फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी , महाशिवरात्रि पर्व
उत्सव भारत देश का ,हम सब करते गर्व /
फाल्गुन में शिवरात का होता पर्व विशेष
रंगों भरी फुहार से मिटाओ गिले द्वेष /
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अनीता
हम क्या हैं, यह तक नहीं जानते, शरीर, मन, बुद्धि तो जड़ हैं, परमात्मा की अपरा प्रकृति के अंश हैं. आत्मा परा प्रकृति का अंश है, तो हम मध्य में कहाँ आये.
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प्रतिभा सक्सेना
दृश्य परिवर्तन नटी - महात्मा बुद्ध हमारे देश के बहुत बड़े लोकनायक रहे थे ? सूत्र - उन्होंने सारे संसार का कल्याण करने के लिये जन्म लिया था .पर कैसी विचित्र
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कुँवर कुसुमेश
जय हो भोले नाथ की,जय हो भोले नाथ।
अपने भक्तों पर रहे,सदा आपका हाथ। ।
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प्रमोद सिंह
कुत्ता एक लोकप्रिय जानवर है. जहां-जहां मनुष्य रूपी जानवर ने लोक में अपनी स्थापना के लिए प्रिय का वरण किया है, प्रोटेक्शन की मर्यादा का उल्लंघन करते हुए, कातर कामनाओं के भटकाव में बेलगाम शिुशुओं को जना है, वहां पीछे-पीछे बेसंभाल कुत्ते भी चले आये हैं, और स्वभावत: सभी प्रोटेक्शनों को धता बताते हुए उन्होंने अपनी प्रजाति को विशेष घना किया है.
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गिरिजेश राव
आज महाशिवरात्रि है – फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या तेरस। हर महीने यह तेरस शिवरात्रि कहलाता है किंतु कामऋतु वसंत में कामदहनी शिव के विवाह वाला तेरस महती अर्थ धारण कर लेता है। शिव का विवाह गृहस्थ जीवन की प्रतिष्ठा है।
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आशीष भाई
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दीप्ति शर्मा
इंद्रियों का फैलता जाल
भीतर तक चीरता
माँस के लटके चिथड़े
चोटिल हूँ बताता है
मटर की फली की भाँति
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अनामिका
ईश्वरीय प्रेम। …।
जग में है सब अपने
मुक्ताकाश , पंछी , सपने
सुगन्धित धरती ,निर्झर झरने
आह्लादित तन मन
प्रेमदान का स्वर्गीय आनंद।।
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सज्ज्न धर्मेन्द्र
घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा
तन मन पर पहने
पड़े रहेंगे बंद कहीं पर
शादी के गहने
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श्याम कोरी 'उदय'
गर, पांवों के नीचे कम्पन हुई है 'उदय'
तो कहीं-न-कहीं तो भूकंप आया होगा ?
…
कभी-कभी हम सुलझते-सुलझते भी उलझ जाते हैं
वहाँ गणित,…………… कुदरत का होता है 'उदय' ?
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लगभग 30 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था।
इसकी लोक-प्रियता का आभास
मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही
इसके समीपवर्ती क्षेत्र के अन्य विद्यालयों में भी
इसको विशेष अवसरों पर गाया जाने लगा।
आप भी देखे-
स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
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शक्तिहीन शव से शक्तिपुंज शिव का गुण अनन्त है, जिसे ना गिना जा सकता है ना नापा जा सकता है यह तो पुष्प की कुछ पंखुड़िया अर्पित करने का प्रयास …
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सुदर्शन रत्नाकर
वसंत आया
भँवरा मँडराया
मन को भाया।
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शिवम मिश्रा
आज २७ फरवरी है ... आज अमर शहीद पंडित चन्द्र शेखर आज़ाद जी की ८३ वीं पुण्यतिथि है ... आज ही के दिन सन १९३१ मे इलाहाबाद के आजाद पार्क ( अल्फ्रेड पार्क ) में हुई भयानक खूनी मुठभेड़ आजादी के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ बन गई ...युवाओं और देशभक्तों के महान प्रेरणा स्रोत ' आजाद ' का बलिदान दिवस २७ फरवरी ... एक महान क्रांतिकारी विरासत की जीती - जागती गाथा है ...
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गरिमा
शिव जी बहुत भोले है,
भोले भंडारी कहलाते है
उनकी महिमा है निराली
सबके दुःख हरते है
लोगो को सुख देकर
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो मेरे मन को भायेगा,
उस पर मैं कलम चलाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे को बढ़ता जाऊँगा।।
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देवेन्द्र पाण्डेय
द़फ्तर जाते हुए
रेल की पटरियों पर भागते
लोहे के शहर की खिड़की से
बाहर देखता हूँ
अरहर और सरसों के खेत
पीले-पीले फूल!
क्या यही बसंत है?
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मौलश्री कुलकर्णी
कभी सोचा है तुमने कोई रंग,
किस तरह इतना पक्का हो जाता है,
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किरण आर्या
आस की बाहं थामे एक भाव ..........
हम और तुम
एक नदी के
दो किनारे से
हाँ दूर सही
लेकिन बस
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गगन शर्मा
अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा माता पार्वती घूमते-घूमते इस जगह आ पहुंचे। उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी कि वे यहां ग्यारह हजार वर्ष तक निवास करते रहे।
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दिनेश प्रजापति "
मित्रों सबसे पहले तो सभी को महाशिवरात्री पर्व कि हार्दिक शुभकामनाएं। अब बढते है आज के लेख कि तरफ , क्या आप इंटरनेट पर कुछ भी सर्च करने के लिए सिर्फ गूगल …
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चिराग जला
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चिराग जला

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शरद कोकास का नया कविता संग्रह
शरद कोकास पर शरद कोकास
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....इन हिचकियों क *
*इकलौता कारण हो *
*तुम्हारी यादों में *
*सिर्फ और सिर्फ *
*मेरा ही बसेरा हो …
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उपन्यास कैसा बन पडा,
इस सब के बारे में राय तो आप लोग ही देंगे,
जिस का मैं बेसब्री से इन्तजार करूँगा...
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खाया फरेब-ए-हुस्न तो खाते चले गए
नाकामियों का जश्न मनाते चले गए...
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गोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है।
सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा,
सबको लगता प्यारा है...
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सुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा चयन सूत्रों का |
सामयिक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteआदरणीय राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।
बढ़िया लिंक्स।मुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, सुंदर चर्चा, बहुत बहुत आभार मुझे इसका हिस्सा बनाने के लिए..
ReplyDeleteशिवमहिमा से सज्जित सूत्रों का सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteशिव सबका कल्याण करें । शिवरात्रि पर एक विषेश चर्चा सुंदर सूत्रों के सँकलन के साथ ।
ReplyDeleteसुंदर चर्चा.
ReplyDeleteइस सुंदर चर्चा में हमें शामिल करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ............सुप्रभात शुभं
ReplyDeleteउम्दा चयन ....... आभार !
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा-
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स-
आभार आपका-
बढ़िया चर्चा
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स
आभार आपका मुझे शामिल करने के लिए
आदरणीय सर जी, सादर आभार और प्रणाम। बहुत बहुत आभार मुझे इसका हिस्सा बनाने के लिए.
ReplyDeleteबढ़िया सूत्र व हमेशा की तरह बेहतरीन पेशकश ,हमें स्थान देने हेतु आपको धन्यवाद ,आ० राजेंद्र सर व मंच को धन्यवाद
ReplyDelete॥ जय श्री हरि: ॥
हम क्या हैं, यह तक नहीं जानते, शरीर, मन, बुद्धि तो जड़ हैं, परमात्मा की अपरा प्रकृति के अंश हैं. आत्मा परा प्रकृति का अंश है, तो हम मध्य में कहाँ आये. जो ‘मैं’ का आभास होता है, वह अहंकार है, कर्म संस्कार, कामनाएं और कुछ संकल्प-विकल्प जुड़कर एक पहचान बनी है जो ‘मैं’ है, लेकिन साधक को तो इस मिथ्या अहंकार को त्यागना है, शुद्ध आत्मा के रूप में पहचान हो जाने पर तो ‘मैं’ बचता ही नहीं, केवल ‘है’ शेष रहता है. जैसे प्रकृति है, वैसे ही आत्मा है, इस तरह विचार करके हमें अहम् का त्याग करना है, मन खाली हो जाने पर ही भीतर आत्मा का राज्य होगा.
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक अनुकरणीय विचार सरणी।
"थाली के बैंगन"
ReplyDeleteगोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है।
सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा,
सबको लगता प्यारा है...
सुन्दर बालकविता लय ताल का पैटर्न लिए
सुन्दर है :
ReplyDeleteरात भर चिराग जला
एक पल भी न सोया
फिर भी तरसा
एक प्यार भरी निगाह को
जो सुकून दे जाती
उसकी खुशी में शामिल होती |
वह तो संतुष्टि पा जाता
किंचित स्नेह यदि पाता
दुगुने उत्साह से टिमटिमाता
उसी की याद में पूरी सहर
जाने कब कट जाती
कब सुबह होती जान न पाता |
पर ऐसा कब हुआ
मन चाहा कभी न मिला
सारी शब गुजरने लगी
शलभों के साथ में |
आशा
ReplyDelete"फरमाइश पर नहीं लिखूँगा"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो मेरे मन को भायेगा,
उस पर मैं कलम चलाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे को बढ़ता जाऊँगा।।
अप्रतिबद्ध /स्वतन्त्र लेखन के छंद बद्ध स्वर लय -ताल का पैटर्न लिए।
सुन्दर सटीक रहा नेटवर्कों का नेटवर्क बोले तो इंटरनेट
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इन्टरनेट क्या है?{What is Internet ?}
आशीष भाई
आज चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना लिंक चयन ...!
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
आभार चर्चा मंच का।
ReplyDeletemere link ko sthan dene ke liye bahut dhanywad
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