सुबह की चाय की तरह
दिन की शुरुआत से ही होने लगती है तुम्हारी तलब स्वर का आरोह सात फेरों के मंत्र-सा उचरने लगता है तुम्हारा नाम ज़रूरी-ग़ैरज़रूरी बातों में शिक़वे-शिक़ायतों में ज़िन्दगी की छोटी-बड़ी कठिनाइयों में उसी शिद्दत से तलाशती हूँ तुम्हें तेज़ सिरदर्द में जिस तरह यक-ब-यक खोलने लगती हैं उंगलियाँ पर्स की पिछली जेब और टटोलने लगती हैं डिस्प्रिन की गोली ठीक उसी वक़्त बनफूल की हिदायती गंध के साथ जब थपकने लगती हैं तुम्हारी उंगलियाँ टनकते सिर पर तब अनहद नाद की तरह गूंजने लगती है ज़िन्दगी और उम्र के इस दौर में पहुँचकर समझने लगती हूँ मैं मधुमास का असली अर्थ (साभार : अलका सिन्हा) |
मैं, राजीव कुमार झा,
चर्चामंच : चर्चा अंक : 1510 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ, आप सबों का स्वागत करता हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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अक्सर जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे हम कहते हैं कि उसने देह त्याग दी. लेकिन यह सच नहीं है, देह का साथ आत्मा छोड़ देती है और शरीर निर्जीव हो जाता है, उसकी सारी इन्द्रियाँ काम करना बंद कर देती हैं और ऐसी स्थिति में हम उस शरीर को निर्जीव कह देते हैं, जो कि स्वाभाविक भी है. लेकिन किसी भी स्थिति में उसे देह त्याग नहीं कह सकते. गतांक से आगे .....!!!
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चमचमाती फ़्लैशलाईटें बना देती हैं चमकदार |
उड़ना नहीं सीखा था मैंने अपनी माँ की कोख में(अमृत रंजन)
डीपीएस पुणे में कक्षा छह में पढ़ने वाले अमृत रंजन ने हमें अपनी कवितायें भेजी तो मैं थोड़ा विस्मित हुआ। 11 साल का लड़का सुंदर भाषा में ऐसी कवितायें लिखता है जिसमें सुंदर की संभावना दिखाई देती है।
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सरिता भाटिया
पूस की वो रात
ठिठुरते हुए तारे
शांत माहौल
आँख मिचौली खेलता
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Eating high levels of flavonoids including anthocyanins and other compounds (found in berries ,tea ,and chocolate )could offer protection from type 2 diabetes . |
प्रीति टेलर
कुछ कहने की कोशिश का कोहरा ,
शब्द निशब्द ,ख़ामोशी का मोहरा ,
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उन्नीस सौ उन्नीस में अमेरिका के मेनहट्टन प्रान्त में मई दिवस के दो दिन बाद के दिन पेट सीगर का जन्म हुआ था और वे इस जनवरी महीने के आखिरी दिनों में इस दुनिया के विरोध प्रदर्शनों में गाये जाने के लिए एक बेहद खूबसूरत गीत छोड़ गए हैं. हम होंगे कामयाब एक दिन.
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मन की पीड़ा ,दिल का दर्द उमड़ आता है ,
बिना कहे ही ,कितना कुछ कह देते आंसू ये पानी की बूँद छलकती जब आँखों में , पलक द्वार को तोड़ ,यूं ही बह लेते आंसू |
सुमन
" I can't sleep mom I can't " एक सैड स्माईली के साथ अभी कुछ दिन पहले वॉट्सअप पर मेरे बेटे का यह मेसैज था मेरे लिए ! जिस बच्चे की नींद खो गयी हो उसकी माँ चैन से कैसे सो सकती है भला ??
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He walked down from
The mountain heights
And saw dark strife
Grappling with the world
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THE PEN ON PAPER..........
Aparna Bose
The pen on paper
echoing the unconscious
or the subconscious
etches all
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अजय कुमार झा
किसी के रूठने ,मनाने किसी के उतरने चढने का ये मौसम है ,
हमसे खुशबू आने लगी है कागज़ों की , पढने का ये मौसम है .... |
भारतीय सिनेमा के दामन में चाँद-सितारों के साथ कुछ दाग़ भी सामानांतर रूप से सदा रहे हैं.
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Hitesh Rathi
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डॉ. जेन्नी शबनम
'मैं तेज़ाब की
एक नदी हूँ
पल-पल में
सौ-सौ बार
खुद ही जली हूँ
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सुबह सुबह आज भी
सुनाई दिया जो रोज सुनाई देता था आप सोच रहे होंगे |
तुषार राज रस्तोगी
रात के आगोश में
छा रही मदहोशियाँ
धीमी सरसराहटें
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राकेश श्रीवास्तव
गुजरे हुए वक्त के साये से, डर लगता है,
तेरे बदले हुए तेवर से, डर लगता है,
तुम किसी और के हो जाओगे , ये मालुम नहीं!
मुझको अपने तकदीर से, डर लगता है।
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तुम नहीं होते तो ग़म भड़ जाता है,
ये मर्ज़ ऐसा है जो न नज़र आता है।
Tum nahin hote to gham bhad jata hai,
Yeh marz aisa hai jo na nazar aata hai.
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"आसमान में बादल छाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मौसम ने है बहुत रुलाया।
आसमान में बादल छाया।।
सूरज ने अवकाश लिया है,
सर्दी फिर से वापिस आयी।
पीछा नहीं छोड़ती अब भी,
कम्बल-लोई और रजायी।
ऊनी कपड़ें में भी अब तो,
काँप रही ठिठुरन से काया।
धन्यवाद !
आया वसंत पीले लाल रंगबिरंगे पुष्प सजे वृक्षों पर रंग वासंती छाया धरती की चूनर पर ... Akanksha पर Asha Saxena कहीं नहीं है आईना एक कविता भी है और इसे पढ़ने की सुविधा के लिहाज से अलग- अलग पाँच कवितायें भी कह सकते हैं।...
अकथ कथ : कुछ छवियाँ
कर्मनाशा पर siddheshwar singh ०१- बोलते हैं बतियाते हैं अव्यक्त को व्यक्त में छापते छिपाते। साथ - साथ चलते हैं राह नहीं किन्तु पाते।... मंदमति मैमना और मेधावती बकरी आज मैमना फिर गलती करके लौटा था। पहले तो इसने एक गढ़ा हुआ मुर्दा खोदा और फिर मुर्दे के हत्यारों के बारे में कहा -हो सकता है इस हत्याकांड में कुछ लम्बे "हाथ "वाले भी शामिल रहे हों। लेकिन बाकी तमाम हाथ दंगा रोकने में मशगूल थे। इसलिए मुर्दे के रिश्ते नातों से मेरे मुआफी मांगने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है... आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma - मौन का दर्पण निस्पंद जलनिधि , मौन पर्वत , नीरव पवन , विवर्ण गगन , क्लांत, शिथिल निस्तेज अस्ताचलगामी भुवन भास्कर सभी जैसे साँस रोके जोहते हैं राह उस एक पल की जिस पल में जड़ हो चुकी सृष्टि किसी जादू से सहसा ही प्राणवान हो जाये और अन्यमनस्क रत्नाकर के उमंगहीन ह्रदय में आल्हाद की उत्ताल तरंगें उठने लगें ... Sudhinama पर sadhana vaid क्षणिकाएँ --- उगते सूरज की किरणे क्षणिकाएँ १ प्रतिभा -- नहीं रोक सके, काले बादल उगते सूरज की किरणें। २ सपने -- तपते हुए रेगिस्तान की बालू में चमकता हुआ पानी का स्त्रोत, औ जीने की प्यास. ... सपन पर shashi purwar कार्टून :- 'आप' को तो OLX पे बेच के मानूंगा ... काजल कुमार के कार्टून |
वासंती रंग में रंगी चर्चा आज की |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
आशा
sabhi parijano aur mitro ko pranam , sabhi links bahut ache lage , hamen bhi shamil karne hetu tahe dil se abhaar
हटाएंपोस्ट को मान व स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और आभार राजीव भाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार राजीव जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स दिए है आभार आपका !
आदरणीय, ये मेरे लिए हर्ष की बात है कि मेरी लिखी हुई कविता आपके मंच पर साझा की गई। पर इस बात से बहुत आहत भी हूं कि मेरी कविता का टाइटल और उसके शब्दों में थोड़ा सा हेर-फेर कर 'सरिता भाटिया' ने अपने नाम से अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया। जिसे आपने अपने मंच पर जगह दी।
जवाब देंहटाएंhttp://theparulsworld.blogspot.in/2014/01/blog-post.html
सुंदर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत चर्चा ! उल्लूक के "आज के दिन अगर तू नहीं मारा जाता तो शहर का साईरन कैसे टेस्ट हो पाता" को स्थान दिया आभार !
जवाब देंहटाएंदेहांत का मतलब है देह का अंत। जीवांत कभी नहीं होता है। जीव (आत्मा )देह-अंतरण करता रहता है कर्मों के अनुसार। कृष्ण के चरणों में भक्ति और कृष्ण की जिस पर कृपा होती है वह वैकुण्ठ को जाता है कृष्ण के गोकुल में वास करता है देहांतरण से परे हो जाता है। बढ़िया विचार मंथन बढ़िया पोस्ट है।
जवाब देंहटाएंआत्महत्या पर आत्मचिन्तन...3
केवल राम
अक्सर जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे हम कहते हैं कि उसने देह त्याग दी. लेकिन यह सच नहीं है, देह का साथ आत्मा छोड़ देती है और शरीर निर्जीव हो जाता है, उसकी सारी इन्द्रियाँ काम करना बंद कर देती हैं और ऐसी स्थिति में हम उस शरीर को निर्जीव कह देते हैं, जो कि स्वाभाविक भी है. लेकिन किसी भी स्थिति में उसे देह त्याग नहीं कह सकते. गतांक से आगे .....!!!
बड़े जतन से सजाई है चर्चा मनोहारी अर्थपूर्ण सेतुओं के संग। आभार हमारे सेतु समायोजन के लिए।
जवाब देंहटाएंबिजली करती आँख-मिचौली,
जवाब देंहटाएंहीटर पड़े हुए हैं ठण्डे।
बाजारों से लकड़ी गायब,
नहीं सुलभ हैं उपले-कण्डे।
चमक-चमककर, कड़क-कड़ककर,
घनचपला ने बहुत डराया।
आसमान में बादल छाया।।
सुन्दर बिम्ब सांगीतिक स्वर हैं रचना के।
"आसमान में बादल छाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पानी मिला हुआ
जवाब देंहटाएंही तो होता है
पानी के नल में ही
क्यों नहीं दे
दिया जाता है
बाकी सब वही
होना था रोज रोज
का जैसा रोना था
सुन्दर परिकल्पना है बढ़िया रचना
बहुत सुंदर संकलन.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया links
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
जवाब देंहटाएंनये और पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंनेट की स्लो स्पीड मुश्किल से खोलती है ब्लॉग को। बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएं