मित्रों।
रविवार के चर्चाकार प्रियवर राहुल मिश्रा जी की माता जी
अस्पताल में भर्ती हैं। उनका ऑपरेशन चल रहा है।
ईश्वर से प्रार्थना है ऑपरेशन सफल हो
और राहुल मिश्रा जी की माता जी जल्दी से स्वस्थ हो जायें।
--
रविवार की चर्चा में मेरी पसंद के लिंक देखिए।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
'मधुर ताल..'
- ... "जीवन की राह पर चलना होगा..
संकट आयें गहरे..
सधना होगा..
दुःख न करना..
ए-पथिक..
उजास ह्रदय में भरना होगा..
प्रियंकाभिलाषी..
- ... "जीवन की राह पर चलना होगा..
संकट आयें गहरे..
सधना होगा..
दुःख न करना..
ए-पथिक..
उजास ह्रदय में भरना होगा..
प्रियंकाभिलाषी..
--
टोपी के पैसे
तोताराम ने आते ही जुमला उछाला-
यार मास्टर, तुम्हारा यह केजरीवाल भी अजीब आदमी है ।
ज़रा-ज़रा सी बातों में भ्रष्टाचार ढूँढ़ता है...
झूठा सच - Jhootha Sach
तोताराम ने आते ही जुमला उछाला-
यार मास्टर, तुम्हारा यह केजरीवाल भी अजीब आदमी है ।
ज़रा-ज़रा सी बातों में भ्रष्टाचार ढूँढ़ता है...
झूठा सच - Jhootha Sach
--
पहली मरतबा खगोल विज्ञानी
एक सुपरनोवा के अंदर
उसके दिल के अंदर
क्या हलचल हो रही है
कैसे शोक वेव्ज़ उसके परखचे उड़ाती हैं
इसका ज़ायज़ा लेने में समर्थ हुए हैं।
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
एक सुपरनोवा के अंदर
उसके दिल के अंदर
क्या हलचल हो रही है
कैसे शोक वेव्ज़ उसके परखचे उड़ाती हैं
इसका ज़ायज़ा लेने में समर्थ हुए हैं।
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
--
" 14 वीं लोक सभा का विदाई समारोह ,
भावुक हुए नेता ,
लेकिन सच में
" विदा " कितने सांसद होंगे असल में "
- पीताम्बर दत्त शर्मा ( विश्लेषक )
5TH Pillar Corruption Killer
भावुक हुए नेता ,
लेकिन सच में
" विदा " कितने सांसद होंगे असल में "
- पीताम्बर दत्त शर्मा ( विश्लेषक )
5TH Pillar Corruption Killer
--
सर्वेक्षण: ११ प्रतिशत विंडोज़ एक्सपी उपयोगकर्ता
लिनक्स इस्तेमाल करने लगेंगे -
जैसे जैसे विंडोज़ एक्सपी का अंत समीप आ रहा है
वैसे वैसे विभिन्न संस्थानों नें
इस पर सर्वेक्षण आरंभ कर दिए हैं।
अंतर्जाल डॉट इन
लिनक्स इस्तेमाल करने लगेंगे -
जैसे जैसे विंडोज़ एक्सपी का अंत समीप आ रहा है
वैसे वैसे विभिन्न संस्थानों नें
इस पर सर्वेक्षण आरंभ कर दिए हैं।
अंतर्जाल डॉट इन
--
“शैल-सूत्र में प्रकाशित रचना”
मित्रों।
मेरी एक रचना
त्रयमासिक पत्रिका
“शैल-सूत्र”
के अंक अक्टूबर-दिसम्बर में
पृष्ठ-25 पर प्रकाशित हुई है।
--
हमारे शरीर,
सामाजिक विद्रोह
व कलात्मक अभिव्यक्ति -
सदियों से पैसे वाले व ताकतवर लोग
अपनी तस्वीरें अपनी तस्वीरें बनवाते आये हैं.
पिछली सदी में फोटोग्राफ़ी के विस्तार से
हर कोई अपनी तस्वीरें खिचवाने लगा...
जो न कह सके
सामाजिक विद्रोह
व कलात्मक अभिव्यक्ति -
सदियों से पैसे वाले व ताकतवर लोग
अपनी तस्वीरें अपनी तस्वीरें बनवाते आये हैं.
पिछली सदी में फोटोग्राफ़ी के विस्तार से
हर कोई अपनी तस्वीरें खिचवाने लगा...
जो न कह सके
--
क्या खबरिया चैनल्स के लिये
चुनौती है न्यू-मीडिया ?
(भाग-01) -
जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार .
क्रमश: जारी..
मिसफिट:सीधीबात
चुनौती है न्यू-मीडिया ?
(भाग-01) -
जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार .
क्रमश: जारी..
मिसफिट:सीधीबात
--
“बिन वेतन का चौकीदार”
घर भर को है इससे प्यार!
प्राची करती इसे दुलार!! बिन वेतन का चौकीदार! सच्चा है यह पहरेदार!! |
--
ग़ज़ल-
वस्ल की शाम-
वस्ल की शाम-
महकी-महकी सी है वादियों की सबा
शौक़ से आ के इसका मज़ा लीजिए..
कल तलक़ आरज़ूएँ तो ‘बदनाम’ थीं
वस्ल की शाम है दिल लुटा लीजिए
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
--
कफ, वात, पित्त
....अब मुझे समझ में आ रहा है कि देशी विधियों के प्रभाव के पीछे आयुर्वेद सम्मत वाग्भट्ट के सूत्रों का सशक्त वैज्ञानिक आधार है। हमारे पूर्वज जो नियम परम्परा से निभाते आ रहे हैं, उसके पीछे आयुर्वेद का व्यापक प्रसार है। कालान्तर में पराधीनता के पाशों में हमें नियम तो याद रहे पर उनका वैज्ञानिक आधार लुप्त हो गया। आवश्यकता है उसे पूर्णविश्वास से अपनाने की।
न दैन्यं न पलायनम्
....अब मुझे समझ में आ रहा है कि देशी विधियों के प्रभाव के पीछे आयुर्वेद सम्मत वाग्भट्ट के सूत्रों का सशक्त वैज्ञानिक आधार है। हमारे पूर्वज जो नियम परम्परा से निभाते आ रहे हैं, उसके पीछे आयुर्वेद का व्यापक प्रसार है। कालान्तर में पराधीनता के पाशों में हमें नियम तो याद रहे पर उनका वैज्ञानिक आधार लुप्त हो गया। आवश्यकता है उसे पूर्णविश्वास से अपनाने की।
न दैन्यं न पलायनम्
--
गाँव
एक गाँव है
जहाँ सभी की खाट खड़ी है
इक कुआँ है
जिसमें चउचक भांग पड़ी है
कोई बांट रहा है लड्डू
कोई खील-बतासे
और जगत पर डटे हुए हैं
जनम-जनम के प्यासे...
बेचैन आत्मा
एक गाँव है
जहाँ सभी की खाट खड़ी है
इक कुआँ है
जिसमें चउचक भांग पड़ी है
कोई बांट रहा है लड्डू
कोई खील-बतासे
और जगत पर डटे हुए हैं
जनम-जनम के प्यासे...
बेचैन आत्मा
--
आशा निराशा -
वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया...
Akanksha
वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया...
Akanksha
--
--
जनता की महालूट का तमाशा
अनवरत जारी है !
: अनुराग मोदी
हमारा विकास का मॉडल और हमारी राजनीति, सविंधान कि मूलभावना के ही विपरीत है. सविधान में जहाँ, समाजवादी गणराज्य की स्थापना, जिसमे हर नागरिक को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक बराबरी के अधिकार होंगे, की बात है. हमारी राजनीति, यह भूल गई विकास के वैकल्पिक मॉडल के बिना न तो समाजवाद आएगा, और न ही राजनैतिक और सामाजिक और आर्थिक बराबरी स्थापित होगी. बल्कि, हम पिछले ६६ सालों से विकास की मृग-मरीचिका के पीछे भागते रहे, और देश के संसाधन की महालूट का तमाशा अनवरत ज़ारी रहा; जिसके चलते 1% लोगों के हाथों में देश के संसाधन से उपजी कमाई जमा हो गई. और देश की आम-जनता, विकास और राजनीति के हाशिए पर तमाशबीन बनी खडी रही....
Kafila
अनवरत जारी है !
: अनुराग मोदी
हमारा विकास का मॉडल और हमारी राजनीति, सविंधान कि मूलभावना के ही विपरीत है. सविधान में जहाँ, समाजवादी गणराज्य की स्थापना, जिसमे हर नागरिक को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक बराबरी के अधिकार होंगे, की बात है. हमारी राजनीति, यह भूल गई विकास के वैकल्पिक मॉडल के बिना न तो समाजवाद आएगा, और न ही राजनैतिक और सामाजिक और आर्थिक बराबरी स्थापित होगी. बल्कि, हम पिछले ६६ सालों से विकास की मृग-मरीचिका के पीछे भागते रहे, और देश के संसाधन की महालूट का तमाशा अनवरत ज़ारी रहा; जिसके चलते 1% लोगों के हाथों में देश के संसाधन से उपजी कमाई जमा हो गई. और देश की आम-जनता, विकास और राजनीति के हाशिए पर तमाशबीन बनी खडी रही....
Kafila
--
चरावरी रविकर करे, हरदिन व्यर्थ प्रलाप
पाठक खातिर शाप, कीजिये खातिरदारी |
लेकिन कई कमाँय, मात्र है एक आसरा |
चरावरी रविकर करे, हरदिन व्यर्थ प्रलाप |
कवि खातिर वरदान ही, पाठक खातिर शाप |
पाठक खातिर शाप, कीजिये खातिरदारी |
कूड़ा-कचरा साफ़, नहीं फैले बीमारी |
लेकिन कई कमाँय, मात्र है एक आसरा |
पाएं नियमित आय, फेंकते हम जो कचरा।।
दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी
--
--
--
" किसी 'कबूतर' का फोन है ........"
आफिस में आये एक आगंतुक के मोबाइल की घंटी बजी तो सहसा मेज पर मेरे सामने ही रखे उनके मोबाइल के स्क्रीन पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा उस पर लिख कर आ रहा था ,'कबूतर कालिंग'...
"बस यूँ ही "
आफिस में आये एक आगंतुक के मोबाइल की घंटी बजी तो सहसा मेज पर मेरे सामने ही रखे उनके मोबाइल के स्क्रीन पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा उस पर लिख कर आ रहा था ,'कबूतर कालिंग'...
"बस यूँ ही "
--
--
रोज बिकती हैं औरतें और मासूम भी
भगवान ने इंसान को इंसान बनाते समय कोई भेदभाव नहीं बरता। लेकिन मनुष्य ने अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करते हुए आदमी-आदमी के बीच भेदभाव की तमाम दीवारें खड़ी कर दीं। किसी को जाति के आधार पर बांट दिया। किसी को काले-गोरे के भेद में रंग दिया। किसी को धन-दौलत के तराजू में तौल दिया। खुद इंसान ने इंसान को इंसान नहीं रहने दिया। अपनी दुष्ट बुद्धि के उपयोग से उसने इंसानों के साथ जानवरों-सा बर्ताव किया और कर रहा है। पैसे और रसूख के जोर पर कमजोर आदमी को अपना गुलाम बनाया। उसे अपनी जागीर समझा। उससे कोहलू तक चलवाया और दो वक्त का खाना तक नसीब नहीं होने दिया। इंसानों के द्वारा ही इंसानों की खरीद-फरोख्त का धंधा चलाया जा रहा है। यह देख मानवता के रचियता को भी रोना आता होगा।...
रोज बिकती हैं औरतें और मासूम भी
भगवान ने इंसान को इंसान बनाते समय कोई भेदभाव नहीं बरता। लेकिन मनुष्य ने अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करते हुए आदमी-आदमी के बीच भेदभाव की तमाम दीवारें खड़ी कर दीं। किसी को जाति के आधार पर बांट दिया। किसी को काले-गोरे के भेद में रंग दिया। किसी को धन-दौलत के तराजू में तौल दिया। खुद इंसान ने इंसान को इंसान नहीं रहने दिया। अपनी दुष्ट बुद्धि के उपयोग से उसने इंसानों के साथ जानवरों-सा बर्ताव किया और कर रहा है। पैसे और रसूख के जोर पर कमजोर आदमी को अपना गुलाम बनाया। उसे अपनी जागीर समझा। उससे कोहलू तक चलवाया और दो वक्त का खाना तक नसीब नहीं होने दिया। इंसानों के द्वारा ही इंसानों की खरीद-फरोख्त का धंधा चलाया जा रहा है। यह देख मानवता के रचियता को भी रोना आता होगा।...
--
--
यादें
यादें
यादें कब जीने देती हैं
यादें तो जीने के लिये होती हैं
कौन भूला है इन यादों को
कौन भुला पाया है इन यादों को
कौन बच पाया है इन यादों से...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंराजनीति की चूनर ओढी आज चर्चा मंच ने |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
ईश्वर से प्रार्थना है कि राहुल जी की मम्मीं जल्दी स्वस्थ हो जाएं |
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा :) बहुत सुंदर शीर्षक ।
जवाब देंहटाएंविदा कोई नहीं होना चाहता चाहे व्हील चेयर पर बैठ कर आया जाये । विश्वविध्यालय में शिक्षक 65 तक रहेगा । उसके बाद 70 की कोशिश करेगा । सब जहाँ हैं वहीं रहें । जब रुक्सत होवें तो वहीं से ऊपर को चल दें :) सँसदों ने क्या बिगाड़ा है । आँखिर कोई घर पर बैठ कर भी क्या करेगा ? बोर नहीं होगा क्या ?
रूपचन्द्र जी, सुन्दर चर्चा के लिए बधाई और मुझे उसमें जगह देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंराहुलजी की माताजी शीघ्र स्वस्थ होयें। ईश्वर से प्रार्थना है
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र पिरोयें हैं आपने .....
''अनीह ईषना'' को स्थान देने के लिए आभारी हूँ
धन्यवाद मयंक साब..!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार..!!
ईश्वर से प्रार्थना है ..... राहुलजी की माताजी शीघ्र स्वस्थ हो जायें .....
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक लिंक्स की उम्दा प्रस्तुति .....
इनके साथ मुझे भी स्थान देने के लिए आपकी आभारी हूँ .....बहुत बहुत धन्यवाद ......
...आदरणीय सादर ...
Abhar Shastri jee
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा मंच बेहतरीन ताज़ातरीन सेतु।
जवाब देंहटाएंवाग्भट्ट कृत अष्टांगहृदयं के प्रथम अध्याय में ही इन तीन तत्वों के गुण परिभाषित हैं। कौन सा या कौन से तत्व प्रभावी है, यह शरीर की बनावट, मानसिक स्थिति और बौद्धिकता से स्पष्ट हो जाता है। जहाँ वात के प्रभाव वाला मन से सतत चंचल होगा, वहीं कफ के प्रभाव वाला सौम्य और स्थिर होगा। इनके गुणों को समझ लेने से किस वस्तु, मौसम, क्रिया और भाव का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसके सैद्धान्तिक आधार स्पष्ट हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंअष्टांग हृदयम को मथ के आपने मख्खन परोस दिया है। विस्तृत पड़ताल करती श्रंखला आयुर्वेद के बुनियादी सिद्धांतों और आधार का। आभार आपकी निष्काम टिप्प्णियों का।
कफ, वात, पित्त
....अब मुझे समझ में आ रहा है कि देशी विधियों के प्रभाव के पीछे आयुर्वेद सम्मत वाग्भट्ट के सूत्रों का सशक्त वैज्ञानिक आधार है। हमारे पूर्वज जो नियम परम्परा से निभाते आ रहे हैं, उसके पीछे आयुर्वेद का व्यापक प्रसार है। कालान्तर में पराधीनता के पाशों में हमें नियम तो याद रहे पर उनका वैज्ञानिक आधार लुप्त हो गया। आवश्यकता है उसे पूर्णविश्वास से अपनाने की।
न दैन्यं न पलायनम्
सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंपुरे चर्चामंच परिवार का आभार... लिंक देने से व्यापाक पाठक वर्ग मिलता हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर, रोचक व पठनीय सूत्र। आभार।
जवाब देंहटाएं