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Friday, February 21, 2014

जाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे { चर्चा - 1530 }

आज के इस चर्चा में मैं राजेंद्र कुमार आपका स्वागत हूँ।

जाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे ! 

सतीश सक्सेना जी 

भूखे , खाना ढूंढते , ये बेजुबां , मर जायेंगे ! 
वे पिलायें दूध,हम,प्लास्टिक उन्हें खिलवाएंगे !
हम जहाँ होंगे,वहाँ कुछ कूड़ा बिखरा जायेंगे !
वाक् करते समय ये , फुटपाथ घेरे जायेंगे !

मिनाक्षी मिश्रा जी 
बीज ... समाये हुए अपने अन्दर !!

एक हरी-भरी दुनिया,

किसी परिंदे का घर,
किसी फूल की खुशबू,



रविकर जी 
कौआ कोयल बाज में, होड़ मची है आज |
कोयल के अंडे पले, कआ लाय सुराज | 
कौआ लाय सुराज, सफल कोयल मन्सूबे |
हर सूबे में खेल, घोसला साला डूबे |

अनिता जी 
हमारे कर्म (मानसिक, वाचिक, कार्मिक) ही हमें बांधते हैं, यदि हम उन्हें किसी आशा पूर्ति के लिए करते हैं अथवा तो प्रतिक्रिया के रूप में करते हैं, अथवा इस कार्य से सुख कभी भविष्य में मिलेगा यह सोचकर करते हैं.

श्याम कोरी ' उदय ' जी 
सदनों में … आयेदिन 
हो रही, चल रही 
धक्का-मुक्की, झूमा-झटकी, फाड़ा-फाड़ी 
पटका-पटकी, मारा-मारी


सूक्त - 24

शकुन्तला शर्मा जी 
इन्द्र सोममिमं पिब मधुमन्तं चमू सुतम् ।
अस्मे रयिं नि धारय वि वो मदे सहस्त्रिणं पुरुवसो विवक्षसे॥1॥
हे पूजनीय प्रभु परमेश्वर तुम धरा - गगन की रक्षा करना ।
यश-वैभव हमको देना प्रभु जन-मन का ध्यान तुम्हीं रखना॥1॥

आराम बड़ी चीज है
राजीव कुमार झा जी 
किस किस को कोसिये किस –किस को रोईए
आराम बड़ी चीज है मुंह ढँक के सोइए

आज के सन्दर्भ में शायर की ये पंक्तियाँ बहुत मौजूं हैं.मनुष्य पंचतत्वों का पिंड मात्र नहीं है.उसकी पांच इन्द्रियां हैं,जिनसे उसे अनुभूति होती है,मस्तिष्क है,जिससे वह सोचता-विचारता है.

मुकेश कुमार सिन्हा जी 
था एकांत! मन में आया विचार
काश! मैं होता एक ऐसा चित्रकार
हाथ में होती तक़दीर की ब्रश
और सामने होती,
कैनवेस सी खुद की ज़िन्दगी
जी भर के भरता, वो सब रंग
जो होती चाहत, जो होते सपने

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 
सूरज चमका नील-गगन में।
फैला उजियारा आँगन में।।

काँधे पर हल धरे किसान।
करता खेतों को प्रस्थान।।

अपने एंड्राइड फोन पर डिलिट हुई कॉन्टेक्ट लिस्ट को पुन: प्राप्त करें
हितेश राठी जी
 यदि आपके पास स्मार्ट फोन या एंड्राइड फोन है और आपकी गलती या किसी ओर के द्वारा आपके फोन से फोनबुक या कांटेक्ट लिस्ट डिलीट कर दी गई है तो आप उसे पुनः प्राप्त...

विनीत वर्मा जी 
आपने नवरात्रि व गणेश चतुर्थी पर देखा होगा कि लोग देवी देवताओं की मूर्तियां बड़े ही आदर के साथ अपने घर लाते हैं और उसकी पूजा करते हैं बाद में किसी नदी या तालाब में ले जाकर विसर्जित कर देते हैं| क्या कभी आपने यह सोंचा है कि आखिर देवी देवताओं की प्रतिमा को लोग जल में ही क्यों विसर्जित करते हैं?

कविता वर्मा जी 
 प्रिय डायरी , कहना तो ये सब मैं 'उनसे 'चाहती थी लेकिन तुमसे कह रही हूँ। अच्छा तुम्हारे बहाने उनसे कहे देती हूँ। प्रिय , आजकल मेरे दिमाग में एक उथल पुथल सी...

अनपूर्णा वाजपेयी जी 
शिरोमणि कहलाने वाले !!
क्या पीड़ा हर लोगे तुम ...
क्या व्यथाओं को समझ सकोगे तुम ?

देवमणी पाण्डेय जी 
फागुन आया गाँव में, क्या-क्या हुए कमाल

आँखों से बातें हुईं , सुर्ख़ हुए हैं गाल

पुरवाई में प्रेम की , ऐसे निखरा रूप

मुखड़ा गोरी का लगे, ज्यों सर्दी की धूप



वीरेन्द्र  कुमार शर्मा जी 
राजनीति के लिए वोट नहीं है अब वोट के लिए राजनीति की जाती है। मुद्दा चाहे फिर कोई भी हो। राजनीति के धंधेबाज़ों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। नवीनतम मुद्दा माननीय उच्चतमन्यायालय द्वारा (राष्ट्रीय हादसा )पूर्वप्रधानमन्त्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी के बदले दी गई आजीवन कारावास भुगताने से जुड़ा है।

रोहिताश कुमार 
हमारे देश जैसा समाजिक तानाबाना किसी देश का नहीं है। हमारा समाज आधुनिकता के उस प्लेटफॉर्म पर खड़ा है, जिसकी नींव अनेक संस्कृतियों के मेल और विसंगतियों से ..

डा श्याम गुप्त जी 

अरुणा जी अध्ययन कक्ष में प्रवेश करते हुए कहने लगीं, आजकल न जाने क्यों चींटियाँ बहुत होगईं हैं| सारे घर में हर जगह झुण्ड में घूमती हुईं दिखाई देतीं हैं | पहले तो प्रायः मीठा फ़ैलने, छिटकने पर या मीठे के वर्तन, पैकेट, डब्बे आदि में ही दिखाई देतीं थीं परन्तु बड़े आश्चर्य की बात है कि अब तो नमकीन पर, आटे में, दाल-चावल, रोटियाँ, घी-तेल सभी में होने लगी हैं | कैसा कलियुग आगया है |


मतलबी लोग

प्रीति सुमन जी 
मतलबी लोगों ने बस मतलब निकाला और क्या ।
काम पड़े तो साथ थे फिर छोड़ डाला और क्या ।
दिल ही दिल में दोस्ती पर था हमें कितना गुमान ,
वक्त ने तो ये भरम भी तोड़ डाला और क्या ।


" अकेले आत्महत्या का निर्णय "

विजयलक्ष्मी जी 
मौत ही बुलानी थी गर सबको ही मार डालता

बोझ जिन्दगी का अपनी किसी और पर न डालता

डरपोक कायर ही रहा भूल गया था गर जूझना

सोचा नहीं कैसे यतीम जीवन पालेंगे अपना

आज की  चर्चा को यहीं पर विराम देते हुए विदा चाहूंगा, आगे जारी है  शास्त्री जी के चुने हुए कुछ अद्यतन लिंक्स … 
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

’’आप’’ की ’’राज्य सभा’’ 

Swatantra Vichar पर Rajeeva Khandelwal 

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श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद 
(१७वां अध्याय) 

Kashish - My Poetry पर Kailash Sharma

--
नहीं सोचना है सोच कर भी 
सोचा जाता है बंदर, 
जब उस्तरा उसके ही हाथ में देखा जाता है 

उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

--
नीलकण्ठ यहाँ कहाँ से? 
-यादवेन्द्र 

लिखो यहां वहां पर naveen kumar naithani 

--
नीम गुणों का खान  

कुसुम की यात्रा पर Kusum Thakur

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कार्टून :-  
कमर जो कमान सी हो तो फि‍र कहना ही क्या ...  

काजलकुमार के कार्टून
--
"परिश्रमी धुनता काया" 
सूरज चमका नीलगगन में, फिर भी अन्धकार छाया
धूल भरी है घर आँगन में, अन्धड़ है कैसा आया

वृक्ष स्वयं अपने फल खाते, सरिताएँ जल पीती हैं
भोली मीन फँसी कीचड़ में, मरती हैं ना जीती हैं
आपाधापी के युग में, जीवन का संकट गहराया...
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दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे- 
रविकर की कुण्डलियाँ
रविकर की कुण्डलियाँ 

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WhatsApp को 
1 लाख 18 हजार करोड़ में खरीदेगा फेसबुक...
KNOWLEDGE FACTORY पर 
Misra Raahul 

18 comments:

  1. सुंदर चर्चा..आभार !

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  2. सुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

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  3. सुंदर सूत्रों के साथ पेश की गई आज की चर्चा में उल्लूक का "नहीं सोचना है सोच कर भी सोचा जाता है बंदर, जब उस्तरा उसके ही हाथ में देखा जाता है" को शामिल करने के लिये आभार ।

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  4. बहुत सुन्दर चर्चा .. बहुत आभार..

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  5. सुन्दर चर्चा मंच-बढ़िया लिंको के साथ-
    आभार आपका-

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  6. बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , मंच व राजेंद्र सर को धन्यवाद
    information and solutions in Hindi

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  7. राजेंद्र कुमार जी मेरे पोस्ट प्रकाशित करने के लिए आपका बहुत आभार

    ReplyDelete
  8. राजेंद्र कुमार जी मेरे पोस्ट प्रकाशित करने के लिए आपका बहुत आभार

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  9. देवमणि पांडेय के दोहे
    (1)
    फागुन आया गाँव में, क्या-क्या हुए कमाल
    आँखों से बातें हुईं , सुर्ख़ हुए हैं गाल
    (3)
    पुरवाई में प्रेम की , ऐसे निखरा रूप
    मुखड़ा गोरी का लगे, ज्यों सर्दी की धूप
    (3)
    मौसम ने जादू किया, छलक उठे हैं रँग
    गुलमोहर-सा खिल गया, गोरी का हर अंग
    (4)
    साँसों में ख़ुशबू घुली, मादक हुई बयार
    नैनों में होने लगी, सपनों की बौछार
    (5)
    सपने कुछ ऐसे खिले, मन ढ़ूँढ़े मनमीत
    दहके फूल पलाश के, ग़ायब हुई है नींद
    (6)
    मोबाइल पर कर रही, गोरी पी से बात
    बिन मौसम होने लगी, आँखों से बरसात
    (7)
    दिल को भाया है सखी, साजन का यह खेल
    मुँह से कुछ कहते नहीं, करते हैं ई मेल
    (8)
    मुड़कर देखा है मुझे, हुई शर्म से लाल
    एक नज़र में हो गया, मैं तो मालामाल
    (9)
    रीत अनोखी प्यार की, और अनोखी राह
    दिल के हाथों हो गए , कितने लोग तबाह
    (10)
    दिल की दौलत को भला, कौन सका है तोल
    मोल यहाँ हर चीज़ का, चाहत है अनमोल

    देवमणि पाण्डेय
    ए-2, हैदराबाद एस्टेट, नेपियन सी रोड, मालाबार हिल, मुम्बई - 400 036
    M : 98210-82126 devmanipandey@gmail.com

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  10. बेहतरीन लिंक्स
    खुद को शामिल पा कर खुशी हुई

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  11. बहुत सुन्दर और विस्तृत लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार

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  12. बहुत सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार ...!

    RECENT POST - आँसुओं की कीमत.

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  13. अति सुन्दर चर्चा..

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  14. सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    भाई राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।

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  15. मेरा लेख "आप की राज्यसभा" को चर्चा मंच पर चर्चा हेतु स्थान देने के लिए धन्यवाद्

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  16. अच्छी चयनित विविधायें .....

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