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Thursday, February 06, 2014

मनभावन बसंत का हुआ आगमन ( चर्चा - 1514 )

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
मनभावन बसंत आ चुका है , प्रक्रति खिल उठ है | दिल की सुनना यह भी मीठे गीत गुनगुनाता मिलेगा | वैसे प्यार के इस मौसम में दिल को संभालना भी जरूरी है | 
चलते हैं चर्चा की ओर
आपका ब्लॉग
"कुछ कहना है"

15 comments:

  1. सुन्दर लिंक्स l मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार l

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  2. बहुत सुन्दर और उपयोगी लिंक्स! मुझे स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!

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  3. बहुत सुंदर है आज दिल बाग की चर्चा !

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  4. बहुत सुन्दर पठनीय लिंक्स l मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ...! दिलबाग जी ....

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  5. रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार !

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  6. waah basant ka purn anand , dilbaag ji aapka tahe dil se abhaar hamen shamil karne hatu , sabhi charcha acchi lagi , hardik badhai aapko

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  7. बहुत सुन्दर और रोचक लिंक्स...आभार..

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  8. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार

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  9. बहुत सुन्दर लिंक्स...आभार..

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  10. श्रेष्ठ गुणवत्ता लिए हैं सेतु सुन्दर समन्वयन ,आभार "आरोग्य समाचार "खपाने का।

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  11. सुन्दर है कैफियत


    तुम जीना भूल जाओगे

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  12. बहुत सटीक बहुत सुन्दर प्रासंगिक चित्रण .

    भ्रष्टाचारी मर रहे, जियें झूठ के वीर |
    क़त्ल कलम करने लगी, जिला रही शमशीर |

    जिला रही शमशीर, चोर-कुल जिला-बदर हो |
    जो मारे सो मीर, शोर भी अब दमभर हो |

    हुआ अराजक राज, करे झूठा मक्कारी |
    झूठ-मूठ आह्लाद, मिटा हर भ्रष्टाचारी ||

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  13. क्या बात है मदन उत्सव का संग्रहणीय राग है यह बसंत गीत .शैली का माधुर्य अप्रतिम है .

    गाया बसंत

    आया बसंत, भाया बसंत
    मधुर राग , गाया बसंत-

    आँगन ने कहा आँचल ने कहा
    सजनी ने कहा साजन ने कहा-
    जड़ चेतन में राग मधुर सज
    प्रेम भरी मधु गागर ने कहा-

    किसलय कली महकाया बसंत -

    रस पोरी में मद गोरी में भरा
    नेह पतंग संग डोरी में भरा-
    रंग रूप निधि क्षितिजा संवरी
    तन पीत -प्रसून परिमल से भरा-

    अंग - प्रत्यंग समाया अनंग -

    अतिशय अभिनदन भ्रमरों का
    किस कली कुसुम की छाँव गहुँ
    मधुमास बसंती जग मद पसरा
    एक पादप की क्या बात कहूं -

    विस्मृत पल थे लाया बसंत-
    किसी देव लोक से आया बसंत -

    - उदय वीर सिंह

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