मित्रों!
स्लो कनक्शन है।
चर्चा लगाने की रस्म ही पूरी कर रहा हूँ बस।
मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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मधुमास दोहावली
शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत ।
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार ...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत ।
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार ...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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""बगुला भगत"
नन्हे सुमन
बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।...
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शीर्षकहीन
* आम आदमी पार्टी *
*आप ने साल भर में ही में रंग अपना जमाया है *
*समझते ही नहीं थे जो समझ में उनकी आया है....
"मेरी पुस्तक - प्रकाशित रचनाएँ : प्रेम फ़र्रुखाबादी"
* आम आदमी पार्टी *
*आप ने साल भर में ही में रंग अपना जमाया है *
*समझते ही नहीं थे जो समझ में उनकी आया है....
"मेरी पुस्तक - प्रकाशित रचनाएँ : प्रेम फ़र्रुखाबादी"
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गज़ल
हे वसन्त ! तू अपने जैसा मधुमय कर दे।
जितना रसमय है तू, मुझको भी रसमय कर दे...
अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
हे वसन्त ! तू अपने जैसा मधुमय कर दे।
जितना रसमय है तू, मुझको भी रसमय कर दे...
अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
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शीर्षकहीन
*वन्दे चरण *
*हे माता सरस्वती *
*करूँ वन्दन *
* माँ सरस्वती जयंती पर सभी को शुभकामनाएं!*
अंतर्मन की लहरें पर सारिका मुकेश
*वन्दे चरण *
*हे माता सरस्वती *
*करूँ वन्दन *
* माँ सरस्वती जयंती पर सभी को शुभकामनाएं!*
अंतर्मन की लहरें पर सारिका मुकेश
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भराव शून्यता का
बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती को नमन करते हुए
यह रचना सुश्री रश्मि प्रभा जी को समर्पित --
जब न हो संघर्ष जीवन में
और न ही हो कोई विषमता
तो वक़्त के साथ
कुछ उदास सा
हो जाता है मन
सहज सरल सा
जीवन भी ले आता है
कुछ खालीपन .
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
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गज़ल
हे वसन्त ! तू अपने जैसा मधुमय कर दे।
जितना रसमय है तू, मुझको भी रसमय कर दे॥१॥
प्रतिपल, प्रतिक्षण बहती है रसधार तुझमें।
मुझ पर भी तू प्यार की बौछार कर दे॥२॥
अंजुमन
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एक ख़त चलते-चलाते ज़िन्दगी के नाम ..
एक ख़त चलते-चलाते ज़िन्दगी के नाम लिख दूँ !
लिखा है आधा-अधूरा बहुत बाकी रह गया पर ,
तू अगर चाहे बता सारे सुबह औ'शाम लिख दूँ ....
शिप्रा की लहरें
एक ख़त चलते-चलाते ज़िन्दगी के नाम लिख दूँ !
लिखा है आधा-अधूरा बहुत बाकी रह गया पर ,
तू अगर चाहे बता सारे सुबह औ'शाम लिख दूँ ....
शिप्रा की लहरें
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धरा पर बसंत ऋतु आई....
-मुरझाई सी अमराई में
है गुनगुन भौरों की आहट
खिले बौर अमिया में
मंजरी की सुगंध छाई
धूप ने पकड़ा प्रकृति का धानी आंचल
देख सुहानी रूत फूली सरसों,....
रूप-अरूप
-मुरझाई सी अमराई में
है गुनगुन भौरों की आहट
खिले बौर अमिया में
मंजरी की सुगंध छाई
धूप ने पकड़ा प्रकृति का धानी आंचल
देख सुहानी रूत फूली सरसों,....
रूप-अरूप
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंवसंतमय चर्चा |
आशा
बहुत मेहनत से सजी है बासंती चर्चा । उल्लूक का "हर शुभचिंतक अपने अंदाज से पहचान बनाता है " को भी जगह मिली है । आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा -
जवाब देंहटाएंआभार गुरूजी
धनबाद आ गया हूँ-
सादर
अच्छी चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने के लिए .
जवाब देंहटाएंअत्यन्त रोचक व पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंरूपचन्द्र जी, मेरे आलेख को चर्चामँच में जगह देने के लिए बहुत धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
सुन्दर वासन्ती चर्चा -आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमधुमास दोहावली में खुलकर मधु रिसा है।
जवाब देंहटाएंमधुमास दोहावली
शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत ।
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार ...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
मधुमास दोहावली में खुलकर मधु रिसा है।
जवाब देंहटाएंमधुमास दोहावली
शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत ।
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार ...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
कोई भी कुत्ता
जवाब देंहटाएंविस्फोटक का पता
सूंघ कर ही
लगाता है
इसी लिये हर
शुभचिंतक
चिंता को दूर
करने के लिये
खबरों को
सूंघता हुआ
पाया जाता है
बिम्ब प्रधान सुन्दर रचना सशक्त अर्थ अन्विति भाव के साथ
सुन्दर मनोहर
हर शुभचिंतक
अपने अंदाज से पहचान बनाता है
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सुशील जोशी
उल्लूक टाईम्स--
सगरे कुल का यह घाती
जवाब देंहटाएंप्रजातंत्र का प्रतिघाती है।
बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।।
मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।।
सगरे कुल का यह घाती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रेरक दोहावली।
भ्रष्टाचार बने यहां, कलंक अपने माथ ।
कलंक धोना आपको, देना मत तुम साथ ।।
हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला काहे होय ।।
घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।
रूकता ना बलत्कार क्यों, कठोर विधान होय ।
चरित्र भय से होय ना, गढ़े इसे सब कोय ।।
जन्म भये शिशु गर्भ से, कच्ची मिट्टी जान ।
बन जाओ कुम्हार तुम, कुंभ गढ़ो तब शान ।।
लिखना पढना क्यो करे, समझो तुम सब बात ।
देश धर्म का मान हो, गांव परिवार साथ ।।
पुत्र सदा लाठी बने, कहते हैं मां बाप ।
उनकी इच्छा पूर्ण कर, जो हो उनके आप ।।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रेरक दोहावली।