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सोमवार, फ़रवरी 17, 2014

"पथिक गलत न था " (चर्चा मंच 1526)

मित्रों।
सोमवार के लिए मेरी पसन्द के लिंक देखिए।
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"बेटी की पुकार" 
माता मुझको भी तो,
अपनी दुनिया में आने दो!
सीता-सावित्री बन करके,
जग में नाम कमाने दो!

अच्छी सी बेटी बनकर मैं,
अच्छे-अच्छे काम करूँगी,
अपने भारत का दुनिया में
सबसे ऊँचा नाम करूँगी,
माता मुझको भी तो अपना,
घर-संसार सजाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!

बेटे दारुण दुख देते हैं
फिर भी इतने प्यारे क्यों?
सुख देने वाली बेटी के
गर्दिश में हैं तारे क्यों?
माता मुझको भी तो अपना
सा अस्तित्व दिखाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!

बेटों की चाहत में मैया!
क्यों बेटी को मार रही हो?
नारी होकर भी हे मैया!
नारी को दुत्कार रही हो,
माता मुझको भी तो अपना
जन-जीवन पनपाने दो!
माता मुझको भी तो 
अपनी दुनिया में आने दो!
"धरा के रंग"
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मधुमास [कुण्डलिया] 
छाया है मधुमास में कुदरत में भी प्यार 
पुष्प खिले हर डाल हैं खुश है आज बयार 
खुश है आज बयार वाटिका खिलके महकी 
कोयल गाये गीत चाल भौंरे की बहकी... 
गुज़ारिश
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"बाबा नागार्जुन और डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक'..." 

 जब भी जहरीखाल का जिक्र चलता तो बाबा एक नाम बार-बार लेते थे। वो कहते थे-"शास्त्री जी! जहरी खाल में एक लड़का मुझसे मिलने अक्सर आता था। उसका नाम कुछ रमेश निशंक करके था वगैरा-वगैरा....। वो मुझे अपनी कविताएं सुनाने आया करता था।"...

यह और कोई नही था जनाब! यह तो डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक" थे।
शब्दों का दंगल
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रोशनी है कि धुआँ … 
तेजस्वी अब आगे बढ़ रही है …… तेजस्वी के जादुई पिटारे नुमा बैग से कई चीजें निकलती जा रही थी , साडी , कुरता- पायजामा , कड़े , पर्स , सैंडिल , पत्रिकाएं। साइड की पॉकेट से निकले प्लास्टिक के पाउच में मूंगफली के साथ नमक , मिर्च, अमचूर , काला नमक का मिला जुला चूर्ण , एक और थैली में कुछ पेड़े भी थे , दूध को अच्छी तरह औंटा कर बनाये , कुछ भूरे लाल से पेड़े भी....
ज्ञानवाणी पर वाणी गीत
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होली 
ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता, उड़ते सातों रंग
भर पिचकारी ऐसी मारी, अंगियां हो गयी तंग...

Patali पर Patali-The-Village
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मूक आवाज 

अपने इशारों से हवा में
कितने ही तस्वीर उकेरती ......
अपने हाथों से अदृश्य 


कल्पना को दृश्य देती .....
अपनी आँखों से ना जाने 
कितने ही भाव उकेरती ......
अ आ अं अः स्वर से
अपनी बातों को कहती .....
सिमित शब्दों में वो 
अपनी सारी बातें कह जाती .....
मेरा मन पंछी सा पर Reena Maurya
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राग रंग का रोला .... ! 

सपन सलोने,
नैनो में

जिया, भ्रमर सा डोला है
छटा गुलाबी, गालो को 
होले -हौले  सहलाये 
सुर्ख मेंहदी हाथो की 
प्रियतम की याद दिलाये....

सपने पर shashi purwar
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झरीं नीम की पत्तियाँ 
(दोहा-गीतों पर एक काव्य) 
(१) 
ईश्वर-वन्दना 
(च) 
मेरे कृपा-निधान ! 

तुम ‘अनाम’ हो किन्तु हैं, कोटि तुम्हारे ‘नाम’ |
‘रोम-रोम’ से है तुम्हें, मेरे ‘ईश’ प्रणाम ||
तुम उस की हर ‘दशा’ में, सुनते हो फ़रियाद |
‘निष्ठा-श्रद्धा-आस्था’, सेम जो करता ‘याद’ ||
‘राजा’ या ‘कंगाल’ सब, तुमको एक सामान |

तुम ‘प्रभु’, तुम ‘परमात्मा’, हो तुम्हीं ‘भगवान’....
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सच की खोज में और कितनी दूर …  

..तोहमते 
तंज 
सब बहाने निकले 
कोई अपना 
जब किसी अपने से 
अपने ही 
जनाज़े में मिला ...
कब तलक भटके 'तरुण' ? 
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"चलो होली खेलेंगे"
मेरी मजबूरी यह है कि शब्द जोड़ तो लेता हूँ 
मगर गाना नहीं जानता हूँ।
Bambuser पर आज पहली बार गाने का प्रयास किया है! 
आशा है कि आपको यह होली का गीत पसंद आयेगा।

--
पथिक गलत न था 

दीपक जला तिमिर छटा
हुआ पंथ रौशन
जिसे देख फूला न समाया
गर्व से सर उन्नत
एक ययावर जाते जाते
ठिठका देख उसका तेज
खुद को रोक न पाया...
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अवसादियों का तमाशाई दिन  
विकृतियों को प्यार कहते हो  
नंगे  को समझदार कहते हो - 
आत्म-विस्वास से बहुत दूर कम्पित 
अवसादी दिन को त्यौहार  कहते  हो-  
उन्नयन (UNNAYANA)
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माँ --- ईश्वर का आशीर्वाद 

.....कामता को आवाज लगायी- मै जा रही हूँ- रेनू की बस का टाइम हो रहा है, तुम काम बन्द करके इस बच्ची को देख लो। और तेज कदमों से बस स्टाप की और चल दी, उसी रफ्तार से जैसे एक माँ अपनी बच्ची को लेने जाती है,.....
"पलाश"
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जब मैं छोटा था ...

वक़्त की भागमभाग के साथ 
शायद ज़िंदगी बदल रही है
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी। 

मुझे याद है मेरे घर से
'स्कूल' तक का वो रास्ता, 
क्या क्या नहीं था वहाँ 
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब  वहाँ 'मोबाइल शॉप','वीडियो पार्लर' हैं,
फिर भी सब सूना है
शायद अब दुनिया सिमट रही है....
शब्द-सृजन की ओर...
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धूमकेतु-से चमके आचार्य नलिन. 

मैं जानता हूँ और मानता भी हूँ कि आचार्य नलिनविलोचन शर्मा-जैसे विराट व्यक्तित्व पर कुछ लिखने की योग्यता-पात्रता मुझमें नहीं है, फिर भी मेरी स्मृतियों में उभरता है उनका दैदीप्यमान चेहरा.… बार-बार ! बहुत थोड़ी-सी बातें हैं मेरे पास, जिन्हें लिखकर मैं स्मृति-तर्पण करना चाहता हूँ...
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सृजन की 

...मनुष्य ने आज तक जितना भी चिन्तन किया है और जहाँ भी किया है, जिस भी भाषा और जिस भी पद्धति के माध्यम से किया है उसके निष्कर्ष में उसने एक बात तो स्वीकार की है कि इस सृष्टि का सृजन कर्ता परमात्मा है, और इसे वह कई नामों से अभिहित करता है. इस निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद उसके जहाँ में यह प्रश्न पैदा होने शुरू हुए कि आखिर यह ब्रह्म क्या है और उसकी विभिन्न वसत्ताओं की क्या भूमिका है. श्वेताश्वतरोपनिषद् के प्रथम अध्याय में इस प्रश्न पर कुछ इस तरह से चिन्तन किया गया है...
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खिला खिला सा रूप
कहाँ छुप गए हो तुम अब तो आ भी जाइये 
वो खिला खिला सा अपना रूप दिखा जाइये 
महकने लगी मदमस्त हवाएँ बदलती रुत में 
पागल दिल देख रहा राह अब आ भी जाइये  
रेखा जोशी 
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आरोग्य समाचार /ख़बरें सेहत की भी /  
News for indians at high risk 
of small dense cholesterol
'Indians at high risk of small dense cholesterol'
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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----- ॥ दोहा-पद॥ ----- 
पूस रथ हेमन हिमबर, बिदा कियो हेमंत ॥ 
आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।।  


नौ पत फल नवल द्रुमदल भइ रितु अति रतिबंत ।  

आयो राज बसंत सखि, छायो राज बसंत ।। ..
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समस्या मानव के शाश्वत प्रश्न की
सुख और शांति ही तो
शाश्वत मांग रही है मानव की

इसी के लिए रचता रहा है प्रपंच
करता रहा है उपयोग-दुरुपयोग
अपनी तीक्ष्णबुद्धि और चेतना का,
मानव मन झूलता ही तो रहा है
सदा से, सत – असत के बीच,
और दोलित होता रहेगा वह
पता नहीं कब तक  ... 

pragyan-vigyan

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जब देखोगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे  

आज अनुलता राज नायर  के पिता को श्रद्धांजलि देते हुए 
न जाने क्यों , अपने पिता की याद आ गयी ! 
सो यह रचना पिता को समर्पित हैं , 
श्रद्धाश्रुओं के साथ !!

चले गए वे अपने घर से 
पर मन से वे दूर नहीं हैं 
चले गए वे इस जीवन से  
लेकिन लगते दूर नहीं हैं !
अब न सुनोगे  वे आवाजें, जब वे दफ्तर से आयेंगे  !
मगर याद करने पर उनको,कंधे  हाथ रखे पाएंगे ...
सतीश सक्सेना

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    यह वृक्ष सदा ही हराभरा रहता है |नित नई कोपलें (सूत्र) नजर आती हैं |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया चर्चा-
    स्वस्थ और सानंद हूँ-
    आप सभी का आभार-

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा सजाई है आदरणीय , सारे सुन्दर लिंक्स और बाबा नागार्जुन वाली तो क्या कहने ..

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  4. बढ़िया चर्चा ,मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. गुरु जी प्रणाम
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर व पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा आदरणीय.

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय डॉ. साहब आपके आशीर्वाद लिए पुन:श्च आभार एवं समस्त विद्वमंडली को सादर शुभ वंदे !

    आपकी आज्ञानुसार अन्य लिंक्स पर टिपण्णी करना प्रारम्भ किया है , कृपया आगे भी मार्गदर्शन देते रहे

    साधुमन 'चर्चा' राखिये , बिन 'चर्चा' सब सून
    चर्चा बिना न निखरे कला , नीति , कानून ॥

    शुभ दिवस , जय हिन्द !

    जवाब देंहटाएं
  8. महत्वपूर्ण लिंक , आभार आपका भाई जी !

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  9. Thanks for recognizing and giving a place at "Charcha Manch" to my post.

    जवाब देंहटाएं
  10. आज के इस चर्चा-मंच पर अति सम सामयिक, मधु-पराग से मीठे विषय चुने गए हैं ! साधुवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  11. अनु जी के पिता जी को श्रद्धाँजलि । सुंदर चर्चा सुंदर सूत्रों से आच्छादित । आदरणीय मयंक जी के मुखारविंद से उनकी कविता बहुत सुंदर ।

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  12. आदरणीय शाश्त्री जी बहुत सुन्दर लिंक्स सजोयें है आपने , मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार

    जवाब देंहटाएं

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