मित्रों!
बुधवार के चर्चाकार आदरणीय रविकर जी।
बीमार हो गये थे।
वो आज ही चिकित्सालय से डिस्चार्ज होकर
घर लौटे हैं। क्यों न उन्हें कुछ दिन के लिए
आराम दे दिया जाये।
इसलिए आज मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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"प्रज्ञा जहाँ है प्रतिज्ञा वहाँ है"
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गाँडीव पड़ा लाचार
सुप्त जनो अब कूद पड़ो....
रण लड़ो मत मूक बनो....
टंकार लगाओ....
गर्जन सुनाओ....
जीत की हवस का अलाव जलाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....
कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....
और विजय सुनाओ....
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul
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पिता
पिता पिता जीवन है,संम्बल है,शक्ति है,
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला 'जी की यह रचना
बचपन में न जाने कितनी बार कितने अवसरों पर गुनगुनायी।
आज साझा करने की इच्छा हो रही है।
वर दे वीणावादिनी वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव, अमृत-मंत्र नवभारत में भर दे ।
काट अंध उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष- भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दें !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मंद्र रव
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे ।
kilkari पर Reena Pant
--बचपन में न जाने कितनी बार कितने अवसरों पर गुनगुनायी।
आज साझा करने की इच्छा हो रही है।
वर दे वीणावादिनी वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव, अमृत-मंत्र नवभारत में भर दे ।
काट अंध उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष- भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दें !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मंद्र रव
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे ।
kilkari पर Reena Pant
"प्रज्ञा जहाँ है प्रतिज्ञा वहाँ है"
दिखावा हटाओ, जियो ज़िन्दगी को,
दिलों से मिटाओ, मलिन-गन्दगी को,
अगर प्यार है तो, करो बन्दगी को,
प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?
प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।
उच्चारण--
गाँडीव पड़ा लाचार
सुप्त जनो अब कूद पड़ो....
रण लड़ो मत मूक बनो....
टंकार लगाओ....
गर्जन सुनाओ....
जीत की हवस का अलाव जलाओ....!!!
गाँडीव पड़ा लाचार....
कर रहा पुकार....
उठो....लड़ो....
और विजय सुनाओ....
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul
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पिता
पिता पिता जीवन है,संम्बल है,शक्ति है,
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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गहरा पीला प्यार
बसंत के आगमन के साथ तेरा आना ,
मेरे पुरे वजूद को बसन्ती कर गया...
Love पर Rewa tibrewal
बसंत के आगमन के साथ तेरा आना ,
मेरे पुरे वजूद को बसन्ती कर गया...
Love पर Rewa tibrewal
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वाग्भट्ट
जीवन जब रजत जयन्ती पर पहुँचता है, घरवालों को पुत्र पुत्रियों के विवाह की चिन्ता सताने लगती है। उन्हे भय रहता है कि कहीं ऐसा न हो कि वह अपना जीवन साथी स्वतः ही चुन लें। उनके चुनाव में घरवालों का नियन्त्रण रहे, न रहे। इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति के लिये जब युवावस्था अपनी रजत जयन्ती मनाने लगती है, उसे अपने स्वास्थ्य की चिन्ता सताने लगती है। लगता है कि कहीं इसके बाद स्वास्थ्य नियन्त्रण में रहे, न रहे। व्यक्ति खानपान को लेकर तनिक संयमित हो जाता है, लोगों की बतायी हुयी स्वास्थ्य संबंधी सलाहों पर अनायास ही ध्यान देने लगता है...
प्रवीण पाण्डेय
न दैन्यं न पलायनम्
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valentine special..........
एक वादा तुमसे कर लेते है
आज चलो हम भी कुछ वादे कर लेते है.....
एक वादा तुमसे ले लेते है
एक वादा तुमको दे देते है.....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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वाग्भट्ट
जीवन जब रजत जयन्ती पर पहुँचता है, घरवालों को पुत्र पुत्रियों के विवाह की चिन्ता सताने लगती है। उन्हे भय रहता है कि कहीं ऐसा न हो कि वह अपना जीवन साथी स्वतः ही चुन लें। उनके चुनाव में घरवालों का नियन्त्रण रहे, न रहे। इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति के लिये जब युवावस्था अपनी रजत जयन्ती मनाने लगती है, उसे अपने स्वास्थ्य की चिन्ता सताने लगती है। लगता है कि कहीं इसके बाद स्वास्थ्य नियन्त्रण में रहे, न रहे। व्यक्ति खानपान को लेकर तनिक संयमित हो जाता है, लोगों की बतायी हुयी स्वास्थ्य संबंधी सलाहों पर अनायास ही ध्यान देने लगता है...
प्रवीण पाण्डेय
न दैन्यं न पलायनम्
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valentine special..........
एक वादा तुमसे कर लेते है
आज चलो हम भी कुछ वादे कर लेते है.....
एक वादा तुमसे ले लेते है
एक वादा तुमको दे देते है.....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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बनो धरती का हमराज !
भानु के विरह में नभ ने सिसक कर रातभर रोया ,
आँसू गिरा फुल पत्ती पर रजनी का भी मन भर आया...
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर
कालीपद प्रसाद
भानु के विरह में नभ ने सिसक कर रातभर रोया ,
आँसू गिरा फुल पत्ती पर रजनी का भी मन भर आया...
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर
कालीपद प्रसाद
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खुशियों को साथ ले के आती हैं बेटियां
मात-पिता का गौरव बन चंदा सा चमके।
जिसके यश का सौरभ सारे जग में महके।।
घर की सुंदर अल्पना, देवों का वरदान।
बेटी तो है घर में खुशियों की पहचान।
घर-घर में दीप खुशी के जलाती हैं बेटियां।
धनवान हैं वे जिनके घर आती हैं बेटियां।।..
कविता मंच पर Rajesh Tripathi
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नारी के संघर्ष
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जय जय प्रीत दिवस (हास्य व्यंग्य )
AAPKE VICHAAR पर Rajesh Kumari
नारी पत्थर सी हुई ,दिन भर पत्थर तोड़।
उसके दम से घर चले ,पैसा- पैसा जोड़॥
राह तकें बालक कहीं ,भूखे पेट अधीर।
पूर्ण करेगी काम ये ,पीकर थोडा नीर॥...
जय जय प्रीत दिवस (हास्य व्यंग्य )
कुण्डलिया
चंदा बरसाता अगन ,सूरज देखो ओस
मूँछ एँठ जुगनू कहे ,चल मैं आया बॉस
चल मैं आया बॉस ,शमा को नाच नचाऊं
कर लूँ दो-दो हाथ ,शलभ को प्रीत सिखाऊं
मेरी देख उड़ान ,भाव भँवरे का मंदा
तितली करती डाह ,मिटे फूलों पर चंदा...
HINDI KAVITAYEN , AAPKE VICHAAR पर Rajesh Kumari
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खिले कमल है कीचड में ही -
हाथ से नाल जुडी है
आधी बांह का कुरता पहने ,उलटे हाथ घडी है ,
सिर पर पगड़ी पहन सुनहरी ,त्यौरी चढ़ी पड़ी है .
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अपने घर को छोड़ के भागे ,बाप का माल हड़पने ,
काम पड़े पर कहे तुनककर ,मेरी नहीं अड़ी है .
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
हाथ से नाल जुडी है
आधी बांह का कुरता पहने ,उलटे हाथ घडी है ,
सिर पर पगड़ी पहन सुनहरी ,त्यौरी चढ़ी पड़ी है .
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अपने घर को छोड़ के भागे ,बाप का माल हड़पने ,
काम पड़े पर कहे तुनककर ,मेरी नहीं अड़ी है .
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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राज बसंत (कुण्डलिया)
इन्द्रधनुष की ले छटा, आये राज बसंत ।
कामदेव के पुष्प सर, व्यापे सृष्टि अनंत...
आपका ब्लॉग पर रमेशकुमार सिंह चौहान
इन्द्रधनुष की ले छटा, आये राज बसंत ।
कामदेव के पुष्प सर, व्यापे सृष्टि अनंत...
आपका ब्लॉग पर रमेशकुमार सिंह चौहान
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बर्फ पिघलते कैसे
उन दरवाजो को तोड़ना संभव ना था
जो उदार और शालीन दिखने वाले लोगों के बीच खुलती थी
ऊंचाई,ताकत, दंभ और ना जाने कितनी बारीक तहें थी
जहां चिंट्टियां रौंद दी जाती थी ...
हमसफ़र शब्द पर संध्या आर्य
उन दरवाजो को तोड़ना संभव ना था
जो उदार और शालीन दिखने वाले लोगों के बीच खुलती थी
ऊंचाई,ताकत, दंभ और ना जाने कितनी बारीक तहें थी
जहां चिंट्टियां रौंद दी जाती थी ...
हमसफ़र शब्द पर संध्या आर्य
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बेपरवाह मौसम...
कुछ मौसम जाने कितने बेपरवाह हुआ करते हैं
बिना हाल पूछे चुपके से गुजर जाते हैं
भले ही मैं उसकी जरूरतमंद होऊँ
भले ही मैं आहत होऊँ,
कुछ मौसम शूल से चुभ जाते हैं
और मन की देहरी पर
साँकल-से लटक जाते हैं...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
कुछ मौसम जाने कितने बेपरवाह हुआ करते हैं
बिना हाल पूछे चुपके से गुजर जाते हैं
भले ही मैं उसकी जरूरतमंद होऊँ
भले ही मैं आहत होऊँ,
कुछ मौसम शूल से चुभ जाते हैं
और मन की देहरी पर
साँकल-से लटक जाते हैं...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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"परमात्मा के चरणो में पूर्ण समर्पण"
समर्पण के बिना स्वतंत्रता उपलब्ध नही हो सकती। जब तक परमात्मा के प्रति हम पूर्ण रूप से समर्पित नहीं होते, 'मैं' के अहंकार को नही छोड़ते तब तक हम चारो तरफ से बन्धनों में जकड़े रहेंगे। इस मैं का अहंकार छोड़ कर अपने आपको प्रभु-अपर्ण करके ही हम मुक्त हो सकते हैं...
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..... एक बूंद इश्क
होंठो की खामोशी ने
पलकों के भीतर
आँखों के कोर में
एक बूंद इश्क बना दिया .....
आँखों को ठंडक देते
उस एक बूंद इश्क ने
सब कुछ धुंधला सा कर दिया .....
-- रीना मौर्या-
होंठो की खामोशी ने
पलकों के भीतर
आँखों के कोर में
एक बूंद इश्क बना दिया .....
आँखों को ठंडक देते
उस एक बूंद इश्क ने
सब कुछ धुंधला सा कर दिया .....
-- रीना मौर्या-
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कविता : जंग लगे तालों की तरह
जंग लगे तालों की तरह भी होती हैं कुछ कविताएँ
खुल जाएं तो क्या नहीं दे सकतीं
न खुलें तो मारते रहिये हथौड़ी ...
अशोकनामा
जंग लगे तालों की तरह भी होती हैं कुछ कविताएँ
खुल जाएं तो क्या नहीं दे सकतीं
न खुलें तो मारते रहिये हथौड़ी ...
अशोकनामा
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भाग्य
होता है निर्भर अस्तित्व और उपलब्धि
हमारी तीव्र इच्छा पर,
जैसी होती है इच्छा तदनुसार होते प्रयास ...
आध्यात्मिक यात्रा
होता है निर्भर अस्तित्व और उपलब्धि
हमारी तीव्र इच्छा पर,
जैसी होती है इच्छा तदनुसार होते प्रयास ...
आध्यात्मिक यात्रा
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" एक थी माया "
मेरी नज़र से
विजय कुमार सपत्ति के कहानी संग्रह " एक थी माया " को उन्होंने सस्नेह मुझे भेजा तो ह्रदय गदगद हो गया। संग्रह में कुल दस कहानियाँ हैं जिसमे ज़िन्दगी के रंगों का समावेश किया गया है फिर चाहे वो प्रेम हो , शक हो , मौत हो , भय हो , व्यंग्य हो , देशभक्ति हो या अध्यात्म सबको समेटने का लेखक का प्रयास सराहनीय है...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र पर
vandana gupta
मेरी नज़र से
विजय कुमार सपत्ति के कहानी संग्रह " एक थी माया " को उन्होंने सस्नेह मुझे भेजा तो ह्रदय गदगद हो गया। संग्रह में कुल दस कहानियाँ हैं जिसमे ज़िन्दगी के रंगों का समावेश किया गया है फिर चाहे वो प्रेम हो , शक हो , मौत हो , भय हो , व्यंग्य हो , देशभक्ति हो या अध्यात्म सबको समेटने का लेखक का प्रयास सराहनीय है...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र पर
vandana gupta
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~**प्यार कब नहीं होता फ़ज़ा में ?**~
आसमाँ से बिखरता हल्दी-कुंकुम-महावर,
हवा के मेहँदी लगे पाँवों में उलझती …
सुनहरी पाजेब की रुनझुन,
आँचल में लहराते-सिमटते चाँद-सितारे,
सुर्ख़ डोरों से बोझिल …
क्षितिज पर झुकती बादलों की पलकें,
फूलों से टँकी रंग-बिरंगी चूनर की ओट में …
लजाते हुए धरा के सिन्दूरी गाल ....
~प्यार कब नहीं होता फ़ज़ा में ?
काश! हम इंसान बिना शर्तों के प्यार कर पाते...~
बूँद..बूँद...लम्हे.... पर
Anita Lalit (अनिता ललित )
आसमाँ से बिखरता हल्दी-कुंकुम-महावर,
हवा के मेहँदी लगे पाँवों में उलझती …
सुनहरी पाजेब की रुनझुन,
आँचल में लहराते-सिमटते चाँद-सितारे,
सुर्ख़ डोरों से बोझिल …
क्षितिज पर झुकती बादलों की पलकें,
फूलों से टँकी रंग-बिरंगी चूनर की ओट में …
लजाते हुए धरा के सिन्दूरी गाल ....
~प्यार कब नहीं होता फ़ज़ा में ?
काश! हम इंसान बिना शर्तों के प्यार कर पाते...~
बूँद..बूँद...लम्हे.... पर
Anita Lalit (अनिता ललित )
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अगीतायन साप्ताहिक समाचार पत्र के...
डा श्याम गुप्त विशेषांक.. का लोकार्पण...
अगीतायन साप्ताहिक समाचार पत्र के... डा श्याम गुप्त विशेषांक.. का लोकार्पण रविवार दिनांक ९-२-१४ को स्थानीय मैथमैटीकल स्टडी सिर्कल राजाजीपुरम के सभागार में सृजन सान्स्कृतिक संस्था के तत्वावधान में हुआ | अखिल भारतीय अगीत परिषद् के अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' संस्था सृजन के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त एवं कवयित्री श्रीमती विजय कुमारी मौर्या द्वारा अंक का विमोचन किया गया | तत्पश्चात काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया |
श्याम स्मृति..
The world of my thoughts...
डा श्याम गुप्त का चिट्ठा..
डा श्याम गुप्त विशेषांक.. का लोकार्पण...
अगीतायन साप्ताहिक समाचार पत्र के... डा श्याम गुप्त विशेषांक.. का लोकार्पण रविवार दिनांक ९-२-१४ को स्थानीय मैथमैटीकल स्टडी सिर्कल राजाजीपुरम के सभागार में सृजन सान्स्कृतिक संस्था के तत्वावधान में हुआ | अखिल भारतीय अगीत परिषद् के अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' संस्था सृजन के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त एवं कवयित्री श्रीमती विजय कुमारी मौर्या द्वारा अंक का विमोचन किया गया | तत्पश्चात काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया |
श्याम स्मृति..
The world of my thoughts...
डा श्याम गुप्त का चिट्ठा..
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व्यंग्य---चाय,शेर और अखबार की खबर
रात के ख़िलाफ़ पर Arvind Kumar
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कविता
बागों बहारों और खलिहानों मे
बांसो बीच झुरमुटों मे
मधुवन और आम्र कुंजों मे
चहचहाते फुदकते पंछी
गाते गीत प्रणय के ...
सृजन मंच ऑनलाइन पर
Annapurna Bajpai
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अनुज के जन्म दिवस पर
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul
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कैसे होता है भेंगेपन का इलाज़ कैसे होता है?
भेंगेपन में उपचार का लक्ष्य होता है :आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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व्यंग्य---चाय,शेर और अखबार की खबर
रात के ख़िलाफ़ पर Arvind Kumar
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कविता
बागों बहारों और खलिहानों मे
बांसो बीच झुरमुटों मे
मधुवन और आम्र कुंजों मे
चहचहाते फुदकते पंछी
गाते गीत प्रणय के ...
सृजन मंच ऑनलाइन पर
Annapurna Bajpai
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अनुज के जन्म दिवस पर
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul
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कैसे होता है भेंगेपन का इलाज़ कैसे होता है?
भेंगेपन में उपचार का लक्ष्य होता है :आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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कार्टून :-बनियान में छेद हो जाएं
तो इसे बदलने का समय समझो
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कार्टून :- टुंडों की तलवारबाज़ी से मुंडियां नहीं कटा करतीं ...
काजल कुमार के कार्टून
तो इसे बदलने का समय समझो
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कार्टून :- टुंडों की तलवारबाज़ी से मुंडियां नहीं कटा करतीं ...
काजल कुमार के कार्टून
अत्यन्त पठनीय व रोचक सूत्र, आभार..
जवाब देंहटाएं"खामोशियाँ...!!!" मे से चर्चा सूत्र के मोती उठाने के लिए हम आपके आभारी हैं....!!!
जवाब देंहटाएंरविकर जी के जल्दी से जल्दी स्वस्थ होने के लिये शुभकामनाऐं । सुंदर सूत्रों के साथ सजी आज की सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंस्वस्थ हूँ-
सादर
बहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन के साथ बढिया चर्चा ………आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय लिंक संयोजन के साथ बेहतरीन चर्चा, आभार.
जवाब देंहटाएंsundar links......inme mujhe bhi shamil kiya apne...abhar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स हमेशा ही बहुत सुन्दर होते हैं ... आज भी होंगे ! अभी पढ़ने जा रहे हैं.. :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना सहित..
मेरी रचना को स्थान देने का आभार !!!
~सादर
आभार आपका
हटाएंस्वस्थ हूँ-
सादर
हमेशा की तरह सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंएक सूचना...
आप के ब्लौग, नयी पुरानी रचनाओं का नयी पुरानी हलचल पर स्वागत है। सौमवारीय हलचल अप आप की पसंदिदा रचनाओं से सजेगी। ऐसी रचनाएं जो किसी कारणवश हलचल पर स्थान न पा सकी, आप महसूस करते हैं कि रचना हलचल पर शामिल होनी चाहिये, ऐसी रचनाएं आप मुझे रचना के लिंक के साथ kuldipsinghpinku@gmail.com पर अवश्य भेजें। हम प्रयास करेंगे कि आप की रचना भी हलचल का हिस्सा बन सके।
सुन्दर और विस्तृत लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा सूत्र...! मेरे पोस्ट को मंच में शामिल करने के लिए आभार ! शास्त्री जी ....
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
बढिया चर्चा ………
जवाब देंहटाएंutsaah wardhan ke liye shukriya !aabhaar !
जवाब देंहटाएंमाला में गुथे चर्चा सूत्र.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी संकलन-योजना प्रस्तुत की गई है ! बिलकुल सटीक !!
जवाब देंहटाएंऐसा लग रहा है मानो अरसे बाद अपनी रचना चर्चा मंच पर देखी ,धन्य है गूगल जिसने मेरा ब्लॉग बहाल करके मेरी ख़ुशी वापस की ,हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी मेरी रचना को शामिल किया ,सभी सूत्र पठनीय हैं बधाई आपको
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक लिख्स, मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएं