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शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

““काव्य-मंजूषा” की प्रथम व अद्यतन पोस्ट के साथ….” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-69
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आज के "चर्चा मंच" को सजाता हूँ “अदा” जी के “काव्य-मंजूषा” की

प्रथम व अद्यतन पोस्ट के साथ-

'अदा'

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ये है इनकी प्रथम पोस्ट (जुलाई 6, 2009)

एक बार फिर मैं पराधीन हो गयी...

क्या हाल है गुप्ता जी, आज कल नज़र नहीं आते हैं
कौनो प्रोजेक्ट कर रहे हैं,या फोरेन का ट्रिप लगाते हैं
गुप्ता जी काफी गंभीर हुए, फिर थोडा मुस्कियाते हैं
संजीदगी से घोर व्यस्तता का कारण हमें बताते हैं
अरे शर्मा जी राम कृपा से, ये शुभ दिन अब आया है
पूरा परिवार को कैनाडियन गोरमेंट ने,परीक्षा देने बुलाया है
कह दिए हैं सब बचवन से, पूरा किताब चाट जाओ
चाहे कुछ भी हो जावे, सौ में से सौ नंबर लाओ
एक बार कैनाडियन सिटिज़न जब हम बन जावेंगे
जहाँ कहोगे जैसे कहोगे, वही हम मिलने आवेंगे
वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चाढ़ावेंगे
बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे
कनाडा का पासपोर्ट, जब हम सबको मिल जावेगा
बस समझिये शर्माजी जनम सफल हो जावेगा
गुप्ताजी की बात ने हमका ऐसा घूँसा मारा
दीमाग की बत्ती जाग गयी और सो़च का चमका सितारा
कैनाडियन बनने को हम एतना काहे हड़बड़ाते हैं
धूम धाम से समारोह में, अपना पहचान गंवाते हैं
बरसों पहले हम भी तो, ऐसा ही कदम उठाये थे
सर्टिफिकेट और कार्ड के नीचे, खुद को ही दफनाये थे
गर्दन ऊँची सीना ताने, 'ओ कैनाडा' गाये थे
जीवन की रफ्तार बहुत थी, 'जन गण मन' भुलाये थे
जिस 'रानी' से पुरुखों ने प्राण देकर छुटकारा दिलाया था
उसी 'रानी' की राजभक्ति की शपथ लेने हम आये थे
अन्दर सब कुछ तार तार था, सब कुछ टूटा फूटा था
एक बार फिर, पराधीन ! होकर हम मुस्काए थे  
(जुलाई 6, 2009)
2:56 PM  एक बार फिर मैं पराधीन हो गयी...


और ये रही इनकी अद्यतन पोस्ट- 

(फरवरी 18, 2010)  

जग मग दीप जले.....एक भजन


एक भजन लिखने की कोशिश की थी...
जग मग दीप जले
दीप जले दीप जले
राम नाम का दीप जले
जग में सारे जहान
ओ री आत्मा कर तू पुकार
निज स्वामी का कभी न बिसार
राम नाम का हो संचार
जग में सारे जहान
कर तू कर्म सदा निष्काम
ध्यान लगा तू प्रभु के नाम
राम नाम हो हर परिणाम
जग में सारे जहान
जग मग दीप जले
दीप जले दीप जले
राम नाम का दीप जले
जग में सारे जहान  
(सुर में अगर सुनना हो तो यहाँ सुनिए )   
(फरवरी 18, 2010)
2:27 PM   भजन .
अब आपको कुछ अन्य ब्लॉगर्स की पोस्टों से रूबरू कराता हूँ-


“संगीता स्वरूप का बालगीत” 

“चूहे की होली”
ललितडॉटकॉम

गांव-गली के बच्चे-बुढे,लोग-लुगाई-सारे चलो मेले मे भाई (ललित शर्मा) - भारत की माटी में आस्था एवं श्रद्धा की खुशबु है, यहाँ की नदियों में पवित्र रुन-झुन, रुन-झुन, कल-कल करने वाले संगीत की धारा अविरल प्रवाहित होती रहती है. यहाँ...
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वह राम ही था –2 - भाग -१ से आगे ..... जिसने रावण जैसे आततायी को भी मारने से पहले उसे सुधरने का मौका दिया और युद्ध टालने की हर संभव और उचित चेष्टा की - लक्ष्मण की मृत्यु प..
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इसीलिए सिर्फ प्रेम करना चाहिए..: महफूज़ - *अन्नपूर्णा* कूड़ा फेंकने घर के बाहर आई तो देखा कि तीन बूढ़े व्यक्ति घर के बाहर वाले चबूतरे पर बैठे हैं. अन्नपूर्णा ने उन्हें नहीं पहचानते हुए कहा " वैसे...
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आ गया वसंत - शिशिर का हुआ नहीं अन्त कह रही है तिथि कि आ गया वसन्त ! क्या पता कैलेन्डर को सर्दी की मार क्या है। कोहरा कुहासा और चुभती बयार क्या है। काटते हैं दिन एक ए..

रोना भी क्या एक कला है
" रोना भी क्या एक कला है "रोना क्यों कर दुर्बलता है ?यह तो नयनों की भाषा है ।सुख देखे तो छलक जाता है ।दुःख में फिर भी सहज आता है ।लाख संभालो , न तब रुकता है ।न निकट हो कोई आहत करता है ।उमड़ घुमड़ जो बस जाता है ,श्रांत ह्रदय वह कर देता है ।रोना भी क्या एक…..
Kusum's Journey

मुझे पीने का शौक़ नहीं, पीता हूँ ग़म भुलाने को: सलीम ख़ान
आपने यह फ़िल्मी नगमा तो ज़रूर सुना होगा 'मुझे पीने का शौक़ नहीं, पीता हूँ ग़म भुलाने को' लगता है सलीम भाई को आजकल यह गाना भा गया है. अरे, अरे ! घबराइए नहीं !! परेशान न होईये !!! और यह भी न सोचिये कि ये जनाब जिन्होंने वैसे तो ज्ञान की बातें करते करते……
Science Bloggers Association of India

क्या पुलिस वाले इंसान नही कीड़े-मकौड़े है? क्या उनका कोई मानवाधिकार नही?
सुबह-सुबह मोबाईल की स्क्रीन पर एक अंजान नम्बर चमका।थोड़ा कन्फ़्यूसियाने के बाद कौन हो सकता है?जिज्ञासा के कीड़े को शांत करने की गरज़ से रिस्क लेकर काल रिसीव कर ली।उधर से आवाज़ पहचानी-पहचानी सी थी लेकिन एकदम से पहचान नही पाया और पूछ बैठा कौन?उधर से आवाज़ आई………..
अमीर धरती गरीब लोग

प्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रे
नीर अर्थात् सलिल, नीरद, नीरज, जल या पानी! यह नीर कभी नयन से बरसता है तो कभी मेघ से बरसता है। नयन से नीर जहाँ गम में बरसता है वहीं खुशी में भी बरसता है। प्रियतम के विरह में प्रियतमा कहने लगती हैःप्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रेतो दूसरी ओर……..
धान के देश में!
निर्मल और नैनीताल 


नैनीताल हमारी यादो मे
तनहाई कुछ बोल गयी ...
कसमोकी रस्मोको नहीं समजा हमने ,हमने तो प्यारकी सच्चाई पर यकीं किया सदा…….
जिंदगी : जियो हर पल
प्रीति टेलर
उच्चारण
                                        
"सात रंगों से 


सजने लगी है धरा”

कैसे पढ़ी जाती हैं स्त्रियाँ
-अनामिका-पढ़ा गया हमकोजैसे पढ़ा जाता है कागजबच्चों की फटी कापियों काचना जोर गरम के लिफाफे बनाने के पहले!देखा गया हमकोजैसे कि कुफ्त हो उनींदेदेखी जाती है कलाई घड़ीअलस्सुबह अलार्म बजने के बाद!सुना गया हमकोयों ही उडते मन सेजैसे सुने जाते हैं ‍फल्मी……
हमराही

उसकी प्यास न पानी बनी न आग
उस रात वो अकेली नहीं उस के साथ रात भी जली थी मैंने उसे आग अर्पित की वो और भी सर्द हुई समन्दर की बात की तो वो और भी खुश्क हुई उस की प्यास न पानी बनी ना आग उसके दोष अँधेरे नहीं रौशनी थे उसकी भटकन केवल रिद्हम थी जब साज निशब्द हुए तो वो मीरा बनी राबिया हुई………
मेरे आस-पास

छू कर मेरे मन को
.............. पक्षियों का कलरव शोर नही कहलाता क्योंकि जिस रव में अपनों से मिलने की उत्कंठा हो ,अपनों को सम्हालने का भाव हो सहयोग एवं प्रेम की उत्कठ पुकार हो वो शोर कैसे होगा। ...........पुस्तकें वे तितलियां है जो ज्ञान के पराकणें को एक मस्तिष्क से दूसरे………

भोर की पहली किरण

किरण राजपुरोहित नितिला

जिसको भी मारा अपनो ने मारा है-gazal
१२१खारा है सागर सचमुच खारा है नदिया ने फ़िर भी सब कुछ हारा हैसातों के सातों सुर हैं उसकी मुठ्ठी मेंकहने को वो बेचारा इक तारा हैजीत सदा सच की होती कहने भर कोसच बेचारा द्वापर में भी हारा हैबेशक यह  सुन्दर और गठीली भी हैदेह मगर कहते सांसो की
gazal k bahane
  श्याम सखा 'श्याम'

मैच की तैयारियों का लिया जायजा
छत्तीसगढ़ की जमीं पर पहली बार आ रही भारतीय हॉकी टीम के खिलाडिय़ों का यहां पर नेताजी स्टेडियम में होने वाले मैच की तैयारियों का जायजा सुबह को हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ खेल संचालक जीपी सिंह ने लिया। इन्होंने वहां पर उपस्थित खेल…….
खेलगढ़ 
राजकुमार ग्वालानी

आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगी
आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा कभी एक पहलू को छूने की कोशिश में दूसरा हाथ से निकल जाता है और बस फ़िर दूसरे पहलू को वापस अपने पास लाने की जद्दोजहद उसके समीकरण हमेशा चलते रहते हैं, इसी तरह कभी भी ये दो पहलू मेरी पकड़ में ही न आ पायेंगे और……
कल्पतरु
Vivek Rastogi
इयत्ता

फाल्गुन आया रे ! - गोरी को बहकाने फाल्गुन आया रे । रंगों के गुब्बारे फूट रहे तन आँगन, हाथ रचे मेंहदी के याद आते साजन ॥ प्रेम-रस बरसाने फाल्गुन आया रे । यौवन की पिचक..
अविनाश वाचस्पति

1411 - अब मैं रिक्‍शा खरीद ही लूं (अविनाश वाचस्‍पति) - सोच रहा हूं ऑफिस आने जाने के लिए एक रिक्शा खरीद ही लूं। स्वास्‍थ्‍य भी ठीक रहेगा और अतिरिक्त आय की संभावना भी बनेगी। अब अगर वेतनभोगी होगा तो दुतरफा लाभ को..
मसि-कागद

वर्ना मैं तुझ जैसों के मुँह नहीं लगता.....-------->>>>>दीपक 'मशाल' - *एक लघुकथा-* उसके कंधे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आत्मीयता से बात करते हुए उस सुपर स्टार पुत्र ने वीरेंदर, जो कि उसका ड्राइवर था, को अपनी परेशानी बताते हुए..
MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर

बैंगलोर से मेरा पुराना नाता, गार्डन सिटी" कब "पत्थरो की नगरी बन गई!! - इन्ह दिनों बाहर रहने का अवसर मेरे लिए कुछ अधिक था! मित्र के घर के मोहरत के सिलसिले में मुझे बैंगलोर जाना पडा . मेरे मित्र, रिश्ते में मेरी बहिन के देवर ..
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 बहुत दिन हुए ........ [कविता]--------------रंजना (रंजू ) भाटिया - एक लम्हा दिल फिर से उन गलियों में चाहता है घूमना जहाँ धूल से अटे .... बिन बात के खिलखिलाते हुए कई बरस बिताये थे हमने .. बहुत दिन हुए ........... फिर से हंसी ...
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 नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [5] - आइये मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2] खंड [3] खंड [4] स्वप्न के बारे में आगे बात करने..
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बाबा फिस्..... - (नागरकोविल के ऑफिस में. जनवरी-१०)


हास्यफुहार
लापरवाही - लापरवाही बात बहुत पुरानी है। तब फाटक बाबू की नई-नई नौकरी लगी थी। वो अपने साहब घोंटू मल के पी.ए. थे। साहब बड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे। दिन भर इधर-उधर..


अब आज्ञा दीजिए!
कल फिर मिलेंगे! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा बहुत सुंदर लगी.... और अदाजी के बारे में जानकर तो और भी अच्छा लगा.... मैं तो उन्हें बहुत प्यार करता हूँ.... उनका लिखा हुआ मुझे बहुत अच्छा लगता है.... पर कभी उनकी पहली पोस्ट नहीं पढ़ी थी..... आज आपके माध्यम से पढने को मिली .... आपको नमन.... व आभार....

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  2. अदा जी का परिचय प्राप्त हुआ. :)


    चर्चा बहुत उम्दा रही!!

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  3. बहुत धन्यवाद इस परिचय के लिये. सुंदर चरचा.

    रामराम.

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  4. अदा जी की पहली पोस्ट का तो मुझे भी नहीं पता था. आभार.

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  5. अदा दीदी को हम तो जानते ही है और उनसे प्यार भी बहुत करते हैं , लेकिन उनकी पहली रचना आज ही पढ़ पायें इसके लिए आभार आपका ।

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  6. Shastri ji,
    bahut aabhari hunaa pne mujhe is yogy samjha ..
    baki ki prvishthiyaan bhi bahut acchi lagin..
    punh aapka aabhaar..

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  7. bahut sundar charcha ....Aadarniy ko bahut bahut dhanywaad!
    wese to Ada didi ko ab kisi ke parichay ke jarurat hi nahi rahi ...wo sabaki itani chaheti banchuki hai kuntu pahali post pad kar bahut accha laga!

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  8. हम तो बहुत-सी पिछली प्रविष्टियाँ पढ़ गये हैं अदा जी की छाँट-छाँट कर ! हाँ अभी पहली तक तो पहुँचे ही नहीं थे ।
    यहाँ प्रस्तुति अच्छी लगी । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  9. इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत कम समय में इस ब्लॉग जगत पर अदा जी ने अपनी एक अमिट छाप छोडी है !

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