मित्रों।
शनिवार के चर्चाकार आदरणीय राजीव कुमार झा का नेट आज चल नहीं रहा है।
इसलिए मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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रोज डे पे बीबी को गुलाब जो दिया..
मुफ्त का ही आफत मोल ले लिया।।
बोली इतने सालो तक तो दिया नहीं, वह हड़क गई।
लाल गुलाब को देख सांढ़िन की तरह भड़क गई।।...
साथी
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रोज डे पे बीबी को गुलाब जो दिया..
मुफ्त का ही आफत मोल ले लिया।।
बोली इतने सालो तक तो दिया नहीं, वह हड़क गई।
लाल गुलाब को देख सांढ़िन की तरह भड़क गई।।...
साथी
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"वृक्ष नव पल्लव को पा जाता"
पतझड़ के पश्चात वृक्ष नव पल्लव को पा जाता।
पतझड़ के पश्चात वृक्ष नव पल्लव को पा जाता।
विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता।।
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कुछ नया लिख
कोशिश तो कर
उल्टा ही लिख
किसी एक दिन
लिख क्यों नहीं
लेता अपनी तन्हाई
पूरी ना सही
आधी अधूरी ही सही
अपने लिये ना सही
किसी और को
समझाने के
लिये ही सही ...
कुछ नया लिख
कोशिश तो कर
उल्टा ही लिख
किसी एक दिन
लिख क्यों नहीं
लेता अपनी तन्हाई
पूरी ना सही
आधी अधूरी ही सही
अपने लिये ना सही
किसी और को
समझाने के
लिये ही सही ...
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.....बड़ा विचित्र है नारी मन -
मञ्जूषा पाण्डेय :)
बड़ा विचित्र है नारी मन
त्रिया चरित्र ये नारी मन
खुद से खुद को छिपाती
कितने राज बताती
अपने तन को सजाती
सब साज सिंगार रचाती
हया से घिर घिर जाती
जब देखती दर्पण ...
म्हारा हरियाणा
मञ्जूषा पाण्डेय :)
बड़ा विचित्र है नारी मन
त्रिया चरित्र ये नारी मन
खुद से खुद को छिपाती
कितने राज बताती
अपने तन को सजाती
सब साज सिंगार रचाती
हया से घिर घिर जाती
जब देखती दर्पण ...
म्हारा हरियाणा
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अभी हाल ही में..
अभी हाल ही में मेरे 'नेफ्यू' की किताब
'when the saints go marching in' प्रकाशित हुई……
उसी अवसर पर आधारित है ये कविता......
अच्छा लगता.....कुछ 'गिफ्ट' देती,
लिखने-छपने के
इस माहौल में.....
लेकिन.....कपड़ा मेरी पसंद का
तुम्हें पसंद नहीं,
पर्स रखते नहीं,
टाई लगाते नहीं,
जूते,मोज़े ,चप्पल
मेरा दिमाग खड़ाब है क्या ?
mridula's blog
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दर्दों की लहरों के बीच---
छलकते आंसू व चीखती हुई दर्दों की लहरों के बीच
फंसे इंसान को सकून भरा साहिल मिला जा कहाँ
जिसे मानकर मंजिल लडते रहे हैं ताउम्र वह यार
गमों दर्दों का खिलखिलाता मिला आशियाँ उसे वहाँ..
पथिकअनजाना
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"दोहे-वासन्ती उपहार"
दिन ज्यों-ज्यों बढ़ने लगा, चढ़ने लगा खुमार।
मौसम सबको बाँटता, वासन्ती उपहार।१।
चहक उठी है वाटिका, महक उठा है रूप।
भँवरे गुंजन कर रहे, खिली-खिली है धूप।२।...
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अजित गुप्ता का कोना
क्या यहाँ तुम्हारी नाल गड़ी है?
यह प्रश्न भी कितना अजीब है! माँ की कोख में जब जीवन-निर्माण हो रहा था तब नाभिनाल ही तो थी जो हमें पोषित कर रही थी और जीवन दे रही थी। जन्म के बाद इसका अस्तित्व समाप्त ही हो जाता है लेकिन इस जीवन दायिनी नलिका को सम्मान भी भरपूर ही मिलता है। उसे बकायदा गड्डा खोदकर गाड़ा जाता है और हमारे मन के साथ इसे जोड़े रखने का प्रयास भी किया जाता है। तभी तो यह कहावत बनी कि यहाँ क्या तुम्हारी नाल गड़ी है? क्या वाकयी में जहाँ नाल गड़ी होती है, उस जगह का आकर्षण हमेशा बना रहता है? अपना शहर, जहाँ हमने जीवन प्राप्त किया हो, वह हमेशा क्यों अपना सा लगता है? उस जमीन से क्या रिश्ता बन जाता है? या वही नाभिनाल जो पहले हमें जीवन दे रही थी अब धरती के अन्दर समाकर हमें उस धरती से जोड़े हुए है? कुछ तो है, अपनी धरती के लिए। मन न जाने कैसा उतावला हो उठता है जब अपनी जीवन-दायिनी धरती पर कदम पड़ते हैं, सबकुछ अपना सा लगने लगता है। बाहें फैल जाती हैं और उस धरती को, उस शहर को समेट लेने का मन कर उठता है।...
क्या यहाँ तुम्हारी नाल गड़ी है?
क्या यहाँ तुम्हारी नाल गड़ी है?
यह प्रश्न भी कितना अजीब है! माँ की कोख में जब जीवन-निर्माण हो रहा था तब नाभिनाल ही तो थी जो हमें पोषित कर रही थी और जीवन दे रही थी। जन्म के बाद इसका अस्तित्व समाप्त ही हो जाता है लेकिन इस जीवन दायिनी नलिका को सम्मान भी भरपूर ही मिलता है। उसे बकायदा गड्डा खोदकर गाड़ा जाता है और हमारे मन के साथ इसे जोड़े रखने का प्रयास भी किया जाता है। तभी तो यह कहावत बनी कि यहाँ क्या तुम्हारी नाल गड़ी है? क्या वाकयी में जहाँ नाल गड़ी होती है, उस जगह का आकर्षण हमेशा बना रहता है? अपना शहर, जहाँ हमने जीवन प्राप्त किया हो, वह हमेशा क्यों अपना सा लगता है? उस जमीन से क्या रिश्ता बन जाता है? या वही नाभिनाल जो पहले हमें जीवन दे रही थी अब धरती के अन्दर समाकर हमें उस धरती से जोड़े हुए है? कुछ तो है, अपनी धरती के लिए। मन न जाने कैसा उतावला हो उठता है जब अपनी जीवन-दायिनी धरती पर कदम पड़ते हैं, सबकुछ अपना सा लगने लगता है। बाहें फैल जाती हैं और उस धरती को, उस शहर को समेट लेने का मन कर उठता है।...
क्या यहाँ तुम्हारी नाल गड़ी है?
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सूनापन -
गुम हो गये हैं शब्द
जीवन के कोलाहल में,
बैठे हैं मौन तकते एक दूजे को,
कहने को बहुत कुछ
एक दूसरे की नज़रों में पर नहीं चाहते
तोड़ना मौन अहसासों का, ....
Kashish - My Poetry
गुम हो गये हैं शब्द
जीवन के कोलाहल में,
बैठे हैं मौन तकते एक दूजे को,
कहने को बहुत कुछ
एक दूसरे की नज़रों में पर नहीं चाहते
तोड़ना मौन अहसासों का, ....
Kashish - My Poetry
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कुछ एहसास ...
- खुद से बातें करते हुए कई बार सोचा प्रेम क्या है ...
अंजान पगडंडी पे हाथों में हाथ डाले यूँ ही चलते रहना ...
स्वप्न मेरे......
- खुद से बातें करते हुए कई बार सोचा प्रेम क्या है ...
अंजान पगडंडी पे हाथों में हाथ डाले यूँ ही चलते रहना ...
स्वप्न मेरे......
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पापा की घड़ी..
बड़ी अलमारी की ऊपरी शेल्फ के
एक कोने में रखी पापा की घड़ी,
आज उचक कर आ गिरी है.
कहने लगी क्यों
मुझे बंद अलमारी में जगह दी है....
स्पंदन SPANDAN
बड़ी अलमारी की ऊपरी शेल्फ के
एक कोने में रखी पापा की घड़ी,
आज उचक कर आ गिरी है.
कहने लगी क्यों
मुझे बंद अलमारी में जगह दी है....
स्पंदन SPANDAN
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ठिठका खड़ा वसंत ..
ठिठका खड़ा है वसंत कहीं रास्ते में,
झिझक भरा मन में विचारता -
रूखों में रस संचार नहीं ,
कहीं गुँजार नहीं .
स्वर पड़े मौन,
कौन तान भरे ....
शिप्रा की लहरें
ठिठका खड़ा है वसंत कहीं रास्ते में,
झिझक भरा मन में विचारता -
रूखों में रस संचार नहीं ,
कहीं गुँजार नहीं .
स्वर पड़े मौन,
कौन तान भरे ....
शिप्रा की लहरें
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दर्द (क्षणिकाएं )
(1)
दर्द हैरान था
ये किसने आह भरी है
जो मेरी कब्र पर से आज
फिर रेत उड़ी है …
(२)
सीने में ये कैसा
फिर इश्क़ सा जला है
कि इस आग की लपल से
आज मेरा दुपट्टा जला है …
हरकीरत ' हीर'
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तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ "दर्द "हो मोहन !
भाग 1
दर्द का
रूप नही
रंग नहीं
आकार नहीं
फिर भी भासता है
अपना अहसास कराता है....
एक प्रयास
भाग 1
दर्द का
रूप नही
रंग नहीं
आकार नहीं
फिर भी भासता है
अपना अहसास कराता है....
एक प्रयास
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माँ आँचल सुख
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा
ए माँ - ऐ माँ
तुझे कोटि कोटि प्रणाम !!
भूखे जागे व्यंग्य वाण सह
मान प्रतिष्ठा हर सुख त्यागा
पर नन्हे तरु को गोदी भर
नजर बचाए पल पल पाला
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN
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बेशक पति -पत्नी के प्रेम मिलन से
गर्भाश्य में देह की स्थापना होती है
लेकिन उसमें जीव (जीवआत्मा )
डालने का काम कृष्ण करते हैं
आपका ब्लॉग वीरेन्द्र कुमार शर्मा
गर्भाश्य में देह की स्थापना होती है
लेकिन उसमें जीव (जीवआत्मा )
डालने का काम कृष्ण करते हैं
आपका ब्लॉग वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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फिर मिलेंगे न हम...!
अनुशील
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कार्टून :-केजरीवालश्री युगपुरूष हो सकते हैं...
तुम आये थे...
स्वप्न की तरह...
हँसते मुस्कुराते उपहार लिए...
जीवन की राहों में...
क्षीण संभावनाओं की संकरी गली में...
आकाश सा विस्तार लिए...
अनुशील--
कार्टून :-केजरीवालश्री युगपुरूष हो सकते हैं...
धन्यवाद मेरे लेख को यहाँ जोड़ने का |
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक सूत्र संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंमंव पर खुद को पाकर अच्छा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद के लिंक्स के क्या कहने बहुत उम्दा.. सारे पठनीय .
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआज की मनभावन चर्चा में उल्लूक के सूत्र 'कुछ नया लिख कोशिश तो कर उल्टा ही लिख' को शामिल करने के लिये दिल से आभार !
जवाब देंहटाएंwah.....bahot achche links.saath hi dhanybad bhi.....
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक सूत्र... आभार मेरी रचना को जगह देने के लिऐ ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स..रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र .. आभार .
जवाब देंहटाएंगुरुदेव प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिनक्स
बहुत सुन्दर लिंक्स..रोचक चर्चा.....आभार शास्त्री जी मेरी रचना --
जवाब देंहटाएं"माँ आँचल सुख" को जगह देने के लिऐ....भ्रमर ५