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रविवार, फ़रवरी 16, 2014

वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525

नमस्कार
ये खेल आखिर किस लिए...???
मैं रोज़गार के सिलसिले में
कभी कभी उसके शहर जाता हूँ तो
गुज़रता हूँ उस गली से
वो नीम तरीक सी गली
और उसी ने नुक्कड़ पे ऊँघता सा वो पुराना खम्बा
उसी के नीचे तमाम शब इंतज़ार करके
मैं छोड़ आया था शहर उसका
बहुत ही खस्ता सी रौशनी की छड़ी को टेके
वो खम्बा अब भी वहीँ खड़ा है
साभार - गुलज़ार साहब 

मैं "ई॰ राहुल मिश्रा" रविवारीय चर्चामंच पर आप सभी का स्वागत करता हूँ ....
आइये कुछ चुनिन्दा लिंक्स देखते हैं...!!!
कभी समंदर किनारे 
गीले रेत पे 
उंगलिया फिराता 
सीपी से मोती 
चुराने को कभी
गहरे समंदर में 
डुबकी लगता 
भागे कभी नीली 
तितली के पीछे
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वही चौपाल-चौबारे,
वही गलियाँ, वही द्वारे,
मगर इन्सान बेदम हैं!
दिलों में उल्फतें कम हैं!!

वही गुलशन वही कलियाँ,
वही फूलों भरी डलियाँ,
घटी खुशियाँ, बढ़े ग़म हैं!
दिलों में उल्फतें कम हैं!!
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कितनी दुआएं मांगी थीं
साथ तेरा इक पाने को
तेरी जिद के आगे नहीं पता था
कभी खुदा भी बेबस होगा

खुश लम्हों में कब सोचा था
अब एसे दिन भी आएंगे
इन चमकीली आंखों का भी
भीगा भीगा मौसम होगा
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कल वेलेंटाइन डे था....यानी प्रेम दि‍वस..युवाओं के इजहार का दि‍न..प्‍यार का दि‍न....सड़क पर बहुत चहल-पहल थी...युवा जोड़े तो नजर नहीं आए क्‍योंकि शि‍वसेना..नारी सेना के खौफ ने उन्‍हें आज के दि‍न खुलकर मि‍लने नहीं दि‍या....
मगर हां..नए शादीशुदा जोड़े खूब उत्‍साह से भरे नजर आए....मॉल में...थि‍येटर में कल रि‍लीज फिल्‍म के गाने तूने मारी इंट्रीयां और दि‍ल में बजी घंटि‍यां.....टन...टन...टन...पर
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जठराग्नि अधिक जलाती है
मिर्चो की जलन तो कुछ भी नहीं
लाल मिर्च की जलन पता ही नहीं चलती
दिन ढले जब चूल्हे में आग जलती है
उसकी आंच में चमकते है नन्हे चेहरे
तवे की रोटी पर टकटकी लगाये ताकते हुए
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जरूरतों-और-मजबूरियों के, दाम नहीं होते 
बाजार तय करता है 'उदय', कीमतें उनकी ? 
सच ! 'आम आदमी' अभी मरा नहीं है 'उदय' 
फिर भी, विशेषज्ञ, पोस्ट मार्टम पे उतारू हैं ?
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घर बगल में जल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं ,
एक मुद्दा पल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं |
फिर गरीबों की गली में , रात भर रोया कोई ,
फिर शहर से एक भूखा , खुद-ब-खुद मिट जायेगा ,
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कल गहरी नींद में था सोया
तो मेरे ‘शहर’ ने मुझे जगाया 
कुनमुनाते हुए मैंने ज्यों ही 
अधमुँदी आंखो से देखा
मेरा शहर ज़ोर से चिल्लाया
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कभी गली के मोड़ से
घर के टैरेस को ताकते
कभी तुझ को खोजते
कभी खड़क से झांकते
आंख पढ़ते हम~तुम..
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सोचती ,महसूसती उसे,
हर वक़्त,हर जगह,
जो अपने होने का आभास दिलाता,
छू जाता,सिहरा जाता,
स्पर्श से वो अपनी मौजूदगी दर्ज कराता,
मुड़-मुड़ के देखती ,आँखे मलती,
चौंक कर सोचती ,ठिठकती,
जाने किन ख्यालों में खो जाती,
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हमारे ही भीतर इतनी सामर्थ्य भरी है कि सितारे 

यदि गर्दिश में भी हुए तो कुछ न बिगाड़ सकें. 
हम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को कम आंकते हैं 
अथवा तो व्यर्थ गंवाते हैं.
 मानव जीवन दुर्लभ है, 
हम संतों की वाणी में यह पढ़ते हैं.
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बजा नगाड़ा प्रेम का, बन्ना ब्याहन आया !!
सड़कों आया री, गोरी का बन्ना सड़कों आया।
घोड़े पे हो सवार, बरात बन्ना ले कर आया॥१॥
बजा नगाड़ा..........
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पलाश वन सा मन .....अनुपमा त्रिपाठी
याद आती है आज से कई साल पहले की वो दोपहर |मैं जबलपुर से सिहोरा जाती थी वहाँ के महाविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाने !!
शटल से सुबह सिहोरा जाना और दोपहर ढाई बजे की (मेल)ट्रेन से लौटना !
सिहोरा जा कर पढ़ाना बहुत आसान तो नहीं था ...!!
बहुत छोटा शहर सिहोरा ,जबलपुर से 40 किलोमीटर !शटल से जाते थे और मेल ट्रेन से लौटते !!
शोक से श्लोक बना ...संवेदना से साहित्य ...साहित्य में जब वेदना के वोट बैंक की तलाश हुयी तो साहित्य के तम्बू उग आये ...वामपंथी साहित्य के तम्बू में निंदा और नारे पाले-पोसे गए तो दक्षिणपंथी साहित्य स्तुति की प्रस्तुति में तल्लीन था ... जिसके पास जो नहीं होता है उसे वह पसन्द होता है ...जिसका अभाव होता है उसीका प्रभाव होता है ...
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....धन्यवाद.... 
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आरोग्य समाचार: 
"जै (Oats )सुपाच्य कार्बोहाइड्रेट्स 
और जल में घुलनशील 
खाद्य रेशों का एक बेहतरीन स्रोत है। 
पाचन रफ़्तार को कम करके यह खून में तैरती 
शक्कर को स्टेब्लाइज़ करती है। आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
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"मेरी साइकिल" 

हँसता गाता बचपन

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ग़ज़ल - शायद उसके जैसा इस... 

डॉ. हीरालाल प्रजापति

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इन्द्रधनुष 
देखो
अप्रतिम सौंदर्य के साथ
सम्पूर्ण क्षितिज पर
अपनी सतरंगी छटा बिखेरता...
Sudhinama पर sadhana vaid 
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इस देश में जो शरमाता है 
वही बेशरम कहलायेगा 

उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी 

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हँसी नागफनी 

हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal 

--
धूप खिली है - हाइगा में 

हिन्दी-हाइगा पर ऋता शेखर मधु

--
प्रिया का एहसास 

मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसाद 

23 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    बेहतरीन चर्चा |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    सभी पाठकों को
    सुप्रभात।
    सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाग्भवेत्।।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात राहुल जी !बहुत बढ़िया चर्चा लगाई है |सभी लिंक्स उम्दा |आभार हृदय से चर्चा मंच पर मेरी पोस्ट लेने हेतु |

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच पूरे दिन का कोटा है .. बहुत आभार आपका ..

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्पा मंच पर प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी ग़ज़ल '' शायद उसके जैसा इस... ''को शामिल करने का बहुत बहुत धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर रविवासरीय चर्चा । "इस देश में जो शरमाता है वही बेशरम कहलायेगा" को देख कर यहाँ उल्लूक भी शरमा रहा है। आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. हमेशा की तरह आकर्षक सूत्रों से सुसज्जित यह चर्चामंच भी ! अपने इन्द्रधनुष की मनोरम छटा यहाँ भी देख कर मन मुदित है ! आभार आपका शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर सूत्र...सुव्यवस्थित मंच...आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  10. वही पत्ते, वही डाली,
    वही भोजन, वही थाली,
    वही वो हैं वही हम हैं!
    दिलों में उल्फतें कम हैं!!

    सुन्दर !आशय और बदलाव का दर्द !लिए है रचना

    वही वो हैं वही हम हैं....(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    वही चौपाल-चौबारे,
    वही गलियाँ, वही द्वारे,
    मगर इन्सान बेदम हैं!
    दिलों में उल्फतें कम हैं!!

    वही गुलशन वही कलियाँ,
    वही फूलों भरी डलियाँ,
    घटी खुशियाँ, बढ़े ग़म हैं!
    दिलों में उल्फतें कम हैं!!

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर चर्चा मंच सजाया ,सादर हमको भी बिठलाया ,

    देखो घूरा भी इठलाया

    जवाब देंहटाएं
  12. एक से बढ़के एक हाइकु /हाइगा सुन्दर ,अतिसुन्दर सरस मनभावन ,लोकलुभावन

    धूप खिली है - हाइगा में

    हिन्दी-हाइगा पर ऋता शेखर मधु

    जवाब देंहटाएं

  13. खूबसूरत सार्थक हाइकु ,सांगीतिक माधुरी लिए

    तू प्यार का सागर है ....
    हँसी नागफनी

    हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal

    जवाब देंहटाएं

  14. खूबसूरत शब्द चित्र उकेरा है लीलापुरुष का ,त्रिभंगी का। …।

    हँसता गाता बचपन
    --
    ग़ज़ल - शायद उसके जैसा इस...

    डॉ. हीरालाल प्रजापति

    जवाब देंहटाएं
  15. achhi prastiti links ki...mujhe shamil karne ke liye shukriya...

    जवाब देंहटाएं
  16. सुन्दर लिंक्स से सजा गुलदस्ता :-) मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया :-) देसी से आने के लिए माफ़ी !!

    जवाब देंहटाएं

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