"चर्चा मंच" अंक-70 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं- आज कुछ संक्षिप्त चर्चा करने का मन है- |
रवि मन![]() तब तक ... ... . : रावेंद्रकुमार रवि - तब तक ... ... . हमारी मुलाकात हमेशा ऐसे ही होती है - मैं देर से पहुँचता हूँ और वह "इतनी देर क्यों कर दी?" "देर से क्यों आए?" देर तक .. | बिना गणित के देखिए : उड़न तश्तरीआज मैंने डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक के ब्लॉगएक सरल सवाल आपके लिए भी है -- एक दोहे की मात्राओं के योगफल में से एक चौपाई की मात्राओं का योगफल घटाकर सबको बताइए! |
मयंक “दोहा लिखिएः वार्तालाप” *“धुरन्धर साहित्यकार”* *वार्तालाप* आज मेरे एक “धुरन्धर साहित्यकार” मित्र की चैट आई- धुरन्धर साहित्यकार- *शास्त्री जी नमस्कार!* मैं- *नमस्कार जी! * धुरन्ध... | नन्हें सुमन![]() ‘‘तितली रानी’’ ) - * * *मन को बहुत लुभाने वाली,* *तितली रानी कितनी सुन्दर।* *भरा हुआ इसके पंखों में,* *रंगों का है एक समन्दर।।* *उपवन में मंडराती रहती,* *फूलों का रस पी जाती ... |
ताऊजी डॉट कॉम![]() फ़र्रुखाबादी विजेता (194) : श्री ललित शर्मा - नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि ह... | शिल्पकार के मुख से![]() हो्ली आई रे! होली आई रे! आईए होली का स्वागत करें!!! - हमारे ३६ गढ़ में होली का माहौल परम्परागत रूप से बसंत पंचमी से ही प्रारंभ हो जाता है. होलीका दहन स्थल पर पूजा करके अंडा(एरंड) का पेड गड़ाया जाता है प्रति दिन .. |
समाचार:- एक पहलु यह भी![]() अब सांसदों को भी मिली अपमान करने की इजाजत - कहते है की भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं. कुछ इसी जुमले को सिद्ध किया है विश्व की सबसे बड़ी पंचायत ने. उसने अब सांसदों को भी अपमान करने की इजाजत दे दी है.... | मसि-कागद![]() ब्लॉगजगत और हिन्दीप्रेमियों से एक दरख्वास्त------------->>>>>दीपक 'मशाल' - आज की तारीख में वैसे तो हर कोई अपनी-अपनी मर्जी का *राजा* है और अपने-अपने ब्लॉग का भी.. लेकिन फिर भी मैं आप सभी से एक विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ.. वो है ... |
जज़्बात प्यास इतनी बढ़ी ---- क्षणिकाएँ - प्यास इतनी बढ़ी कि वह जीवन से ऊब गया अंततोगत्वा, खबर मिली कि वह दरिया में डूब गया. ***** उसने सुना ज़मीर बेच कर लोग सुकून से रहते हैं, उसने भी ... | कुमाउँनी चेली आओ गरीब दिखें - ऑस्ट्रेलिया अमीर मुल्क है, भारत गरीब. ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्यूंकि *स्लमडॉग मिलेनियर* भारत में बनी थी. वह हमसे उसी तरह कुछ भी कह सकता है, जिस तरह हर अ... |
हास्यफुहार मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी - *मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी*** पत्नी पति से – सुनो जी अगर इसी रफ्तार से तुम्हारे सिर के बाल झड़ते रहे तो एक दिन मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी । मुझे गंजे लो.. | साहित्य योग आदमी आदमी को भूल गया - नदी बन गए नाले, जंगल बने कब्रिस्तान जहाँ लगती थी चौपाल, वहां आज है दूकान खेत बन रहे सड़क, बाग़ आंबेडकर उद्यान बैठका भी हुआ खत्म, बस दिख रहे पक्के मकान हात... |
काव्य तरंग हृदय में ही ईश्वर रहता है - सरल हृदय सदभाव लिए, सदैव सरिता सा बहता है । अभिमान सदा पैरो को पसारे, उसकी राहों में रहता है ।। अभिमान ने ज्ञान को नष्ट किया, ना ज्ञानी कभी आभिमानी हुए । दे... | नया एकीकृत पाठ्यक्रम-कुछ सवाल !मानव संसाधन विकास मन्त्री श्री कपिल सिब्बल के देश मे शैक्षणिक सुधारों के प्रति उठाये जा रहे कुछ कदम भले ही स्वागत योग्य हों, जोकि निश्चित तौर पर हमारी सरकारों को बहुत पहले और न सिर्फ़ कुछ गिने-चुनेविषयों मे बल्कि पूरे पाठ्यक्रम के सम्बंध मे उठा लिये जानेअंधड़ ! पी.सी.गोदियाल |
simte lamhen चराग के साये मे ....... - एक मजरूह रूह दिन एक उड़ चली लंबे सफ़र पे, थक के कुछ देर रुकी वीरानसी डगर पे ..... गुज़रते राह्गीरने देखा उसे तो हैरतसे पूछा उसे 'ये क्या हुआ तुझे? ये लहूसा .. | शब्द-शिखर![]() जीवन एक पुष्प समान - *यह जीवन एक पुष्प समान है. आप अपने हृदय के पटों को जितना खोलेंगें अर्थात अपनी विचारधारा को जितना विकसित करेंगें, वह समाज को उतना ज्यादा सुवासित करेगी !! * |
Gyan Darpan ज्ञान दर्पण जातीय भावनाओं का दोहन - जब से अमर सिंह जी समाजवादी पार्टी से बाहर हुए है | मोबाइल फ़ोन पर क्षत्रिय एकता के एस एम् एस की बाढ़ सी आई हुई है | क्षत्रियो जागो ,उठो , एक हो जावो , आज स... | bhartimayank "रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-21" (अमर भारती) - * रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-21 में * *आप सबका स्वागत है।* आपको पहचान कर निम्न चित्र का नाम और स्थान बताना है। [image: IMG_0878] *उत्तर देने का समय 23 फ.. |
नवगीत की पाठशाला![]() ७- राग वसंत - चेहरा पीला आटा गीला मुँह लटकाए कंत, कैसे भूखे पेट ही गोरी गाए राग वसंत मंदी का है दौर नौकरी अंतिम साँस गिने, जाने कब तक रहे हाथ में कब बेबात छिने सुबह ... | साहित्य योग आदमी आदमी को भूल गया - नदी बन गए नाले, जंगल बने कब्रिस्तान जहाँ लगती थी चौपाल, वहां आज है दूकान खेत बन रहे सड़क, बाग़ आंबेडकर उद्यान बैठका भी हुआ खत्म, बस दिख रहे पक्के मकान हात.. |
मेरी शेखावाटी फ्री में किताबे यहाँ से प्राप्त करे | Get free books here - शीर्षक पढ़ कर चोकिये मत | आज मै आपको फ्री बुक मिलने का पता बता रहा हूँ | आप इस साइट पर जाकर अपनी मन पसंद बुक कैटेगिरी के हिसाब से छांट कर डाऊनलोड कर सकते है... | सच्चा शरणम् तुम क्यों उड़ जाते काग नहीं ! - तुम क्यों उड़ जाते काग नहीं ! व्याकुल चारा बाँटते प्रकट क्यों कर पाते अनुराग नहीं । दायें बायें गरदन मरोड़ते गदगद पंजा चाट रहे क्या मुझे समझते वीत-राग फागुन.. |
कबाड़खाना मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो- इस कबाड़ी ने अबके लंबा गोता मार लिया । लेकिन 'ग़ालिबे खस्त: के बगैर कौन - से काम बन्द हैं'। दुनिया अपनी चाल से चल रही है , चलती रहेगी। आज से होली की शुरुआत और .. | अज़दक जाने किस काले समय में.. - *‘सहरा के चेहरे पर क्या भाव हैं?* क्या किस तरह के भेद बंद हैं इन आंखों में सहरा कभी कुछ बोलती क्यों नहीं?’ सूती का सफ़ेद दुपट्टा सहरा की सांवली कलाई क... |
अमीर धरती गरीब लोग लड़की,बिकनी और समुद्र का सीमेन्ट से क्या लेना-देना? - पेश है एक माईक्रोपोस्ट।मामला दिखने मे बहुत छोटा सा है लेकिन जिस्म ऊघाड़ू और घूरू प्रवृत्ती का उदाहरण है।क्या आपको पता है लड़की,बिकनी और समुद्र का सीमेन्ट से .. | मानसिक हलचल नाले पर जाली - गंगा सफाई का एक सरकारी प्रयास देखने में आया। वैतरणी नाला, जो शिवकुटी-गोविन्दपुरी का जल-मल गंगा में ले जाता है, पर एक जाली लगाई गई है। यह ठोस पदार्थ, पॉली.. |
स्वप्नलोक अन्तू ते सन्तू दी गड्डी - अब खुशियों का ना रहा, कोई पारावार । अपने घर जब आ गई, नई एस्टिलो कार ॥ नई एस्टिलो कार, लगे यह बड़ी सुहानी । इसके आने की है अपनी अलग कहानी ॥ विवेक सिंह यों कहे.. | क्वचिदन्यतोअपि..........! श्रीश के अनुरोध पर मैंने लिखी इक कविता .लिखी क्या कविता ने लिखा लिया खुद को मुझसे! - जी हाँ ,एक दिन श्रीश ने हड़का ही लिया मुझे ....बच्चों का आतप झेला नहीं जा सकता .कभी उन्होंने मुझे* नवोत्पल* पर लिखने को आमंत्रित किया था और मैंने इस साहित.. |
अर्थात किसका विकास- कैसा विकास? - *(जाने-माने अर्थशास्त्री गिरीश मिश्र जी का यह आलेख अभी हाशिया पर पढ़ा … मुझे बेहद उपयोगी लगा तो यहां भी लगा दिया )* पिछले कई हफ्तो से *यह धुआंधार प्रचार .. | यही है वह जगह खेल दुनिया की अपारदर्शिता,कलमाडी और ‘बोफ़ोर्स’- देश-रक्षा की तरह हमारा राष्ट्र-प्रेम खेल के मामले में भी उत्कटता के साथ प्रकट होता है । खेल और रक्षा मामलों में एक समानता और है , वह है अपारदर्शिता (या पार.. |
कार्टून : घोर आपत्तिजनक और अव्यावहारिक !!!![]() बामुलाहिजा >> Cartoon by Kirtish Bhatt | रंग बिरंगी होली का यही तो है संदेशऐसे रंग में क्या रंगा, स्वयं हुए बदरंग। प्रेम रंग सांचा 'रसिक' जीवन भरे उमंग।।रंगी हथेली ले बढे,चेहरा रंगा उजास। सच्ची होली हो तभी, फैले प्रेम प्रकाश।।लाल लाल उडने लगी , चारो ओर गुलाल। शहर शहर बाजार से, गांव गांव चौपाल।।जल में जैसे रंग घुला, एक हृदय हमारा खत्री समाज संगीता पुरीकाव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी-आचार्य परशुराम राय आचार्य भरतमुनि के बाद साहित्यशास्त्र के इतिहास पटल पर आचार्य भामह का काल छठवें विक्रम सम्वत का पूर्वार्ध माना गया। आचार्य भरतमुनि और आचार्य भामह के बीच लगभग छः- सात सौ वर्षों का एक लम्बा अन्त राल मनोज करण समस्तीपुरी चलते-चलते राम-राम! |
Sundar aur vistrat charcha ke liye aapko dhanyawaad!
जवाब देंहटाएंSaadar
धन्यवाद. कुछ और चिट्ठों की जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही चर्चा
जवाब देंहटाएंबढिया विस्तृ्त चर्चा!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा के लिये आभार
जवाब देंहटाएंmere chitthe ko shamil karne ke lie dhanyavaad...
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर चर्चाएँ तो
जवाब देंहटाएंअभी से होली के रंग में रँगने लगी हैं!
--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की –
"नवसुर में कोयल गाता है, मीठा-मीठा-मीठा!
श्रम करने से मिले सफलता,
परीक्षा सिर पर आई! "
--
संपादक : सरस पायस
अहा!! बेहतरीन चर्चा!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहद खूबसूरत चिट्ठा चर्चा । आभार ।
जवाब देंहटाएं