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मंगलवार, जून 29, 2010

साप्ताहिक काव्य मंच - ६ ( संगीता स्वरुप ) चर्चा मंच - 199

नमस्कार…आज है मंगलवार..काव्य प्रेमियों को काव्य चर्चा का था इंतज़ार…तो मैं ले आई हूँ कविताओं की भरमार ..पढ़ कर दीजिए आप अपने सुविचार…आज के इस मंच पर हर रंग की कविताओं का समायोजन है…कोशिश  है कि आपकी उम्मीदों पर खरी उतर सकूँ….इस मंच से उन सभी पाठकों को धन्यवाद देना चाहती हूँ जो नए लिंक्स पर पहुँच कर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं.मेरे इस प्रयास की सार्थकता को बल मिलता है…
तो आज की चर्चा प्रारम्भ करते हैं घर की परिभाषा से….
 My Photoराज कुमार सोनी जी    बिगुल »  बजा कर  बता रहे हैं कि उनको कैसा      घर   चाहिए…

मकान बिकाऊ है
बस यही विज्ञापन देखकर
नहीं खरीदना है मकान
मुझे तो घर चाहिए... घर।

घर कि-
जिसमें कुछ जोड़ी सुंदर आंखे
करती हो मेरा इन्तजार
मेरा फोटोजितनी तीक्ष्ण धार इनके लेखों में है उतनी ही तेज धार इस व्यंग कविता में ….

झा जी कहिन   कि

सीता की दुविधा ऐसी जानी , हाय कैसी अटकी ब्लोगवाणी
बात नहीं ये बडी पुरानी ,
सुनिए जरा सब ज्ञानी ध्यानी ,


मणि रत्नम ने बुनी कहानी ,
राम सीता रावण की बानी
My Photoकुछ शब्द सजाये हैं मैंने एक एक कर..
पर देखिये कि कैसे महका रखा है अपना चमन…

तुम्हारी खुशबु..

कहा था ना तुमसे,
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चली गईं तुम,
तुम्हारे कहे मुताबिक़,
रोज़ दाना डालता हूँ कबूतरों को,


मेरा फोटोमुक्ताकाश..  पर आनंद वर्धन ओझा जी का कहना है कि  
सारी हदें बढ़ने लगी हैं ..
गुमशुदा लाशें लहरों से ये कहने लगी हैं --
क्यों हवाएं आज परेशान-सी रहने लगी हैं
My Photoअशोक व्यास जी धरती माँ की बताई गोपनीय बात कह रहे हैं
सिर्फ अपने लिए जीने में सार नहीं है

लहर दर लहर
सागर भेज रहा है सीढियां
चलो, उठो गगन तक जाओ
हहरा कर
सुना रहा है सन्देश
जो छूट नहीं सकता, उसे अपनाओ
My Photoरघुनन्दन प्रसाद जी अपने गीत में कह रहे हैं कि इतिहास के चक्कर में भूगोल गँवा बैठे हैं    तुहिन   पर  आनंद लीजिए इस गीत   का …. 

इतिहास सवारे दुनियां का, अपना भूगोल गवां बैठे.
सुख दुःख में फर्क नहीं कोई, ऐसे मुकाम पर आ बैठे.
My Photo
सुधीर जी जीवन के पदचिन्ह » पर बता रहे हैं कि सबसे बड़ा शिल्पकार कौन है….


          नयनो से बड़ा होता कोई शिल्पकार नहीं




नयनो से बड़ा होता कोई शिल्पकार नहीं
गढ़ लेते हैं स्वप्न जिनका कोई आधार नहीं
My Photoसंवेदना संसार  में पढ़िए रंजना सिंह की कविता

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय !!!

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय,
मन मयूर उन्मत्त हो गया.
विदित हुआ मुझ में अनुपम सा,
सब कुछ प्रकृति प्रदत्त हो गया.
मेरा फोटोमुकेश कुमार सिन्हा जिंदगी की राहें  पर  दिल्ली की  खासियत बताते हुए कह रहे हैं कि 
ये दिल्ली है मेरी जान
ये दिल्ली है मेरी जान
चौड़ी सड़कें
फिर भी सरसराती
बी.एम.डब्लू.
के नीचे जाती मेहनतकश की जान




वाणी शर्मा गीत मेरे ....पर सन्देश दे रही हैं कि

मत रोको उन्हें ...उड़ने दो ...बहने दो .
मत रोको
उड़ने दो उन्हें
उन्मुक्त गगन में
मुक्त
निर्द्वंद्व , निर्भय , निरंकुश
छू आने दो व्योम के उस छोर को
जहाँ तलाश सकती हैं
वे अपना अस्तित्व
जान सकती हैं
अपने होने का मतलब ..
My Photo
Akanksha »  पर  आशाजी बता रही हैं कि क्या किया उन्होंने  
जब भी कोरा कागज देखा
..

जब भी कोरा कागज देखा ,
पत्र तुम्हें लिखना चाहा ,
लिखने के लिए स्याही न चुनी ,
आंसुओं में घुले काजल को चुना ,

My Photoलमहा -लमहा »  पर  प्रज्ञा जी खूबसूरत एहसासों को व्यक्त कर रही हैं    
आओ न  तुम पुल के पार
आओ ना तुम पुल के पार
जैसे हर हर नदी से होकर
आती छल छल धार
SDC11128


मनोज जी    मनोज  ब्लॉग पर  बता रहे हैं कि  क्या है बस उनका…..जानना है तो पढ़ें

… बस मेरा है!! 

मेरे उजालों ने
मुझको ही कैद किया
आपस की खुसर – पुसर
होता भयभीत मन

खामोश आवाज़

ब्लॉग पर अकस्मात द्वारा रची गयी गज़ल पढ़ें
याद....( ग़ज़ल)

इक रात यूँ ही बैठे तुम नज़र आई
कभी राहगीर तो कभी रहगुज़र बन आई
हम आज भी तेरा इंतज़ार करते हैं
तेरे हर ख्याल पे क्यों ये आँख भर आई

स्वार्थ   पर पढ़िए राकेश जी    द्वारा   रचित    कविता 

मन और देह के सत्य

देह का सत्य
हमेशा
मन का भी सत्य
नहीं होता।

जहाँ नजदीकी हो
और भय न हो खोने का
वहाँ पाने के लिये
मन पहले होता है,

"सच में

     पर ktheLeo की लिखी रचना पढ़िए

नसीब !

ज़िन्दगी अच्छी है,
पर अज़ीब है न?
जो बुरा है,
कितना लज़ीज़ है न?

गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना नसीब है न?
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना \
ये  हैं साधना वेद जी की माताजी  ज्ञानवती सक्सेना (किरण ) ……… साधना जी की कृपा है जो उनकी सुन्दर रचनाएँ हम तक पहुंचा रही हैं…आज की कविता     जीवन पथ    में जीवन के हर रंग से परिचय कराया है…


जीवन है पथ , मैं पथिक सखे !
इस पथ में ममता की आँधी
चलती रहती अवदात सखे,
इस पथ में माया की सरिता
बहती रहती दिन रात सखे
My Photoअनामिका की सदाये. पर पढ़िए 
कर्मफल
आज अंतस के भीतर
कहीं गहरे में
झाँक कर देखती हूँ
और फिर
उस लौ तक पहुँचती हूँ
जो निरंतर जल रही है,
AAPKA HARDIK SAWAGAT HAIगोविन्द गोयल जी  नारदमुनि जी पर चुटकी लेते हुए कह रहे हैं सरकार का नियंत्रण है भी कहीं
पेट्रोल,डीजल
गैस पर अब
सरकारी नियंत्रण
नहीं,
My Photo
ऋतिका  के UnxploreDimensions... पर पढ़िए 
खामोश सूनी  चादर
दरमियान फ़ैल  गयी
"मेरे - तुम्हारे" के बेमानी  आयाम
बेवजह खींच  गयी
My Photoहम दिल्ली वाले तो चा रहे हैं की काश धूप बादल में छिप गयी होती  , और श्रद्धा जी  अपनी

भीगी ग़ज़ल  पर कह रही हैं कि 

-काश बदली से कभी धूप निकलती रहती

  काश बदली से कभी धूप निकलती रहती
ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं रफ़्ता रफ़्ता
ज़िंदगी ठोकरें खा- खा के, संभलती रहती
अमृत  उपाध्याय  की    कशमकश   पर जानिये कि      लहरों से लौटकर.  कौन आ रहा है…

टकरा गए ख्वाब
इस बार,
समंदर की लहरों से
सीधे सीना तान कर,
चकनाचूर भी हो गए,
ना वक्त बचा पाया इन ख्वाबों को
ना परोस पाया कभी
मेरा फोटोशेफाली पांडे  नाम से इस हिंदी ब्लॉग जगत में कौन परिचित नहीं है…बहुत अच्छी व्यंगकार हैं ..

कुमाउँनी चेली    पर    माईकल जैक्सन की याद में  कुछ बयां कर रही हैं

दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको

मेरा फोटोउमड़त घुमड़त विचार  पर सूर्य कान्त जी  ने भूख पर नए अंदाज़ में विचार रखे हैं ..हर शख्स आज है भूखा
“भूख “ पर पढ़िए क्षणिकाएं
दिन रात की मेहनत, नहीं मिलता मेहनताना इतना
कि भर ले उदर अपना  खा के रूखा सूखा
गुजर रही है जिन्दगी, रह एक जून भूखा
मेरा फोटोमेरे जज्बात »  पर  के० एल० कोरी की गज़ल

फिर वो मौसम सुहाने याद आये


यूँ ही थे साथ जो गुजरे ज़माने याद आये
हमको फिर वो मौसम सुहाने याद आये
जख्मो की जब सौगात हुई नसीब अपने
तुम्हारे हाथों के मरहम पुराने याद आये

 काव्य मंजूषा    पर अदा जी   न जाने क्या क्या टटोल लेती हैं , और फिर कहती हैं कि   …. 

 

टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं ....

ख़यालों का आना-जाना था, किसी से किसी का सिला नहीं
ख़ुद पर ही कभी रंज हुए और कभी किसी से गिला नहीं
पत्तों का जब आग़ोश मिला, शबनमी नूर बस दमक उठा  
बदली में चाँद वो छुपा रहा, रौशन अब कोई काफ़िला नहीं
मेरा परिचय यहाँ भी है!लीजिए  पावस ऋतु का आगाज़  हो गया है… डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की कविता पढ़िए और बादलों का स्वागत कीजिये  
“नभ में काले बादल छाये!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
बारिश का सन्देशा लाये!!  
नभ में काले बादल छाये!
IMG_1525
छम-छम बून्दें पड़ती जल की,  
ध्वनि होती कल-कल,छल-छल की,  
जग की प्यास बुझाने आये!  
नभ में काले बादल छाये! 

My Photo
चर्चा  के अंत में गिरीश पंकज  जी    साधो यह हिजड़ों का गाँव-१९   के माध्यम से सरकारी तंत्र  और राजनीति पर तीक्ष्ण  कटाक्ष कर रहे हैं ….

ये पट्ठा सरकारी है।
इसका चम्मच, उसका करछुल, बड़ी अजब बीमारी है।
बार-बार झुकता रहता है, यह पेटू-लाचारी है।
यहाँ झुका, फिर वहाँ झुकेगा, बड़ा बिज़ी अधिकारी है।
चर्चा की  समाप्ति पर एक नम्र निवेदन, कृपया इस मंच पर जिनकी रचनाएँ ली जाएँ वो आभार न प्रकट करें…आपने अच्छा लिखा इसलिए आप यहाँ हैं…और नए लोगों से परिचय कराना मेरा दायित्त्व है….अत: मेरे भार को न बढ़ाएं…आप सबकी आभारी रहूँगी…………तो चलिए फिर शुरू कीजिये अगले मंगलवार का इंतज़ार …….नमस्कार

26 टिप्‍पणियां:

  1. बिना आभार प्रकट किये,धन्यवाद सुन्दर चिठ्ठों को पढने का अवसर देने के लिये!

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. नायाब प्रस्तुति!
    बहुत सुंदर संकलन जिसे बार-बार पढने को मन चाहे।

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  4. बहुत सुन्दर चर्चा ! बधाई एवं धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. हमेशा की तरह आपकी मेहनत की चमक साफ दिखाई दी रही है।
    मैं पहले भी कह चुका हूं एक बार फिर कह रहा हूं कि आप जिस काम को भी करती होगी तो पूरे मनोयोग से करती होगी।
    सबसे अच्छी बात यह है कि आपने अपनी चर्चा में इस मिथ को तोड़ डाला है कि जो कुछ रोज छप रहा है केवल वही चर्चा के लायक है। जो कुछ छप चुका है और अगर अच्छा है तो उसे चर्चा में शामिल करने में कोई बुराई नहीं है।
    साहित्य की पत्र- पत्रिकाओं में एक विमर्श लंबे तक चलता है और फिर कई कालजयी रचनाओं का पता चल पाता है लेकिन ब्लागजगत में तो लगता है कि 24 घंटे के बाद एक पोस्ट की मौत हो जाती है या फिर पोस्ट से कह दिया जाता है कि बेटा तुझे कोई नहीं मार रहा है तू खुद ही फांसी लगाकर लटक जा।
    कोई करें या न करें लेकिन न जाने क्यों मुझे लगता है कि आप कुछ बेहतर ही गढ़ने वाली है।
    आपने मेरी पोस्ट को स्थान दिया उसके लिए तो आपका आभारी रहूंगा ही।

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  6. संगीता दी, आपने आभार प्रकट करने से मन किया है!! लेकिन इतना तो कह ही सकता हूँ की ब्लॉग जगत के स्तंभों के बीच अपने को पाकर मैं खुश हूँ ..........:)

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  7. चर्चा बहुत बढ़िया रही!
    --
    सभी उपयोगी लिंक एक स्थान पर ही मिल गये!

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  8. main bhi is manch mein likhna chahunga kripya madad karien evam batlaaye kis prakaar likh skta hu yaha??
    मैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
    यह रहा मेरा चिटठा:-
    **********सुनहरीयादें**********

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. संग्रहकर्ता द्वारा कितनी ही रचनाओं में से पढ़कर कुछ का चुनाव करना एक ऐसा प्रयास होता है जिसके कारण ही कोई भी संग्रह अपनी एक अलग प्रकृति और खासियत पाता है और इसीलिये लिये संग्रहकर्ता को कोशिशों के लिये कम से कम शब्द में अपनी भावनायें व्यक्त करने वाला "धन्यवाद" तो कहा ही जा सकता/जाता है।
    धन्यवाद संगीता जी।

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  11. waah, ek saath itni saari rachnaye padhna sukhad raha... Aabhar..!ano

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  12. मैं समझ नहीं सका था पहले चर्चा मंच का महत्व, मंगलवार का इंतजार था और इंतजार का पूरा होना सुकून भरा रहा, तमाम रचनाओं का एक जगह संकलन पढ़ना बेहतरीन अनुभव रहा, आभार प्रकट करने के लिए मना किया है आपने वरना मैं जरूर करता....

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  13. आपकी चर्चा की विशेषता है कि बहुत अलग अलग और बेहतरीन लिंक समेटती हैं आप ..खोज खोज कर.

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  14. बहुत ही सारगर्भित चर्चा…………………काफ़ी अच्छे लिंक्स्…………मेहनत साफ़ झलकती है।

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  15. bahut bahut abhar sangeeta ji aapka ashirvad yu hi banaye rakhe

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  16. chaliye ji nahi abhar prakat karenge aapka ki aapne hamari post ko yaha jagah di...bt kintu parantu thanku kah sakti hu. apke diye hue links par one by one kar k ja rahi hu.

    as usual aap charcha manch lagane me MS.PERFECT ban gayi hain. :)

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  17. जब भी कोरा कागज देखा ,
    पत्र तुम्हें लिखना चाहा ,
    लिखने के लिए स्याही न चुनी ,
    आंसुओं में घुले काजल को चुना ...pasand aai

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  18. चर्चा मंच पे जगह मिली,भाग्य हमारा जग गया
    दिल मे खुशी हो रही है कितनी, कैसे करुं मैं इसे बंया
    भार मे "आ" नहि जोड़ुंगा, कहने मे कोई हर्ज़ न होगा आपको, शुक्रिया शुक्रिया औ शुक्रिया ।

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  19. चर्चा एक दिन बाद देख रही हूँ. बार बार वही कहने में लगता है कि नए शब्द कहाँ से लाऊं. बहुत सुन्दर ढंग से और पता नहीं कहाँ कहाँ से ये नायब मोती चुन लाती हो. हम जैसों के लिए तो वरदान हैं क्योंकि समुद्र में घुस पाते नहीं और ये जिम्मेदारी तो चर्चा मंच वालों ने ले रखी है सो उसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं.

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  20. थोडा सा इंतज़ार कीजिये, घूँघट बस उठने ही वाला है - हमारीवाणी.कॉम

    आपकी उत्सुकता के लिए बताते चलते हैं कि हमारीवाणी.कॉम जल्द ही अपने डोमेन नेम अर्थात http://hamarivani.com के सर्वर पर अपलोड हो जाएगा। आपको यह जानकार हर्ष होगा कि यह बहुत ही आसान और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाया जा रहा है। इसमें लेखकों को बार-बार फीड नहीं देनी पड़ेगी, एक बार किसी भी ब्लॉग के हमारीवाणी.कॉम के सर्वर से जुड़ने के बाद यह अपने आप ही लेख प्रकाशित करेगा। आप सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इसका स्वरुप आपका जाना पहचाना और पसंद किया हुआ ही बनाया जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे आपके सुझावों को मानते हुए इसके डिजाईन तथा टूल्स में आपकी पसंद के अनुरूप बदलाव किए जाएँगे।....

    अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
    http://hamarivani.blogspot.com

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  21. achchhe blog ko padhne ka madhyam banane ke liye dhanyawad!!

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