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गुरुवार, जनवरी 09, 2014

चर्चा - 1487

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 
चलते हैं चर्चा की ओर
"कुछ कहना है"
Amrita Tanmay
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आपका ब्लॉग
रविकर की कुण्डलियाँ
मेरा फोटो
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आभार 
आगे देखिए.."मयंक का कोना"
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नर्स 

अस्पताल के हर गलियारे में 
नर्स घुमती नजर आती है 
विशेष पोशाक पहने मुस्कान के साथ
मरीज के पास जाती ह 
दिल में आशीषो को पाने की तमन्ना 
आँखों में प्रेम लिए आती है 
मरीज के साथ कोई विशेष रिश्ता नहीं 
फिर भी सम्पूर्ण समर्पण की भावना दिखाती है 
सेवा ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा 
आदि गुणों को अपना आभूषण बनाती है....
आपका ब्लॉग पर Hema Pal 
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स्त्री की यादों का जंग लगा बक्सा ! 

जीवन के संध्या-काल में , 
बैठी हूँ लेकर यादों का जंग लगा बक्सा , 
खोलते ही खनक उठे 
बचपन की टूटी चूड़ियों के टुकड़े , 
और बिखर गए 
पिता के घर से विदाई के समय 
बहे आंसुओं की माला के मोती...
भारतीय नारी पर shikha kaushik
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सेहतनामा /आरोग्य समाचार : 
(२) दीर्घावधि तक 
(कमसे कम साल भर भी ज्यादा अवधि तक ) 
माँ के द्वारा शिशु को स्तनपान करवाते रहना 
स्वयं माँ के लिए आगे चलकर 
र्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के खतरे के 
वजन को कम कर देता है। 
आपका ब्लॉग पर 
Virendra Kumar Sharma
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हरा अब हरा नहीं रहा... 

ये रंगों के रंग बदलने के दिन हैं। 
हरे को हरा हुए बहुत दिन हो गए थे 
तो उसने अंगड़ाई लेकर 
कत्थई होने का मन बना लिया। 
भूरा या लाल होने के बारे में 
उसने सोचा नहीं... 
प्रतिभा की दुनिया ...पर Pratibha Katiyar 
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सिल्कसिटी सूरत की कद्दावर हस्ती 
रमेश लोहिया 

एक तरफ जहाँ राजनैतिक स्तर पर चारों तरफ लूट मची है, ऐसे भीषण समय में भी समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने देश और समाज के उत्थान में जुटे हुए हैं तथा तन मन धन से कार्य कर रहे हैं - ऐसे ही एक ज़बरदस्त व्यक्तित्व हैं सूरत के प्रतिष्ठित व्यापारी व समाजसेवी श्री रमेश लोहिया जो वैश्य समाज की राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाओं के माध्यम से लगातार काम क रहे हैं...
अलबेला खत्री
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उम्र के आखिरी पन्‍ने पर .... 
लम्हा-लम्‍हा करीब आता काल, 
शिथिल तन, कुछ न कह पाने की विवशता 
पलकों की कोरों से बहती रही 
सब पास थे चाहते औ’ ना चाहते हुये भी 
पर दूर थी सबसे वो ‘गुड्डी’...
SADA

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समझ में कहाँ आता है 
जब मरने-मरने में 
फर्क हो जाता है 
My Photo
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

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तो इस पे बोसों की हम झालरें लगा देते.... 
नवीन सी. चतुर्वेदी 


तुम अपना चेहरा जो इन हाथों को थमा देते 
तो इस पे बोसों की हम झालरें लगा देते 
पलट के देखने भर से तो जी नहीं भरता 
ये और करते कि थोड़ा सा मुस्कुरा देते...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 
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तरकीब!! 

मैं जिंदगी की कोई तरकीब लिए था 
था कुछ तो ऐसा, जो मैं अजीब लिए था ! 
एक शहर कुछ गोल सा बस गया था 
मुझ में या कि इश्क़ में मैं चाँद को रकीब लिए था ...
Rhythm of words... पर 
Parul kanani
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जैसे इंडिया विश्व कप जीतती तो जश्न करते: 

एक खबर पिछले रविवार को आई थी....!!! पर इस राजनीतिक चकाचौंध मे मीडिया हमे कुछ बातें बता के गौरवान्वित होने मे महफूज कर दी....
KNOWLEDGE FACTORY पर 
मिश्रा राहुल 

21 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात |उम्दा चर्चा आज की
    सूत्रों से भरपूर |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. आप की नज़रों ने समझा इस योग्य धन्वयाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर व पठनीय सूत्र, आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर व पठनीय उम्दा लिंक्स, आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. bade khoobsurat links hain.....maza aa gaya.mujhe jo shamil kiye uske liye aabhari hoon......

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर लिंक्स |अआभार |
    www.drakyadav.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आपका-

    जवाब देंहटाएं
  8. waah waah
    abhinandan aapka is sundar aur manohari charcha ke liye

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर चर्चा सजाई है दिल बाग ने आज ! उल्लूक का "समझ में कहाँ आता है जब मरने-मरने में
    फर्क हो जाता है " को शामिल करने पर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. इस मंच पर आकर अपार ख़ुशी होती है . हार्दिक आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  11. बढ़िया लिंक्स सुन्दर चर्चा..

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  13. आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
    आपका बहुत-बहुत आभार।
    --
    आपकी चर्चा बहुत सन्तुलित और सुन्दर होती है।

    जवाब देंहटाएं
  14. सुंदर व्यवस्थित चर्चा...सादर आभार !!

    जवाब देंहटाएं

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