आज के इस चर्चा में मैं राजेंद्र कुमार आपका स्वागत हूँ। आज कि शुरुआत करते है 'बालस्वरूप राही" जी कि एक सुन्दर ग़जल से …
अक़्ल ये कहती है, सयानों से बनाए रखना
दिल ये कहता है, दीवानों से बनाए रखना
लोग टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर
जान-पहचान ढलानों से बनाए रखना
जाने किस मोड़ पे मिट जाएँ निशाँ मंज़िल के
राह के ठौर-ठिकानों से बनाए रखना
हादसे हौसले तोड़ेंगे सही है फिर भी
चंद जीने के बहानों से बनाए रखना
शायरी ख़्वाब दिखाएगी कई बार मगर
दोस्ती ग़म के फ़सानों से बनाए रखना
आशियाँ दिल में रहे आसमान आँखों में
यूँ भी मुमकिन है उड़ानों से बनाए रखना
दिन को दिन, रात को जो रात नहीं कहते हैं
फ़ासले उनके बयानों से बनाए रखना
एक बाज़ार है दुनिया जो अगर ‘राही जी’
तुम भी दो-चार दुकानों से बनाए रखना
प्रस्तुकर्ता: राजीव कुमार झा
भारत में बदलती ऋतुएं जीवन को नए स्पर्श दे जाती हैं.मार्च का पहला पखवारा बीतने पर वसंत ऋतु जब अपने पूर्ण यौवन की देहरी तक पहुँच जाती हैं तब सेमल के हजारों वृक्ष एक साथ खिल उठते हैं.उस समय इसकी टहनियों में पत्तियां नहीं होती,चारों ओर केवल कटोरी जैसे लाल और नारंगी फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
============================
उपासना जी
तुमने कहा कि तुम ने अब भी मेरे ख़त सम्भाले हैं छुपा कर रखे हैं उन को एक अलमारी में किसी अख़बार के नीचे छुपा कर दबे अरमानो की तरह
============================
प्रस्तुकर्ता: सरिता भाटिया
मिलना यारों को सदा गले लगाकर यार
जादू की जफ्फी मिले बढ़ता इससे प्यार /
बढ़ता इससे प्यार यार के दिल में बसते
दुख होते हैं दूर खोल के दिल जो हँसते
आया है मधुमास फूल के जैसे खिलना
मानें रूठे मीत प्यार से सबको मिलना //
============================
प्रस्तुतकर्ता: केवल राम
जहाँ हम अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करके प्रेम करने की कोशिश करते हैं वहां हम सामने वाले को तो धोखा दे सकते हैं,लेकिन प्रेम का जो वास्तविक आनंद है उसे प्राप्त नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में हमें अपने मन को एक बार नहीं हजार बार टटोलने की आवश्यकता होती है. लेकिन जो सच्चे अर्थों में प्रेम करते हैं वह विरले ही होते हैं
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
पगदण्डी है कहीं सरल तो कहीं विरल है,
लक्ष्य नही अब दूर, सामने ही मंजिल है,
जीवन के विज्ञानशास्त्र को पढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
============================
प्रस्तुकर्ता: अनुपमा त्रिपाठी
पतझड़ में आस सा
भरमाया हुआ
बसंत में पलाश सा
मदमाया हुआ
ग्रीष्म में प्यास सा
============================
प्रस्तुतकर्ता: रामजी तिवारी
मित्र अस्मुरारी नंदन मिश्र द्वारा उपलब्द्ध करायी गयी इन कविताओं को मैं उन्ही की टिप्पड़ी के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ |
============================
प्रस्तुतकर्ता: अनु सिंह चौधरी
जो आमतौर पर ज़्यादा ख़ुश या आशावादी होता है, उसके तेज़ी से मन की अंधेरी गुफ़ाओं में गिरने की आशंका भी ज़्यादा होती है। जिससे सबसे ज़्यादा उम्मीदें रखी जाएं, सबसे ज़्यादा निराशा भी तो वही करता है।
============================
रेडियो, आई रियली मिस यू.. ..आज विश्व रेडियो दिवस है....
प्रस्तुकर्ता: अरुण साथी
आज रेडियो को बहुत लोग मिस कर रहे होगें.....मैं भी कर रहा हूं....विविध भारती पे भूले बिसरे गीत...,पटना रेडियो का मुखिया जी का चौपाल....., साढ़े सात बजे प्रदेशिक समाचार सुनने के लिए गांव के दालान पर बुजुर्गो की बैठकी और फिर समाचारों पर बहस....मां का रेडियो पर लोकगीत कार्यक्रम में शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों से कजरी, चौता का सुनना....
============================
प्रस्तुतकर्ता: सुषमा आहुति
जब से तुम्हारा साथ मेरा हमसफ़र हुआ है
जब से तुम्हारी हर बात का मुझ पर
असर होने लगा है..
जब से मेरी नींदो का तुम्हारी आँखों में कंही
घर होने लगा है...
============================
प्रस्तुतकर्ता: डॉ आशुतोष शुक्ला
एक ही समय पर जिस तरह से कानून मंत्री कपिल सिब्बल के न्यायापालिका में भ्रष्टाचार पर बंद कमरे में होने वाली सुनवाई और नीतिगत मामलों में किसी न्यायाधीश द्वारा अपने विवेक के इस्तेमाल से दिए जाने वाले फैसलों और प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवन द्वारा उसका जवाब देने से एक बार फिर से यही लगता है कि नीतिगत मामलों और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर अभी भी न्यायपालिका और विधायिका में और अधिक सामंजस्य बनाये रखने की आवश्यकता
============================
प्रस्तुकर्ता: निहार रंजन
लाशें ये किसकी है, लाशों का पता, कौन कहे
खून बिखरा है, मगर किसकी ख़ता, कौन कहे
वो तो मकतूल की किस्मत थी, मौत आई थी
ऐसे में किस-किस दें, कातिल बता, कौन कहे
============================
प्रस्तुकर्ता: नितीश तिवारी
मर्ज़ी उसकी थी,इरादा मेरा था,
पर्दे उसके थे, दरवाज़ा मेरा था.
ख्वाब मेरे थे,सच उसके हुए,
अल्फ़ाज़ मेरे थे,ग़ज़ल उसके हुए.
============================
प्रस्तुकर्ता: शिवनाथ कुमार
नभ से एक किरण उतरी
धरती के हरित पटल पर
बीज बनी वह 'रश्मि'
बन पौध उगी वहीं पर
हो सच्चा प्यार
सत्य हो उजागर
समय थमे |
============================
प्रस्तुतकर्ता: अरुण शर्मा अनन्त
पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.
मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,
धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,
============================
प्रस्तुतकर्ता: वर्षा
खुशियां आती हैं
मेरे पास
तन्हाई के रैपर में
लिपटी हुई
प्रस्तुकर्ता: वीरेन्द्र कुमार शर्मा
जब भी कोई यथास्थिति को तोड़ने की कोशिश करता है राजनीति के मेंढक टर्राने लगते हैं। यहाँ यथास्थिति के पोषक हैं इसीलिए केज़रीवाल की जान को सौ जोखों। रामदेव को लोग सलवार पहनकर भागने के लिए मज़बूर कर देते हैं।
============================
प्रस्तुतकर्ता: साधना वैध
देखोअप्रतिम सौंदर्य के साथ
सम्पूर्ण क्षितिज पर
अपनी सतरंगी छटा बिखेरता
इन्द्रधनुष निकल आया है !
प्रस्तुतकर्ता: रचना त्रिपाठी
आजकल एक ऐसी बीमारी का प्रादुर्भाव हो गया है जो 13 साल के नवयुवक से लेकर 73 साल के बुजुर्गो में पायी जा रही है। इस बीमारी का प्रकोप फेसबुक के माध्यम से हुआ है जिसका हाल ही में नामकरण किया गया है ‘लाइकेरिया’। इसका संबंध बनस्पति विज्ञान से संबंधित किसी पेड़-पौधे से नहीं है। इसे अंग्रेजी के ‘लाइक’ शब्द से लिया गया है।
प्रस्तुतकर्ता: मोहन श्रीवास्तव
दिन,महिना,साल भूल के,
अब मंथ,ईयर व डे हैं कहाये जाते ।
साल के तीन सौ पैंसठ दिन में,
कुछ न कुछ डे तो मनाये जाते ॥
इन्हीं डे में वेलेन्टाइन डे,
जो प्रेमी जोडे़ हैं मनाया करते ।
इस दिन सब कुछ भुल-भाल के,
बस प्यार का पाठ पढ़ाया करते ॥
साल के तीन सौ पैंसठ दिन में,
कुछ न कुछ डे तो मनाये जाते ॥
इन्हीं डे में वेलेन्टाइन डे,
जो प्रेमी जोडे़ हैं मनाया करते ।
इस दिन सब कुछ भुल-भाल के,
बस प्यार का पाठ पढ़ाया करते ॥
===============
इसी के साथ आप सबको शुभ विदा मिलते हैं अगले शुक्रवार को कुछ नये लिंकों के साथ। आपका दिन मंगलमय हो।
"अद्यतन लिंक"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
अकेला ताऊ ही सारा पुण्य कमाए...
इसके लिये मेरी आत्मा गवाही नही देती.
पुराने कहानी किस्से गांव की चौपाल पर मनोरंजन का साधन हुआ करते थे. उन पर यदि गौर करें तो आज वाकई हालात वही हैं. हर राजनैतिक पार्टी का मूल मंत्र हो गया है "मीठा मीठा गप और कडवा कडवा थू.. थू.." जिस तरह से आजकल राजनैतिक पाटियों के तेवर दिखाई दे रहे हैं उनसे तो लगता यही है कि ये सारे तो सरपंच ताऊ के भी ताऊ हैं. लिजीये एक किस्सा शुद्ध देशी हरयाणवी भाषा में पढिये और खुद ही अंदाज लगा लीजिये कि हमारी सभी राजनैतिक पार्टियां आखिर चाहती क्या हैं?....
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
--
एहसासों की चिमनी
खामोशियाँ...!!! पर Misra Raahul
--
Valentine special..
दिन प्यार के चलने लगे है...!
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
--
"प्यार कर्म-प्यार धर्म
प्यार प्रभु नाम है."
" प्यार है पवित्र पुंज ,प्यार पुण्य धाम है.
पुण्य धाम जिसमे कि राधिका है श्याम है .
श्याम की मुरलिया की हर गूँज प्यार है.
प्यार कर्म प्यार धर्म प्यार प्रभु नाम है."
! कौशल !परShalini Kaushik --
कैसा, किसका प्रेम दिवस है?
Kashish - My Poetry पर
Kailash Sharma
--
प्रेमदिवस
हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal
--
जो होना होता है
वही हो रहा होता है
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
आपका नाम बता देता है कि
आप किसी से कितना प्यार करते हैं...
काव्य मंजूषापरस्वप्न मञ्जूषा
--
कविताएं.....
मन से प्रसवित होती है....
यशोदा मेरी धरोहर
--
"बाँटता ठण्डक सभी को चन्द्रमा सा रूप मेरा"
काग़ज़ की नाव (मेरे गीत)
--
दोहे
वैलेण्टाइन-डे
खिलता हुआ बसन्त
उच्चारण
शुभप्रभात
जवाब देंहटाएंसमा सतरंजी बांधा है उम्दा लिंक्स के साथ |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
भाई जी
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
सही चुनाव
आभार...
रोचक व पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंदेहात से मेरे पोस्ट 'फूलों के रंग से' को शामिल करने के लिए आभार.
इन्द्रधनुषी रंगों से सुसज्जित है आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा है ...!!हृदय से आभार मेरी रचना को यहाँ शामिल किया राजेंद्र जी ...!!
जवाब देंहटाएंकौन कहे.... को स्थान देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेम दिवस चर्चा । उल्लूक का जो होना होता है वही हो रहा होता है को शामिल करने पर आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रोचक पठनीय प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
बहुत ही सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत ख़ूबसूरत रोचक चर्चा...आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक्स ... विशेष कर नीलम पृष्टि की कविताओ ने झकझोर कर रख दिया अद्भुत शिल्प अद्भुत संवेदनशीलता इतनी छोटी सी बच्ची में ,.. नमन है लेखनी को ..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सादर नमन
शुक्रिया राजेंद्र भाई मेरी रचना को स्थान दिए ,उत्तम लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंभाई राजेन्द्र कुमार जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर-सुन्दर लिंक्स के साथ आपकी आज की प्रस्तुति बहुत ही सराहनीय व खुबसुरत है,,,इसके लिये मेरी आपको बहुत-बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं....और मेरी रचना ”वेलेन्टाइन डे की कहानी” को आपने ’चर्चा मंच के हृदय पटल पर स्थान देकर जो मुझे आपने प्यार दिया है,,इसके लिये मै आपका दिल से आभार प्रगट करता हूं.......
फूलों के रंग से
जवाब देंहटाएंप्रस्तुकर्ता: राजीव कुमार झा
भारत में बदलती ऋतुएं जीवन को नए स्पर्श दे जाती हैं.मार्च का पहला पखवारा बीतने पर वसंत ऋतु जब अपने पूर्ण यौवन की देहरी तक पहुँच जाती हैं तब सेमल के हजारों वृक्ष एक साथ खिल उठते हैं.उस समय इसकी टहनियों में पत्तियां नहीं होती,चारों ओर केवल कटोरी जैसे लाल और नारंगी फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
बहुत सुन्दर है आँगन में पसरी धूप ऐसे ही इच खिली रहे। शुक्रिया हमें चर्चा मंच में लाने का।
सुन्दर है चर्चा की साज सज्जा सेतु चयन और विविधता।
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंकों के साथ बहुत सुन्दर ढंग से की गयी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।
मित्रवर राजेंद्र जी बहुत ही सुन्दर लिंक्स पिरोये हैं आपने चर्चा में बेजोड़ प्रस्तुतिकरण के साथ मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार आपका.
जवाब देंहटाएं