सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना 'बूंद' से
बादल देखता है
धरती की सतह पर
भूख से किलबिलाते बच्चों के
चेहरों पर बनी
आशाओं की लकीरें
पढ़ता है प्रेम की छाती पर लिखे
विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे
अनगिनत पत्र
दरकते संबंधों में बन रही
लोक कलाकारी
और दहशत में पनप रहे संस्कार
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दोहे "आम पिलपिले हो भले, देते हैं आनन्द"
आम पिलपिले हो भले, देते हैं आनन्द।
उन्हें चूसने में मिले, लोगों को मकरन्द।।
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निर्वाचन तक ही रहें, आम दिलों में खास।लेकिन उसके बाद में, आती पुनः खटास।।
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बादल देखता है
धरती की सतह पर
भूख से किलबिलाते बच्चों के
चेहरों पर बनी
आशाओं की लकीरें
पढ़ता है प्रेम की छाती पर लिखे
विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे
अनगिनत पत्र
दरकते संबंधों में बन रही
लोक कलाकारी
और दहशत में पनप रहे संस्कार
हु तू तू - हु तू तू
करते हुए
खेलते रहते हम
ज़िन्दगी के मैदान में
हर वक़्त कबड्डी ।
कपोल कल्पित कल्पना में जीने वाले
हकीकत का सामना करने से डरते हैं
जो हौंसला रखते सागर पार करने की
वह कभी नदियों में नहीं डूबा करते हैं
सुन लो, हे अज, नित्य और शाश्वत!
चेतना का, दंभ तुम जो भर रहे हो!
छोड़ मुझ जर्जर सरीखी देह को,
भव सागर, आज जो तुम तर रहे हो!
देख रहे सब हरकत फूहड़
लड़की जब से लड़का हो गई
गंगा में कचरा क्या डाला
शुद्ध नदी भी कचरा हो गई
मस्त-मगन था तेरी गोद में
भेज दिया तुमने फिर रण में।
बोली, माटी का कर्ज़ चुकाओ
मातृभूमि के लाल कहलाओ।
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बिगड़ते हालात संभाल लो
तुम रातो रात संभाल लो
किसी पर भी उठ जाते है
ये अपने हाथ संभाल लो
ग्रीष्म ऋतु में मुस्कुराते
सूर्य सी आभा झरे
जब चले लू के थपेड़े
आँख शीतलता भरे
राह चलते राहगीर को
धूप में पंखा झले।।
''हाईस्कूल का रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था... ये जमाना गुजर गया ।अब बच्चो के नंबर 95% से भी ऊपर आने पर भी कुछ नहीं आता और उस जमाने के 36 % वाला भी आज की फौज को पढ़ा रहा है।रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
कन्स्ट्रक्शन एरिया में अकरम को देख शर्मा जी ने आवाज लगाई , "अरे अकरम ! बेटा आज तुम ग्राउण्ड में नहीं गये ? वहाँ तुम्हारी टीम हार रही है"।
"नमस्ते अंकल ! नहीं, मैं नहीं गया" । (अकरम ने अनमने से कहा)
तभी बीड़ी सुलगाते हुये कमर में लाल साफा बाँधे एक मजदूर शर्मा जी के सामने आकर बोला, "जी सेठ जी ! क्या काम पड़े अकरम से ? मैं उसका अब्बू" ।
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
पठनीय लिंकों के साथ बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
उम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
साधुवाद आपको
सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
आदरणीय नमस्ते!
जवाब देंहटाएंजब भी आपके मंच पर आता हूँ
चयन को पाकर वशीभूत हो जाता हूँ।
आम - वारिश - गर्मी - खेल खिलाड़ी - दोहा - गजल सब तो है यहाँ ।
सुन्दर अति सुन्दर !
सुन्दर संयोजन, हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी, मेरी पोस्ट को इस नायाब मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार, आज के अन्य लिंक तो और भी खूबसूरती से अपने शब्दों में हमें बांध रहे हैं ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुंदर और पठनीय रचनाओं के इस सुगढ संकलन का आभार!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !
सभी रचनाकारों को बधि एवं शुभकामनाएं ।
पठनीय आकर्षक लिंक्स सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंशीर्ष से अंत तक सब कुछ शानदार।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बेहतरीन प्रस्तुति प्रिय अनीता, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं, फुर्सत मिलते ही सभी रचनाओं का आनन्द जरूर उठाऊंगी। मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अच्छी लगीं । सुंदर चयन । आभार ।
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