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक anki । सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसदर नमस्कार कामिनी जी! मेरी रचना को इस सुन्दर अंक में सम्मिलित करने के लिए आभार प्रकट करना चाहूँगा आदरणीया! मेरी रचना से कहीं सुन्दर विवेचना कर दी है आपने मेरे आलेख के विषय की। कुछ ही शब्दों में इतना सब कह गई हैं आप कि साक्षात् ईश्वर के दर्शन ही करा दिए! वस्तुतः प्रकृति के रचयिता ईश्वर के दर्शन तो प्रकृति में ही हो जाते हैं , इसके लिए अन्य किसी साधन या तर्क की आवश्यकता ही नहीं।
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद |
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