मित्रों।
शनिवार के चर्चाकार आदरणीय राहुल मिश्रा जी
किसी अपरिहार्य कारण से
इस रविवार की चर्चा लगाने में असमर्थ है।
देखिए मेरी पसंद के कुछ अद्यतन लिंक।
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सरस्वती वंदना
भावना के प्रसूनों से ,गुंथी उज्जवल,श्वेत माला
अलंकारों से हुआ है रूप आभूषित निराला ...
*साहित्य प्रेमी संघ* पर Ghotoo
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तुमसे प्यार है...
अब उन्हें मुझसे डर नहीं लगता।
दोस्ती के शुरू-शुरू के दिनों में
मैं उन्हें हसरत से देखती थी
और वो मुझे कनखियों से।
मेरी गैरहाजिरी में वो मुक्त होकर
खेलती खिलखिलाती थीं,
लेकिन मेरे आते ही
वो अपने पंख समेट लेतीं।
कुछ तो उड़ भी जातीं।
अगर मैं अचानक पहुंच जाउं
तो सब की सब फुर्रर्रर्र....
प्रतिभा की दुनिया ... पर
Pratibha Katiyar
भावना के प्रसूनों से ,गुंथी उज्जवल,श्वेत माला
अलंकारों से हुआ है रूप आभूषित निराला ...
*साहित्य प्रेमी संघ* पर Ghotoo
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तुमसे प्यार है...
अब उन्हें मुझसे डर नहीं लगता।
दोस्ती के शुरू-शुरू के दिनों में
मैं उन्हें हसरत से देखती थी
और वो मुझे कनखियों से।
मेरी गैरहाजिरी में वो मुक्त होकर
खेलती खिलखिलाती थीं,
लेकिन मेरे आते ही
वो अपने पंख समेट लेतीं।
कुछ तो उड़ भी जातीं।
अगर मैं अचानक पहुंच जाउं
तो सब की सब फुर्रर्रर्र....
प्रतिभा की दुनिया ... पर
Pratibha Katiyar
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सच्चा धर्म
झूमना, नाचना, गाना, उन्मुक्त हो जाना
यही सच्चा धर्म है।
आज यह नजारा मेरे यहां तेउस गांव के
साई महोत्सव में देखने को मिला...
चौथाखंभा पर ARUN SATHI
झूमना, नाचना, गाना, उन्मुक्त हो जाना
यही सच्चा धर्म है।
आज यह नजारा मेरे यहां तेउस गांव के
साई महोत्सव में देखने को मिला...
चौथाखंभा पर ARUN SATHI
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"प्रणय सप्ताह के दोहे"
पश्चिम का प्रणय सप्ताह
ढोंग-दिखावा दिवस हैं, पश्चिम के सब वार।
रोज बदलते है जहाँ, सबके ही दिलदार।।
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सबसे अच्छा विश्व में, अपना भारत देश।
नैसर्गिक अनुभाव के, सजे यहाँ परिवेश।।...
उच्चारण
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खामोशियाँ
खामोशियों को आवाज़ दो
गूँजेगी वो दिल के हर ओर
टकरा के पूछेगी दिल से
गुमशुम खामोश क्यों हो तुम...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
खामोशियों को आवाज़ दो
गूँजेगी वो दिल के हर ओर
टकरा के पूछेगी दिल से
गुमशुम खामोश क्यों हो तुम...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
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अधिक से अधिक ब्लॉग पाठक आकर्षित करने का रहस्य
तकनीक दृष्टा ‹ ब्लॉग, सोशल मीडिया,
एसईओ और गैजेट पर Vinay Prajapati
तकनीक दृष्टा ‹ ब्लॉग, सोशल मीडिया,
एसईओ और गैजेट पर Vinay Prajapati
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"जरा सी बात"
ग़ज़लिका
जरा सी बात में ही,
युद्ध होते हैं बहुत भारी।
जरा सी बात में ही,
क्रुद्ध होते हैं धनुर्धारी।।
"धरा के रंग"
जरा सी बात में ही,
युद्ध होते हैं बहुत भारी।
जरा सी बात में ही,
क्रुद्ध होते हैं धनुर्धारी।।
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अब बूझने को बचा क्या ?
साँस पर गाँठ मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे डेरा उठाने का
वक्त आ गया ...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र पर
vandana gupta
अब बूझने को बचा क्या ?
साँस पर गाँठ मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे डेरा उठाने का
वक्त आ गया ...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र पर
vandana gupta
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बाज़ार का बीजगणित
वह पुराना तरीका है एक आदमी को मारने का अब एक समूह का शिकार करना है हत्यारे एकदम सामने नहीं आते। उनके पास हैं कई-कई चेहरे कितने ही अनुचर और बोलियाँ एक से एक आधुनिक सभ्य और निरापद तरीक़े। ज़्यादातर वे हथियार की जगह तुम्हें विचार से मारते हैं वे तुम्हारे भीतर एक दुभाषिया पैदा कर देते हैं" *-धूमिल* बीसवीं सदी के अंत का वह आखिरी हत्यारा विचार है...
शब्द सक्रिय हैं पर Sushil Kumar
वह पुराना तरीका है एक आदमी को मारने का अब एक समूह का शिकार करना है हत्यारे एकदम सामने नहीं आते। उनके पास हैं कई-कई चेहरे कितने ही अनुचर और बोलियाँ एक से एक आधुनिक सभ्य और निरापद तरीक़े। ज़्यादातर वे हथियार की जगह तुम्हें विचार से मारते हैं वे तुम्हारे भीतर एक दुभाषिया पैदा कर देते हैं" *-धूमिल* बीसवीं सदी के अंत का वह आखिरी हत्यारा विचार है...
शब्द सक्रिय हैं पर Sushil Kumar
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ठुकरा विजयश्री गले लगाते हैं—
*इश्क व नशा मानों सगी बहनें हो यह जब सिर चढती हैं*
*बुजुर्गों अपनों सपनों साथियों हाथियों की फिक्र नही होती*....
पथिकअनजाना आपका ब्लॉग
*इश्क व नशा मानों सगी बहनें हो यह जब सिर चढती हैं*
*बुजुर्गों अपनों सपनों साथियों हाथियों की फिक्र नही होती*....
पथिकअनजाना आपका ब्लॉग
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आरोग्य प्रहरी :)
हाड़तोड़ वर्क आउट /मेहनत के बाद
शरीर से पसीने के साथ सोडियम
और पोटेशियम खनिज भी निकल जाते हैं
इनकी भरपाई के लिए स्पोर्ट्स ड्रिंक्स लीजिये
या फिर केला खाइये
नमक निम्बू की शिकंजी पीजिये... कबीरा खडा़ बाज़ार में पर
Virendra Kumar Sharma
हाड़तोड़ वर्क आउट /मेहनत के बाद
शरीर से पसीने के साथ सोडियम
और पोटेशियम खनिज भी निकल जाते हैं
इनकी भरपाई के लिए स्पोर्ट्स ड्रिंक्स लीजिये
या फिर केला खाइये
नमक निम्बू की शिकंजी पीजिये... कबीरा खडा़ बाज़ार में पर
Virendra Kumar Sharma
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गीत
पीर प्रवाहित है रग -रग में ,
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है।
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब...
कविता मंच पर भावना तिवारी
पीर प्रवाहित है रग -रग में ,
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है।
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब...
कविता मंच पर भावना तिवारी
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वरदान
किसी मुसलमान की बगिया में एक सुन्दर फूल खिला, किसी सिख की गाड़ी में वह बाज़ार तक पहुंचा, किसी ईसाई ने उसे बेचा, किसी हिंदू ने ख़रीदा और मूर्ति पर चढ़ाया. अचानक चमत्कार हुआ, भगवान प्रकट हुए,बोले, "बहुत खुश हूँ मैं आज, आज मांग, जो चाहे मांग."....
कविताएँ पर Onkar
किसी मुसलमान की बगिया में एक सुन्दर फूल खिला, किसी सिख की गाड़ी में वह बाज़ार तक पहुंचा, किसी ईसाई ने उसे बेचा, किसी हिंदू ने ख़रीदा और मूर्ति पर चढ़ाया. अचानक चमत्कार हुआ, भगवान प्रकट हुए,बोले, "बहुत खुश हूँ मैं आज, आज मांग, जो चाहे मांग."....
कविताएँ पर Onkar
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आरोग्य प्रहरी : कभी कभार बेशक खाइये फास्ट फ़ूड
(केलोरी डेंस बासा भोजन )
लेकिन बढ़िया रहेगा साथ में
एक साइड सलाद भी मंगाएं।
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
(केलोरी डेंस बासा भोजन )
लेकिन बढ़िया रहेगा साथ में
एक साइड सलाद भी मंगाएं।
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
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शहर की शादियों में संवेदनहीनता
अभी तक हमें यही अहसास परेशान कर रहा था कि आजकल लोग शादी का कार्ड तो कुरियर से भेज देते हैं लेकिन स्वयं व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित नहीं करते। ऐसे में मेहमान के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है यह निर्णय लेने में कि जाया जाये या नहीं...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
अभी तक हमें यही अहसास परेशान कर रहा था कि आजकल लोग शादी का कार्ड तो कुरियर से भेज देते हैं लेकिन स्वयं व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित नहीं करते। ऐसे में मेहमान के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है यह निर्णय लेने में कि जाया जाये या नहीं...
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भारतीय स्वातंत्र्य -
भारत गणतंत्र हमारा,
ऐसा जनतंत्र हमारा
जनता पर तंत्र हमारा,
यह है स्वातंत्र्य हमारा. ...
Laxmirangam
भारत गणतंत्र हमारा,
ऐसा जनतंत्र हमारा
जनता पर तंत्र हमारा,
यह है स्वातंत्र्य हमारा. ...
Laxmirangam
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गुलपोश
गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है ...
तमाशा-ए-जिंदगी
गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है ...
तमाशा-ए-जिंदगी
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भारतीय प्रजातंत्र में नोटा की उपयोगिता
...अम्बेडकर जी ने कहा था कि हमें कम से कम दो शर्तें पूरी करनी चाहिए- एक तो स्थिर सरकार हो, दूसरी वह उत्तरदायी सरकार हो। भारतीय लोकतन्त्र की दो बड़ी समस्याएँ हैं- एक तो यह है कि जनप्रतिनिधि पर मतदाताओं के अंकुश का कोई प्रावधान नहीं है। हमारे लोकतंत्र की एक बड़ी विकृति यह है कि मताधिकार एक तरह की विवशता में बदल गया है। उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनने को मतदाता अभिशप्त होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 के भाग ‘क’ में नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। लेकिन निर्वाचन के समय मतदाता के पास जो मतपत्र होता है उसमें केवल मौजूदा उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनने का प्रावधान है, न चुनने का नहीं? अगर मतदाता उनमें से किसी को भी नहीं चुनना चाहता तो इसे जाहिर करने और इसे नापंसदगी के वोट के तौर पर गिने जाने का कोई प्रावधान नहीं है...
KAVITA RAWAT
...अम्बेडकर जी ने कहा था कि हमें कम से कम दो शर्तें पूरी करनी चाहिए- एक तो स्थिर सरकार हो, दूसरी वह उत्तरदायी सरकार हो। भारतीय लोकतन्त्र की दो बड़ी समस्याएँ हैं- एक तो यह है कि जनप्रतिनिधि पर मतदाताओं के अंकुश का कोई प्रावधान नहीं है। हमारे लोकतंत्र की एक बड़ी विकृति यह है कि मताधिकार एक तरह की विवशता में बदल गया है। उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनने को मतदाता अभिशप्त होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 के भाग ‘क’ में नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। लेकिन निर्वाचन के समय मतदाता के पास जो मतपत्र होता है उसमें केवल मौजूदा उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनने का प्रावधान है, न चुनने का नहीं? अगर मतदाता उनमें से किसी को भी नहीं चुनना चाहता तो इसे जाहिर करने और इसे नापंसदगी के वोट के तौर पर गिने जाने का कोई प्रावधान नहीं है...
KAVITA RAWAT
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सब और हम
सब और हम
धूल उड़ रही,
हम पकड़े निर्मलतम झण्डा।
ऊष्मा बढ़ती,
किये रहे मन विधिवत ठंडा।
गहरी चालें,
सज्जन मन का ठूँठा डंडा...
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मृगमरीचिका में खोया है वसन्त
वसन्त ऋतु आयी ।
वसन्तपञ्चमी का उत्सव भी धूमधाम से सम्पन्न हुआ ।
पीले वस्त्रों ने पीले पुष्पों की रिक्तता के अनुभव को
कुछ कम करने का प्रयास किया ....
अभिव्यक्ति
वसन्त ऋतु आयी ।
वसन्तपञ्चमी का उत्सव भी धूमधाम से सम्पन्न हुआ ।
पीले वस्त्रों ने पीले पुष्पों की रिक्तता के अनुभव को
कुछ कम करने का प्रयास किया ....
अभिव्यक्ति
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कप्तान बड़ा या कोतवाल
पुलिस के प्रभारी निरीक्षक अपने उच्च अधिकारीयों के दिशा निर्देशों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं . गलत तथ्यों का सहारा लेकर अधिकारीयों को गुमराह कर रहे हैं . जिसका ज्वलंत उदाहरण प्रभारी निरीक्षक थाना बदोसराय द्वारा की जा रही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करने का मामला है ....
लो क सं घ र्ष !
पुलिस के प्रभारी निरीक्षक अपने उच्च अधिकारीयों के दिशा निर्देशों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं . गलत तथ्यों का सहारा लेकर अधिकारीयों को गुमराह कर रहे हैं . जिसका ज्वलंत उदाहरण प्रभारी निरीक्षक थाना बदोसराय द्वारा की जा रही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करने का मामला है ....
लो क सं घ र्ष !
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सागर-संगम - 5
लोकमन -
कभी विराम नहीं ले पाती
बहती जीवन धारा ,
द्वापर युग के भँवर-जाल में,
नर फँस गया बिचारा...
सागर-संगम - 5
लोकमन -
कभी विराम नहीं ले पाती
बहती जीवन धारा ,
द्वापर युग के भँवर-जाल में,
नर फँस गया बिचारा...
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झरीं नीम की पत्तियाँ
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(१)
ईश्वर-वन्दना
(क)
काल-विष
आज कल ना जाने क्यों सब कुछ खास लगता है ....!
चीजे तो वही है मैं भी वही हूँ
पर इन सबका एक नया अहसास लगता है....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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मौत [कुण्डलिया]
झरीं नीम की पत्तियाँ
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(१)
ईश्वर-वन्दना
(क)
काल-विष
हे परमात्मा !, हुआ बहुत विकराल |
‘कालकूट विष’ उगलता, यह ‘कलियुग का काल’ ||
’कलह-द्वन्द’ विप्लव बने,’विनाश’ से संयुक्त ||
अच्छे लोगों में घटा, ‘भीतर का विश्वास’ |
यह ‘समाज का महानद’, हुआ घृणा-भय युक्त |
डरे और सहमे सभी, खो कर हर ‘उल्लास’ ||
देख ‘मकर’ को ज्यों डरें, ‘सारस’ और ‘मराल’ |
‘कालकूट विष’ उगलता, यह ‘कलियुग का काल...
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चीजे तो वही है मैं भी वही हूँ
पर इन सबका एक नया अहसास लगता है....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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मौत [कुण्डलिया]
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
डरना कैसा मौत से, यह तो सच्ची यार
धोखा देती जिन्दगी , मौत निभाए प्यार ...
डरना कैसा मौत से, यह तो सच्ची यार
धोखा देती जिन्दगी , मौत निभाए प्यार ...
सुंदर सूत्रों के साथ सजी धजी आज की सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंवसंत-काल की सभी मित्रों को कोटि कोटि मीठी मीठी वधाइयां !
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा-मंच सटीक ,सामयिक एवं रोचक शीर्षकों से सम्पन्न है !
बेहतरीन लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ ..एक बार यहाँ भी आयें और अवलोकन करें, धन्यवाद।
सुन्दर सार्थक प्रासंगिक सत्य रूपायित करते दोहे।
जवाब देंहटाएं"प्रणय सप्ताह के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पश्चिम का प्रणय सप्ताह
ढोंग-दिखावा दिवस हैं, पश्चिम के सब वार।
रोज बदलते है जहाँ, सबके ही दिलदार।।
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सबसे अच्छा विश्व में, अपना भारत देश।
नैसर्गिक अनुभाव के, सजे यहाँ परिवेश।।
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कामुकता-अश्लीलता, बढ़ती जग में आज।
इसके ही कारण हुआ, दूषित देश समाज।।
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एक दिवस की प्रतिज्ञा, एक दिवस का प्यार।
एक दिवस का चूमना, पश्चिम के किरदार।।
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प्रतिदिन करते क्यों नहीं, प्रेम-प्रीत-व्यवहार।
एक दिवस के लिए क्यों, चुम्बन का व्यापार।।
रोज-डे (गुलाबदिवस)
प्रथम दिवस है रोज-डे, बाँट रहा मुस्कान।
पी लेता है दर्द को, कभी न होता म्लान।।
प्रपोज-डे (प्रस्तावदिवस)
दूजा दिन प्रस्ताव का, होता प्यारे मित्र।
पश्चिमवालों की प्रथा, होती बहुत विचित्र।।
चॉकलेट-डे
मीठी सी सौगात दे, बढ़ो प्रणय की राह।
चॉकलेट देकर करो, मधुर मिलन की चाह।।
टैडी-डे
चौथा दिन टैडी-दिवस, खेलो मन के खेल।
साथी से कर लीजिए, अपने मन का मेल।।
प्रॉमिज-डे (प्रस्तावदिवस)
प्रण करने के वास्ते, पंचम दिन का योग।
सदा प्रतिज्ञा में बँधो, होगा नहीं वियोग।।
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प्रतिज्ञा के दिवस पर, मत देना सन्ताप।
चमक-दमक की भीड़ में, बिछड़ न जाना आप।।
--
बेमन से देना नहीं, वचन किसी को मित्र।
जिसमें तुम रँग भर सको, वही बनाना चित्र।।
हग-डे (आलिंगनदिवस)
आलिंगन के दिवस में, करना मत उत्पात।
कामुकता को देखकर, बिगड़ जायेगी बात।।
किस-डे (चुम्बनदिवस)
चुम्बन का दिन आ गया, कर लो सच्चा प्यार।
बिना दाम के जो मिले, चुम्बन वो उपहार।।
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जीवन के संग्राम को, समझ न लेना खेल।
जीवनसाथी से सदा, रखना हरदम मेल।।
वैलेण्टाइन-डे (प्रेमदिवस)
प्रेम दिवस पर लीजिए, व्रत जीवन में धार।
पल-पल-हर पल कीजिए, सच्चा-सच्चा प्यार।।
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एक दिवस के वास्ते, उमड़ा भीषण प्यार।
प्रणय दिवस के बाद में, बढ़ जाता तक़रार।।
--
पूरे जीवन प्यार का, उतरे नहीं खुमार।
जीवनसाथी से सदा, करना ऐसा प्यार।।
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सोच-समझकर थामना, अनजाने का हाथ।
जीवनसाथी से बँधा, जीवनभर का साथ।।
ज़रा नज़रों से कहदो जी निशाना चूक न जाए -
जवाब देंहटाएंताक के मारा है शाश्त्रीजी ने इंस्टेंट प्रेमियों पर निशाना यार कॉफी के या फिर टॉफी के रैपर और प्रेम मिलन में कुछ तो फर्क हो ये क्या बात स्वीट डिश खाई रैपर फैंक दिया।
वाह! अच्छे लिंक्स, बढ़िया चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत लिनक्स दिए है आपने....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर सूत्र, आभार..
जवाब देंहटाएंशायद बहार आ जाए
जवाब देंहटाएंग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुन्दर है जानदार है वजनी है शैर।
जवाब देंहटाएंशायद बहार आ जाए
ग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुन्दर है जानदार है वजनी है कुंडलियां
जवाब देंहटाएंमौत [कुण्डलिया]
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
डरना कैसा मौत से, यह तो सच्ची यार
धोखा देती जिन्दगी , मौत निभाए प्यार ...
गीत
जवाब देंहटाएंपीर प्रवाहित है रग -रग में ,
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है।
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब...
कविता मंच पर भावना तिवारी
सुन्दर भाव विरेचक गीत
इस भीड़ भाड़ में कौन है अपना कौन पराया
जवाब देंहटाएंकिसने निमंत्रण स्वीकारा, कौन नहीं आया !
दूल्हा कैसा दिखता है, दुल्हन की कैसी सूरत है
यह न कोई देखता है , न देखने की ज़रुरत है !
आजकल मेहमानों को दूल्हा दुल्हन से प्यारा होता है खाना
और मेज़बानों को सम्बन्धियों से ज्यादा प्यारा नाच गाना !
इसी अफ़साने की शिकार प्रेम संबंधीं की ख्वाहिश हो गई है ,
और शादियां आजकल काले धन की बेख़ौफ़ नुमाइश हो गई हैं !
शादी में जाना है तो टुन्न होते रहिये अपने रिस्क पे जाइये ड्रिंक्स रखिये साथ में फिर सब कुछ खूबसूरत लगेगा "बरात डांस "भी।
शहर की शादियों में संवेदनहीनता
अभी तक हमें यही अहसास परेशान कर रहा था कि आजकल लोग शादी का कार्ड तो कुरियर से भेज देते हैं लेकिन स्वयं व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित नहीं करते। ऐसे में मेहमान के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है यह निर्णय लेने में कि जाया जाये या नहीं...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंकल व्यस्त हो गयी थी देख नहीं पायी ..